2. उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त
उपभोक्ता_के_व्यवहार_का_सिद्धान्त_notes.pdf | |
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माँग के नियम पर आधारित वीडियो देखे।
🔰बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. जब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है तब कुल उपयोगिता निम्न में से क्या होती है। ?
(a) अधिकतम
(b) शून्य
(c) न्यूनतम
(d) ऋणात्मक
2. कुल उपयोगिता उस समय गिरती है जब सीमान्त उपयोगिता ............. जो जाती है।
(a) ऋणात्मक
(b) धनात्मक
(c) शून्य
(d) इनमें से कोई नहीं
3. कुल व्यय विधि का प्रतिपादन किसने किया हैं ?
(a) मार्शल
(b) पीगू
(c) एडम स्थिम
(d) राँबिन्स
4. .................... वक्र दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बण्डलों को प्रदर्शित करता है जिन पर सन्तुष्टि समान होती है।
(a) लोचदार माँग वक्र
(b) उदासीनता वक्र
(c) कम लोचदार माँग वक्र
(d) इनमें से काई नहीं
5. जब वस्तुओं और सेवाओं की माँग आगे उत्पादन के लिए की जाती है तो वह ........................ माँग कहलाती है।
(a) आड़ी माँग
(b) व्युपन्न माँग
(c) संयुक्त माँग
(d) कोई भी नहीं
6. इनमें से कौन सी वस्तुएँ एक दुसरे की पूरक है।
(a) पैट्रोल-कार
(b) पैन-स्याही
(c) मोटर-बिजली
(d) तीनों ही।
7. एक निश्चित समय पर बाजार में दी गई विभिन्न कीमतों पर वस्तु की जितनी मात्राएं बेची जाती हैं यदि इस संबंध को एक तालिका का रूप दिया जाता है तो उसे ............ कहते हैं
(a) पूर्ति तालिका
(b) माँग तालिका
(c) उपभोक्ता तालिका
(d) बाजार माँग तालिका
8. निम्न में से किस वस्तुओं की माँग वक्र नीचे से ऊपर की और बढ़ता है?
(a) प्रतिष्ठा सूचक वस्तु
(b) धटिया वस्तु
(c) सामान्य वस्तु
(d) सभी पर
9. माँग की लोच का सिद्धान्त सबसे पहले ................ निर्माण किया ?
(a) रोबिसन्स
(b) किन्स
(c) मार्शल
(d) पिगू
10. एक वस्तु की किसी आवश्यकता को सन्तुष्ट करने की क्षमता को उसकी ............. कहा जाता है।
(a) पूर्ति
(b) मांग
(c) उपयोगिता
(d) लागत
(a) अधिकतम
(b) शून्य
(c) न्यूनतम
(d) ऋणात्मक
2. कुल उपयोगिता उस समय गिरती है जब सीमान्त उपयोगिता ............. जो जाती है।
(a) ऋणात्मक
(b) धनात्मक
(c) शून्य
(d) इनमें से कोई नहीं
3. कुल व्यय विधि का प्रतिपादन किसने किया हैं ?
(a) मार्शल
(b) पीगू
(c) एडम स्थिम
(d) राँबिन्स
4. .................... वक्र दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बण्डलों को प्रदर्शित करता है जिन पर सन्तुष्टि समान होती है।
(a) लोचदार माँग वक्र
(b) उदासीनता वक्र
(c) कम लोचदार माँग वक्र
(d) इनमें से काई नहीं
5. जब वस्तुओं और सेवाओं की माँग आगे उत्पादन के लिए की जाती है तो वह ........................ माँग कहलाती है।
(a) आड़ी माँग
(b) व्युपन्न माँग
(c) संयुक्त माँग
(d) कोई भी नहीं
6. इनमें से कौन सी वस्तुएँ एक दुसरे की पूरक है।
(a) पैट्रोल-कार
(b) पैन-स्याही
(c) मोटर-बिजली
(d) तीनों ही।
7. एक निश्चित समय पर बाजार में दी गई विभिन्न कीमतों पर वस्तु की जितनी मात्राएं बेची जाती हैं यदि इस संबंध को एक तालिका का रूप दिया जाता है तो उसे ............ कहते हैं
(a) पूर्ति तालिका
(b) माँग तालिका
(c) उपभोक्ता तालिका
(d) बाजार माँग तालिका
8. निम्न में से किस वस्तुओं की माँग वक्र नीचे से ऊपर की और बढ़ता है?
(a) प्रतिष्ठा सूचक वस्तु
(b) धटिया वस्तु
(c) सामान्य वस्तु
(d) सभी पर
9. माँग की लोच का सिद्धान्त सबसे पहले ................ निर्माण किया ?
(a) रोबिसन्स
(b) किन्स
(c) मार्शल
(d) पिगू
10. एक वस्तु की किसी आवश्यकता को सन्तुष्ट करने की क्षमता को उसकी ............. कहा जाता है।
(a) पूर्ति
(b) मांग
(c) उपयोगिता
(d) लागत
🔰निशिचत तथा अति लधु प्रश्नोत्तर
प्र01 उपयोगिता से क्या आशय है ?
उ0 उपयोगिता किसी वस्तु की वह क्षमता है जिससे किसी मानवीय आवश्यकता की सन्तुष्टि होती है।
प्र02 बजट रेखा क्या है? बजट रेखा का समीकरण लिखिए ?
उ0 बजट रेखा एक ऐसी रेखा है जो उन समूहों का प्रतिनिधित्व करती है जिनकी लागत उपभोक्तिाओं की सम्पूर्ण लागत के बराबर होती है।
समीकरण - p1x1 +p2x2 = M
प्र03 स्थानापन्न वस्तुएँ किसे कहते है ?
उ0 वे वस्तुएँ होती हैं जो एक दूसरे के बदले एक ही उद्देश्य के लिए प्रयोग की जाती हैं जैसे यदि चाय और कॉफी में, कॉफी की कीमत कम होने और चाय की कीमत में कोई परिवर्तन न हाने पर उपभोक्ता कॉफी की माँग अधिक करेगा।
प्र04 पूरक वस्तुएँ किसे कहते है ?
उ0 वे वस्तुएँ होती हैं जिसका किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक साथ प्रयोग किया जाता है जैसे स्कूटर व पेट्रोल यदि स्कूटर की कीमत में तीव्र वृद्धि हो जाए तब स्कूटर की पूरक वस्तु पेट्रोल की माँग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जबकि पेट्रोल की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस प्रकार पूरक वस्तु की कीमत और खरीदी जाने वाली मात्रा में विपरीत संबंध पाया जाता है।
प्र05 सामान्य वस्तुओं से क्या आशय है ?
उ0 वे वस्तुएँ जिनकी माँग उपभोक्ता की आय बढ़ने पर बढ़ती है और आय कम होन पर धटती है उसे सामान्य वस्तुएँ कहते है।
प्र06 बजट समूह कब बदलता है?
उ0 जब किसी वस्तु की कीमत और उपभोक्त की आय में परिवर्तन होता है।
प्र07 प्रतिस्थापन की सीमान्त दर क्या है ?
उ0 प्रतिस्थापन की सीमान्त दर वह दर है, जिस पा एक उपभोक्ता वस्तु 1 के स्थान पर वस्तु 2 का प्रतिस्थापन करता है और उसके प्रति उदासीन रहता है।
प्र08 माँग के विस्तार से क्या अभिप्राय है ?
उ0 अन्य बातें समान रहने पर, जब किसी वस्तु की कीमत में कमी होने पर उसकी माँग में वृद्धि हो जाती है तो उसे माँग का विस्तार कहते है।
प्र09 माँग के संकुचन से क्या अभिप्राय है ?
उ0 अन्य बातें समान रहने पर, जब किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग में जो कमी आती है उसे माँग का संकुचन कहते है।
प्र010 व्युत्पन्न माँग किसे कहते है ?
उ0 जब वस्तुओं और सेवाओं की माँग आगे उत्पादन के लिए की जाती है तो उसे व्युत्पन्न माँग कहते है।
प्र011 संयुक्त माँग किसे कहते है ?
उ0 जब एक आवश्यकता को पूरा करने के लिए अनेक वस्तुओं की माँग एक साथ की जाती है तो उसे संयुक्त माँग कहते है। जैसे धर बनाने के लिए ईट, सीमेंट रेत आदि।
प्र012 गिफिन पदार्थ से क्या अभिप्राय है ?
उ0 गिफिन पदार्थ वे धटिया पदार्थ है जिनका आय प्रभाव ऋणात्मक तथा कीमत प्रभाव धनात्मक होता है।
प्र013 धटिया वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उ0 धटिया वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिनकी माँग आय बढ़ने पर कम तथा आय कम होने पर बढ़ जाती है।
प्र014 माँग तालिका किसे कहते है ?
उ0 किसी निश्चित समय पर वस्तु की विभिन्न कीमतों एवं उन कीमतों पर माँगी जाने वाली वस्तु की मात्राओं के पारस्परिक सम्बन्धों को बताने वाली तालिका माँग तालिका कहलाती है।
प्र015 सीमान्त उपयोगिता क्या है ?
उ0 जब वस्तु की दी हुई मात्रा की सीमान्त उपयोगिता कुल उपयोगिता में होने वाली वह वृद्धि है जो उसके उपयोग में एक इकाई के बढ़ने के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है।
प्र016. स्थानापन्न तथा पूरक वस्तुओं में अन्तर कीजिए
1. स्थानापन्न वस्तुएँ - वे वस्तुएँ होती है जिनका किसी दूसरी वस्तु के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है। जैसे (चाय और काॅफी) चाय के स्थान पर काॅफी का प्रयोग किया जा सकता है।
2. पूरक वस्तुएँ - वे वस्तुएँ होती है जिनका उपयोग एक साथ किया जाता है। जैसे पेन तथा स्याही।
प्र017. कीमत माँग किसे कहते है ?
उ0 वस्तु की उन मात्राओं से है जो एक निश्चित समय अवधि में निश्चित कीमतों पर उपभोक्ताओं द्वारा माँगी जाती है यदि अन्य बातें समान रहे तो वस्तु की कीमत बढ़ जाने से उसकी माँग कम हो जाएगी और वस्तु की कीमत घट जाने से माँग बढ़ जाएगी। कीमत एवं वस्तु माँग में भी विपरीत/ऋणात्मक संबंध होता है ।
प्र018. श्रेष्ठ वस्तुओं किसे कहते है ?
उ0 श्रेष्ठ वस्तुओं के संबंध में आय माँग वक्र धनात्मक वाला होता है क्यों कि उपभोक्ता की आय में प्रत्येक वृद्धि उसकी माँग में भी वृद्धी करती है। इसके विपरीत आय की प्रत्येक कमी सामान्य दशाओं में माँग में भी कमी उत्पन्न करती है।
प्र019. तिरछी अथवा आड़ी माँग किसे कहते है ?
उ0 अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की X कीमत मे परिवर्तन होने से उसके सापेक्ष सम्बन्धित वस्तु Y की माँग में जो परिवर्तन होता है उसे आड़ी माँग कहते है।
प्र020. सामूहिक माँग किसे कहते है ?
उ0 जब एक वस्तु दो या दो से अधिक उपयोगों में माँगी जाती है तब ऐसी वस्तु की माँग सामूहिक माँग कहलाती है जैसे कोयला, बिजली, दूध आदि। जैसे दूध का प्रयोग अनेक प्रकार की मिठाइयां, दही, घी आदि में किया जाता है।
प्र021. मांग के प्रकार बताइए ?
उ0 कीमत मांग, आय मांग, आड़ी मांग, संयुक्त मांग और व्युत्पन्न मांग।
उ0 उपयोगिता किसी वस्तु की वह क्षमता है जिससे किसी मानवीय आवश्यकता की सन्तुष्टि होती है।
प्र02 बजट रेखा क्या है? बजट रेखा का समीकरण लिखिए ?
उ0 बजट रेखा एक ऐसी रेखा है जो उन समूहों का प्रतिनिधित्व करती है जिनकी लागत उपभोक्तिाओं की सम्पूर्ण लागत के बराबर होती है।
समीकरण - p1x1 +p2x2 = M
प्र03 स्थानापन्न वस्तुएँ किसे कहते है ?
उ0 वे वस्तुएँ होती हैं जो एक दूसरे के बदले एक ही उद्देश्य के लिए प्रयोग की जाती हैं जैसे यदि चाय और कॉफी में, कॉफी की कीमत कम होने और चाय की कीमत में कोई परिवर्तन न हाने पर उपभोक्ता कॉफी की माँग अधिक करेगा।
प्र04 पूरक वस्तुएँ किसे कहते है ?
उ0 वे वस्तुएँ होती हैं जिसका किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक साथ प्रयोग किया जाता है जैसे स्कूटर व पेट्रोल यदि स्कूटर की कीमत में तीव्र वृद्धि हो जाए तब स्कूटर की पूरक वस्तु पेट्रोल की माँग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जबकि पेट्रोल की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस प्रकार पूरक वस्तु की कीमत और खरीदी जाने वाली मात्रा में विपरीत संबंध पाया जाता है।
प्र05 सामान्य वस्तुओं से क्या आशय है ?
उ0 वे वस्तुएँ जिनकी माँग उपभोक्ता की आय बढ़ने पर बढ़ती है और आय कम होन पर धटती है उसे सामान्य वस्तुएँ कहते है।
प्र06 बजट समूह कब बदलता है?
उ0 जब किसी वस्तु की कीमत और उपभोक्त की आय में परिवर्तन होता है।
प्र07 प्रतिस्थापन की सीमान्त दर क्या है ?
उ0 प्रतिस्थापन की सीमान्त दर वह दर है, जिस पा एक उपभोक्ता वस्तु 1 के स्थान पर वस्तु 2 का प्रतिस्थापन करता है और उसके प्रति उदासीन रहता है।
प्र08 माँग के विस्तार से क्या अभिप्राय है ?
उ0 अन्य बातें समान रहने पर, जब किसी वस्तु की कीमत में कमी होने पर उसकी माँग में वृद्धि हो जाती है तो उसे माँग का विस्तार कहते है।
प्र09 माँग के संकुचन से क्या अभिप्राय है ?
उ0 अन्य बातें समान रहने पर, जब किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग में जो कमी आती है उसे माँग का संकुचन कहते है।
प्र010 व्युत्पन्न माँग किसे कहते है ?
उ0 जब वस्तुओं और सेवाओं की माँग आगे उत्पादन के लिए की जाती है तो उसे व्युत्पन्न माँग कहते है।
प्र011 संयुक्त माँग किसे कहते है ?
उ0 जब एक आवश्यकता को पूरा करने के लिए अनेक वस्तुओं की माँग एक साथ की जाती है तो उसे संयुक्त माँग कहते है। जैसे धर बनाने के लिए ईट, सीमेंट रेत आदि।
प्र012 गिफिन पदार्थ से क्या अभिप्राय है ?
उ0 गिफिन पदार्थ वे धटिया पदार्थ है जिनका आय प्रभाव ऋणात्मक तथा कीमत प्रभाव धनात्मक होता है।
प्र013 धटिया वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उ0 धटिया वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिनकी माँग आय बढ़ने पर कम तथा आय कम होने पर बढ़ जाती है।
प्र014 माँग तालिका किसे कहते है ?
उ0 किसी निश्चित समय पर वस्तु की विभिन्न कीमतों एवं उन कीमतों पर माँगी जाने वाली वस्तु की मात्राओं के पारस्परिक सम्बन्धों को बताने वाली तालिका माँग तालिका कहलाती है।
प्र015 सीमान्त उपयोगिता क्या है ?
उ0 जब वस्तु की दी हुई मात्रा की सीमान्त उपयोगिता कुल उपयोगिता में होने वाली वह वृद्धि है जो उसके उपयोग में एक इकाई के बढ़ने के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है।
प्र016. स्थानापन्न तथा पूरक वस्तुओं में अन्तर कीजिए
1. स्थानापन्न वस्तुएँ - वे वस्तुएँ होती है जिनका किसी दूसरी वस्तु के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है। जैसे (चाय और काॅफी) चाय के स्थान पर काॅफी का प्रयोग किया जा सकता है।
2. पूरक वस्तुएँ - वे वस्तुएँ होती है जिनका उपयोग एक साथ किया जाता है। जैसे पेन तथा स्याही।
प्र017. कीमत माँग किसे कहते है ?
उ0 वस्तु की उन मात्राओं से है जो एक निश्चित समय अवधि में निश्चित कीमतों पर उपभोक्ताओं द्वारा माँगी जाती है यदि अन्य बातें समान रहे तो वस्तु की कीमत बढ़ जाने से उसकी माँग कम हो जाएगी और वस्तु की कीमत घट जाने से माँग बढ़ जाएगी। कीमत एवं वस्तु माँग में भी विपरीत/ऋणात्मक संबंध होता है ।
प्र018. श्रेष्ठ वस्तुओं किसे कहते है ?
उ0 श्रेष्ठ वस्तुओं के संबंध में आय माँग वक्र धनात्मक वाला होता है क्यों कि उपभोक्ता की आय में प्रत्येक वृद्धि उसकी माँग में भी वृद्धी करती है। इसके विपरीत आय की प्रत्येक कमी सामान्य दशाओं में माँग में भी कमी उत्पन्न करती है।
प्र019. तिरछी अथवा आड़ी माँग किसे कहते है ?
उ0 अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की X कीमत मे परिवर्तन होने से उसके सापेक्ष सम्बन्धित वस्तु Y की माँग में जो परिवर्तन होता है उसे आड़ी माँग कहते है।
प्र020. सामूहिक माँग किसे कहते है ?
उ0 जब एक वस्तु दो या दो से अधिक उपयोगों में माँगी जाती है तब ऐसी वस्तु की माँग सामूहिक माँग कहलाती है जैसे कोयला, बिजली, दूध आदि। जैसे दूध का प्रयोग अनेक प्रकार की मिठाइयां, दही, घी आदि में किया जाता है।
प्र021. मांग के प्रकार बताइए ?
उ0 कीमत मांग, आय मांग, आड़ी मांग, संयुक्त मांग और व्युत्पन्न मांग।
🔰विस्तृत प्रश्नोत्तर
प्र01. उपयोगिता का अर्थ बताइए तथा इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। अथवा तुष्टिगुण (उपयोगिता) की परिभाषा दीजिए तथा इसकी विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर : उपयोगिता का अर्थ एवं परिभाषा
उपयोगिता किसी वस्तु की वह क्षमता है, जिससे किसी मानवीय आवश्यकता की सन्तुष्टि होती है।
प्रो० वाघ (Waugh) के शब्दों में, “अर्थशास्त्री के लिए उपयोगिता मानवीय आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने की क्षमता है।"
प्रो० मार्शल के अनुसार, “किसी समय किसी मनुष्य के लिए किसी वस्तु की उपयोगिता को उस सीमा से नापा जाता है, जिस सीमा तक वह किसी आवश्यकता को सन्तुष्ट करती है।"
उपयोगिता का स्वभाव (विशेषताएँ या लक्षण ) -
1. उपयोगिता एक अमूर्त धारणा है, जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है। इसे हम न तो देख सकते हैं और न ही छू सकते हैं।
2. आवश्यकता पूर्ति की शक्ति (सन्तुष्टि) के दो अर्थ हैं-
(i) अनुमानित सन्तुष्टि, अर्थात् किसी वस्तु की सन्तुष्टि प्रदान करने की क्षमता।
(ii) वास्तविक सन्तुष्टि, अर्थात् किसी वस्तु का उपभोग कर लेने के बाद प्राप्त सन्तुष्टि ।
अनुमानित सन्तुष्टि वस्तुतः वास्तविक सन्तुष्टि से कम या अधिक अथवा उसके बराबर हो सकती है।
3. उपयोगिता का सम्बन्ध 'लाभदायकता से नहीं है। उपयोगिता लाभदायक व हानिकारक दोनों प्रकार की वस्तुओं में होती है। दूध, घी, मक्खन, अण्डा, गेहूँ इत्यादि लाभदायक वस्तुएँ हैं, जबकि शराब, सिगरेट, अफीम, गाँजा आदि हानिकारक वस्तुओं की श्रेणी में आती हैं, किन्तु ये सभी वस्तुएँ उपयोगिता रखती हैं क्योंकि इनके द्वारा व्यक्ति विशेष की आवश्यकता की पूर्ति होती है।
4. उपयोगिता वस्तुगत न होकर आत्मगत होती है। उपयोगिता वस्तु का आन्तरिक गुण नहीं है, अपितु यह व्यक्ति विशेष की इच्छा की तीव्रता, उसकी रुचि, आदत, फैशन तथा परिस्थितियों पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए एक प्यासे व्यक्ति के लिए पानी उपयोगी है, किन्तु दूसरे व्यक्ति के लिए जो प्यासा नहीं है, यह उपयोगी नहीं है।
5. उपयोगिता सापेक्षिक होती है। एक ही व्यक्ति के लिए किसी वस्तु की उपयोगिता समय व परिस्थितियों के साथ-साथ भिन्न-भिन्न होती है। उदाहरण के लिए, कम्बल एक व्यक्ति के लिए सर्दी में उपयोगी है, किन्तु गर्मी में यह उपयोगी नहीं है।
उत्तर : उपयोगिता का अर्थ एवं परिभाषा
उपयोगिता किसी वस्तु की वह क्षमता है, जिससे किसी मानवीय आवश्यकता की सन्तुष्टि होती है।
प्रो० वाघ (Waugh) के शब्दों में, “अर्थशास्त्री के लिए उपयोगिता मानवीय आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने की क्षमता है।"
प्रो० मार्शल के अनुसार, “किसी समय किसी मनुष्य के लिए किसी वस्तु की उपयोगिता को उस सीमा से नापा जाता है, जिस सीमा तक वह किसी आवश्यकता को सन्तुष्ट करती है।"
उपयोगिता का स्वभाव (विशेषताएँ या लक्षण ) -
1. उपयोगिता एक अमूर्त धारणा है, जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है। इसे हम न तो देख सकते हैं और न ही छू सकते हैं।
2. आवश्यकता पूर्ति की शक्ति (सन्तुष्टि) के दो अर्थ हैं-
(i) अनुमानित सन्तुष्टि, अर्थात् किसी वस्तु की सन्तुष्टि प्रदान करने की क्षमता।
(ii) वास्तविक सन्तुष्टि, अर्थात् किसी वस्तु का उपभोग कर लेने के बाद प्राप्त सन्तुष्टि ।
अनुमानित सन्तुष्टि वस्तुतः वास्तविक सन्तुष्टि से कम या अधिक अथवा उसके बराबर हो सकती है।
3. उपयोगिता का सम्बन्ध 'लाभदायकता से नहीं है। उपयोगिता लाभदायक व हानिकारक दोनों प्रकार की वस्तुओं में होती है। दूध, घी, मक्खन, अण्डा, गेहूँ इत्यादि लाभदायक वस्तुएँ हैं, जबकि शराब, सिगरेट, अफीम, गाँजा आदि हानिकारक वस्तुओं की श्रेणी में आती हैं, किन्तु ये सभी वस्तुएँ उपयोगिता रखती हैं क्योंकि इनके द्वारा व्यक्ति विशेष की आवश्यकता की पूर्ति होती है।
4. उपयोगिता वस्तुगत न होकर आत्मगत होती है। उपयोगिता वस्तु का आन्तरिक गुण नहीं है, अपितु यह व्यक्ति विशेष की इच्छा की तीव्रता, उसकी रुचि, आदत, फैशन तथा परिस्थितियों पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए एक प्यासे व्यक्ति के लिए पानी उपयोगी है, किन्तु दूसरे व्यक्ति के लिए जो प्यासा नहीं है, यह उपयोगी नहीं है।
5. उपयोगिता सापेक्षिक होती है। एक ही व्यक्ति के लिए किसी वस्तु की उपयोगिता समय व परिस्थितियों के साथ-साथ भिन्न-भिन्न होती है। उदाहरण के लिए, कम्बल एक व्यक्ति के लिए सर्दी में उपयोगी है, किन्तु गर्मी में यह उपयोगी नहीं है।
प्र0 2.उदासीनता वक्र या मानचित्र क्या है ? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर : उदासीनता मानचित्र - उदासीनता वक्र या उदासीनता मानचित्र सन्तुष्टि के एक निश्चित स्तर को बताता है। सन्तुष्टि के विभिन्न स्तरों को प्रदर्शित करने के लिए Y-वस्तु उदासीनता मानचित्र (Indifference map) का भी निर्माण किया जाता है। सरल शब्दों में, हम कह सकते हैं कि जब किसी उपभोक्ता को प्राप्त सन्तुष्टि के विभिन्न स्तरों को एक साथ प्रदर्शित किया जाता है तो वह उदासीनता मानचित्र कहलाता है। विशेषताएँ - 1. उदासीनता वक्र दाहिनी ओर नीचे के झुकता हुआ होता है। 2. यह मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है। 3. उदासीनता वक्र किसी भी अक्ष को स्पर्श नहीं करता है। 4. उदासीनता वक्र एक-दूसरे को कभी नहीं काटते है। 5. उदासीनता वक्र मूल बिन्दु के जितनी निकट होता है, वह उतने की छोटे संयोगों को प्रदर्शित करता है और दूर होने पर बड़े बण्डलों को प्रकट करता है। |
इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं--
(1) किसी एक उदासीनता वक्र पर स्थित सभी बिन्दु उपभोक्ता को समान सन्तुष्टि प्रदान करते हैं।
(2) यदि दो बिन्दु दो भिन्न-भिन्न वक्रों पर स्थित हैं तो उनसे मिलने वाली सन्तुष्टि समान न होकर अलग-अलग होगी।
(3) जो उदासीनता वक्र मूल बिन्दु से जितना दूर होता जाता है, अर्थात् जैसे-जैसे वक्र दाएँ हाथ की ओर खिसकता जाता है, उनसे मिलने वाली सन्तुष्टि उत्तरोतर बढ़ती जाती है।
(1) किसी एक उदासीनता वक्र पर स्थित सभी बिन्दु उपभोक्ता को समान सन्तुष्टि प्रदान करते हैं।
(2) यदि दो बिन्दु दो भिन्न-भिन्न वक्रों पर स्थित हैं तो उनसे मिलने वाली सन्तुष्टि समान न होकर अलग-अलग होगी।
(3) जो उदासीनता वक्र मूल बिन्दु से जितना दूर होता जाता है, अर्थात् जैसे-जैसे वक्र दाएँ हाथ की ओर खिसकता जाता है, उनसे मिलने वाली सन्तुष्टि उत्तरोतर बढ़ती जाती है।
प्र0 3. माँग से आप क्या समझते है ? इसको प्रभावित करने वाले तत्त्वों की विवेचना कीजिए।
उत्तर : साधारण भाषा में माँग का अर्थ वस्तु की इच्छा, लालसा, अथवा आवश्यकता से लगाया जाता है। परन्तु अर्थशास्त्र में माँग का अर्थ किसी व्यक्ति के लिए "प्रभावपूर्ण इच्छा" से है। प्रभावपूर्ण इच्छा को ही आवश्यकता कहते है।
प्रभावपूर्ण इच्छा के लिए तीन तत्त्वों का होना आवश्यक है।
1. इच्छा का होना।
2. उसकी पूर्ति के लिए साधनों का होना।
3. साधन को प्राप्त करने की तत्परता का होना।
जब किसी वस्तु की आवश्यकता के साथ कीमत और समय को जोड़ दिया जाता है तब वह माँग बन जाती है।
उदाहरण - बाज़ार में आज दिनांक 22.04.2017 को रूपये 50 प्रति लीटर भाव पर दूध की माँग है।
माँग की प्रमुख परिभाषा -
1. प्रो0 पेन्सन के अनुसार - "किसी वस्तु को प्राप्त करने की वह इच्छा जिसकी पूर्ति के लिए हमारे पास पर्याप्त साधन हों और जिन्हें व्यय करने की हमारे अन्दर तप्तरता हो, उसे माँग कहते है।"
2. उपयुक्त परिभाषा - "माँग किसी वस्तु की वह मात्रा है जो किसी दिए हुए समय में, किसी दिए हुए मुल्य पर माँगी जाती है।श"
माँग को प्र्रभावित करने वाले तत्त्व -
1. आय में परिवर्तन - उपभोक्ता की आय भी माँग को प्रभावित करती है। सामान्यतः जब लोगों की आय में वृद्वि होती है तो वस्तुओं की माँग में वृद्वि हो जाती है और आय कम होने पर माँग कम हो जाती है।
2. वस्तु का मूल्य - वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होने पर वस्तु की माँग में भी परिवर्तन हो जाता है। वस्तु का मूल्य बढ़ने पर उस वस्तु की माँग कम हो जाती है और वस्तु का मूल्य कम होने पर उसकी माँग बढ़ जाती है।
3. रूचि तथा फौशन में परिवर्तन - उपभोक्ताओं की रूचि तथा समाज में प्रचलित फैशन में परिवर्तन हो जाता है तो नए फैशन की वस्तुओं की माँग में वृद्वि हो जाती है। इसके विपरीत वस्तुओं के फैशन से बाहर हो जाने पर उनकी माँग में कमी हो जाती है।
4. ऋतु तथा मौसम में परिवर्तन - मौसम में परिवर्तन के साथ-साथ विभिन्न वस्तुओं की माँग में भी परिवर्तन हो जाता है। जैसे शरद् ऋतु में कीमत बढ़ने पर भी गर्म कपड़े की माँग में वृद्वि हो जाती है।
5. व्यापार की दशाओं में परिवर्तन - अर्थव्यवस्था में तेजीकाल में लोगों की मौद्रिक आय बढ़ जाती है, जिसके कारण कीमतों के बढ़ने के बावजूद वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत, मन्दीकाल में मौद्रिक आय में कमी होने के कारण, मूल्य स्तर के गिरने पर भी वस्तुओं के लिए माँग में कमी हो जाती है।
6. भवष्यि में वस्तुओं के मूल्य बढ़ने की सम्भावना - जब कभी भविष्य में कुछ वस्तुओं के मूल्य बढ़ने की सम्भावना होती है तो वर्तमान काल के वस्तुओं के मूल्यों पर वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है।
उत्तर : साधारण भाषा में माँग का अर्थ वस्तु की इच्छा, लालसा, अथवा आवश्यकता से लगाया जाता है। परन्तु अर्थशास्त्र में माँग का अर्थ किसी व्यक्ति के लिए "प्रभावपूर्ण इच्छा" से है। प्रभावपूर्ण इच्छा को ही आवश्यकता कहते है।
प्रभावपूर्ण इच्छा के लिए तीन तत्त्वों का होना आवश्यक है।
1. इच्छा का होना।
2. उसकी पूर्ति के लिए साधनों का होना।
3. साधन को प्राप्त करने की तत्परता का होना।
जब किसी वस्तु की आवश्यकता के साथ कीमत और समय को जोड़ दिया जाता है तब वह माँग बन जाती है।
उदाहरण - बाज़ार में आज दिनांक 22.04.2017 को रूपये 50 प्रति लीटर भाव पर दूध की माँग है।
माँग की प्रमुख परिभाषा -
1. प्रो0 पेन्सन के अनुसार - "किसी वस्तु को प्राप्त करने की वह इच्छा जिसकी पूर्ति के लिए हमारे पास पर्याप्त साधन हों और जिन्हें व्यय करने की हमारे अन्दर तप्तरता हो, उसे माँग कहते है।"
2. उपयुक्त परिभाषा - "माँग किसी वस्तु की वह मात्रा है जो किसी दिए हुए समय में, किसी दिए हुए मुल्य पर माँगी जाती है।श"
माँग को प्र्रभावित करने वाले तत्त्व -
1. आय में परिवर्तन - उपभोक्ता की आय भी माँग को प्रभावित करती है। सामान्यतः जब लोगों की आय में वृद्वि होती है तो वस्तुओं की माँग में वृद्वि हो जाती है और आय कम होने पर माँग कम हो जाती है।
2. वस्तु का मूल्य - वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होने पर वस्तु की माँग में भी परिवर्तन हो जाता है। वस्तु का मूल्य बढ़ने पर उस वस्तु की माँग कम हो जाती है और वस्तु का मूल्य कम होने पर उसकी माँग बढ़ जाती है।
3. रूचि तथा फौशन में परिवर्तन - उपभोक्ताओं की रूचि तथा समाज में प्रचलित फैशन में परिवर्तन हो जाता है तो नए फैशन की वस्तुओं की माँग में वृद्वि हो जाती है। इसके विपरीत वस्तुओं के फैशन से बाहर हो जाने पर उनकी माँग में कमी हो जाती है।
4. ऋतु तथा मौसम में परिवर्तन - मौसम में परिवर्तन के साथ-साथ विभिन्न वस्तुओं की माँग में भी परिवर्तन हो जाता है। जैसे शरद् ऋतु में कीमत बढ़ने पर भी गर्म कपड़े की माँग में वृद्वि हो जाती है।
5. व्यापार की दशाओं में परिवर्तन - अर्थव्यवस्था में तेजीकाल में लोगों की मौद्रिक आय बढ़ जाती है, जिसके कारण कीमतों के बढ़ने के बावजूद वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत, मन्दीकाल में मौद्रिक आय में कमी होने के कारण, मूल्य स्तर के गिरने पर भी वस्तुओं के लिए माँग में कमी हो जाती है।
6. भवष्यि में वस्तुओं के मूल्य बढ़ने की सम्भावना - जब कभी भविष्य में कुछ वस्तुओं के मूल्य बढ़ने की सम्भावना होती है तो वर्तमान काल के वस्तुओं के मूल्यों पर वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है।
प्र0 4. माँग के नियम की व्याख्या कीजिए ? माँग वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर क्यों गिरता है or माँग के नियम की क्रियाशीलता के कारण ?
उत्तर : परिभाषा -
"माँग का नियम यह बताता है कि किसी वस्तु की कीमत में वृद्वि होने से उसकी माँग कम हो जाती हैै तथा कीमत में कमी हाने से उसकी माँग बढ़ जाती है। इस प्रकार वस्तु के मूल्य एवं उसकी माँग के मध्य विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। इसे ही माँग का नियम कहते है।"
माँग के नियम की विशेषताएँ -
1. यह नियम अन्य बातें समान रहने पर क्रियाशील रहता है।
2. कीमत और माँग में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है।
3. यह परिमाणात्मक कथन न होकर गुणात्मक कथन है।
उत्तर : परिभाषा -
"माँग का नियम यह बताता है कि किसी वस्तु की कीमत में वृद्वि होने से उसकी माँग कम हो जाती हैै तथा कीमत में कमी हाने से उसकी माँग बढ़ जाती है। इस प्रकार वस्तु के मूल्य एवं उसकी माँग के मध्य विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। इसे ही माँग का नियम कहते है।"
माँग के नियम की विशेषताएँ -
1. यह नियम अन्य बातें समान रहने पर क्रियाशील रहता है।
2. कीमत और माँग में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है।
3. यह परिमाणात्मक कथन न होकर गुणात्मक कथन है।
माँग के नियम की क्रियाशीलता के कारण -
1. सीमान्त उपयोगिता ह्यस नियम की क्रियाशीलता के कारण - सीमान्त उपयोगिता ह्यस नियम हमें यह बताता है कि जैसे-जैसे किसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों का प्रयोग किया जाता है तो उपभोक्ता को प्राप्त होने वाली उपयोगिता कम होन लगती है। अर्थातः कम कीमत पर ही वह अधिक वस्तुओं का उपभोग करेगा।
2. आय प्रभाव - वस्तु की कीमत कम हाने पर उपभोक्ता की वास्तविक आय में वृ़िद्व हो जाती है जिसके फलस्वरूप उसकी आय में जो बचत होती है उससे वह और अधिक मात्रा में वस्तुओं का क्रय करेगा। इसके विपरीत वस्तु की कीमत में वृद्वि होने पर वह कम वस्तुओं का क्रय करेगा।
3. प्रतिस्थापन प्रभाव - जब कोई वस्तु अपनी प्रतिस्थापन वस्तुओं की तुलना में सस्ती हो जाती है तो उपभोक्ता महँगी वाली वस्तु के स्थान पर कम कीमत वाली वस्तु का उपभोग करेगा। जैसे चाय और काॅफी में से वह, काॅफी की कीमत कम होने पर उसकी माँग अधिक करेगे।
1. सीमान्त उपयोगिता ह्यस नियम की क्रियाशीलता के कारण - सीमान्त उपयोगिता ह्यस नियम हमें यह बताता है कि जैसे-जैसे किसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों का प्रयोग किया जाता है तो उपभोक्ता को प्राप्त होने वाली उपयोगिता कम होन लगती है। अर्थातः कम कीमत पर ही वह अधिक वस्तुओं का उपभोग करेगा।
2. आय प्रभाव - वस्तु की कीमत कम हाने पर उपभोक्ता की वास्तविक आय में वृ़िद्व हो जाती है जिसके फलस्वरूप उसकी आय में जो बचत होती है उससे वह और अधिक मात्रा में वस्तुओं का क्रय करेगा। इसके विपरीत वस्तु की कीमत में वृद्वि होने पर वह कम वस्तुओं का क्रय करेगा।
3. प्रतिस्थापन प्रभाव - जब कोई वस्तु अपनी प्रतिस्थापन वस्तुओं की तुलना में सस्ती हो जाती है तो उपभोक्ता महँगी वाली वस्तु के स्थान पर कम कीमत वाली वस्तु का उपभोग करेगा। जैसे चाय और काॅफी में से वह, काॅफी की कीमत कम होने पर उसकी माँग अधिक करेगे।
माँग के नियम की व्याख्या को जानने के लिए वीडियो देखें।
प्र0 5. माँग तालिका क्या है ?
उत्तर : एक निश्चित समय पर बाजार में दी गई विभिन्न कीमतों पर वस्तु की जितनी मात्राएं बेची जाती हैं यदि इस संबंध को एक तालिका का रूप दिया जाता है तो उसे माँग तालिका कहते हैं
माँग तालिका दो प्रकार की होती है
1 व्यक्तिगत माँग तालिका
2 बाजार माँग तालिका
उत्तर : एक निश्चित समय पर बाजार में दी गई विभिन्न कीमतों पर वस्तु की जितनी मात्राएं बेची जाती हैं यदि इस संबंध को एक तालिका का रूप दिया जाता है तो उसे माँग तालिका कहते हैं
माँग तालिका दो प्रकार की होती है
1 व्यक्तिगत माँग तालिका
2 बाजार माँग तालिका
प्र0 6. माँग के नियम की व्याख्या कीजिए। अथवा क्या' माँग का नियम' गुणात्मक कथन है या परिमाणात्मक कथन ?
उत्तर : किसी वस्तु की माँग और कीमत परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं। इस सम्बन्ध को माँग के नियम द्वारा व्यक्त किया जाता है। माँग का नियम यह बताता है कि किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग कम हो जाती है तथा कीमत में कमी होने से माँग बढ़ जाती है।
इस प्रकार वस्तु के मूल्य एवं उसकी माँग के मध्य विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। यही माँग का नियम है।
माँग के नियम के सम्बन्ध में एक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि यह नियम एक गुणात्मक कथन है, परिमाणात्मक नहीं अर्थात् इस नियम का केवल यह अभिप्राय है कि मूल्य के बढ़ने पर माँग में कमी होने की प्रवृत्ति पायी जाती है, जबकि मूल्य के कम होने पर माँग में बढ़ने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
उत्तर : किसी वस्तु की माँग और कीमत परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं। इस सम्बन्ध को माँग के नियम द्वारा व्यक्त किया जाता है। माँग का नियम यह बताता है कि किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग कम हो जाती है तथा कीमत में कमी होने से माँग बढ़ जाती है।
इस प्रकार वस्तु के मूल्य एवं उसकी माँग के मध्य विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। यही माँग का नियम है।
माँग के नियम के सम्बन्ध में एक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि यह नियम एक गुणात्मक कथन है, परिमाणात्मक नहीं अर्थात् इस नियम का केवल यह अभिप्राय है कि मूल्य के बढ़ने पर माँग में कमी होने की प्रवृत्ति पायी जाती है, जबकि मूल्य के कम होने पर माँग में बढ़ने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
माँग की कीमत लोच को जानने के लिए वीडियो देखें।
प्र07. माँग की कीमत लोच क्या होती है ? माँग की लोच की कितनी श्रेणियाँ होती है ?
उत्तर : माँग की लोच की परिभाषा -
" माँग की लोच किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के सापेक्ष उसकी माँग में परिवर्तित हुई मात्रा को बताती है। अर्थात् कीमत तथा माँग में विपरित संबध होता है।"
उत्तर : माँग की लोच की परिभाषा -
" माँग की लोच किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के सापेक्ष उसकी माँग में परिवर्तित हुई मात्रा को बताती है। अर्थात् कीमत तथा माँग में विपरित संबध होता है।"
प्रश्न 8. रेखाचित्र की सहायता से माँग के विस्तार एवं माँग में वृद्धि के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : सामान्यतः 'माँग में वृद्धि तथा विस्तार' और 'माँग में कमी या संकुचन' को एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है। किन्तु अर्थशास्त्र में इन दोनों में अन्तर है। माँग का विस्तार या संकुचन - कीमत के बदलने पर माँग की मात्रा में जो परिवर्तन होते हैं, उन्हें माँग का विस्तार या संकुचन कहा जाता है। इस प्रकार के परिवर्तन केवल कीमत में होने वाले परिवर्तनों के कारण होते हैं। इस दशा में माँग तालिका नहीं बदलती और एक ही माँग वक्र पर कीमत परिवर्तनों के साथ माँग की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है। इसे रेखाचित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है। रेखाचित्र - में DD माँग रेखा है। DD माँग रेखा पर नीचे की ओर जाना माँग मात्रा के विस्तार को बतलाता है और ऊपर की ओर जाना उसके संकुचन को बतलाता है। जब कीमत QP से बढ़कर Q2 P2 हो जाती है तो माँग का संकुचन होता है और जब कीमत QP से घटकर Q1P हो जाती है तो माँग का विस्तार होता है। माँग में वृद्धि या कमी - कीमत के अतिरिक्त माँग को निर्धारित करने वाले अन्य तत्त्वों में परिवर्तनों के कारण माँग में जो परिवर्तन होते हैं, उन्हें माँग की वृद्धि या कमी कहा जाता है। कीमत के अतिरिक्त माँग को निर्धारित करने वाले अनेक तत्त्व होते हैं; जैसे--उपभोक्ताओं की आय, उनकी रुचि या पसन्द, जनसंख्या, स्थानापन्न वस्तुओं की प्राप्ति आदि । इनमें से यदि कोई भी तत्त्व बदलता है तो माँग बदलती है, माँग तालिका बदल जाती है और माँग वक्र बदल जाता है। |
प्र09. माँग की मूल्य सापेक्षता (लोच) की माप की विधियों का वर्णन करे।
उत्तर : माँग की मूल्य सापेक्षता की माप की तीन विधियों है।
1. मार्शल की कुल व्यय रीति - इस विधि के अन्तर्गत मूल्य परिवर्तन से पहले और मूल्य परिवर्तन के बाद में कुल व्यय के परिवर्तनों की तुलना करके सम्बन्धित वस्तु की मूल्य सापेक्षता का अनुमान लगाया जाता है। इसे कुल व्यय रीति कहते है।
कुल व्यय = कीमत × माँग की मात्रा
यह तीन प्रकार की होती है।
माँग की मूल्य इकाई के बराबर (ed = 1)
माँग की मूल्य इकाई से अधिक (ed > 1)
माँग की मूल्य इकाई से कम (ed < 1)
2. फ्लकस की प्रतिशत रीति - इस रीति के अन्तर्गत माँग में प्रतिशत परिवर्त की तुलना कीमत में हुऐं प्रतिशत परिवर्तन से की जाती है।
उत्तर : माँग की मूल्य सापेक्षता की माप की तीन विधियों है।
1. मार्शल की कुल व्यय रीति - इस विधि के अन्तर्गत मूल्य परिवर्तन से पहले और मूल्य परिवर्तन के बाद में कुल व्यय के परिवर्तनों की तुलना करके सम्बन्धित वस्तु की मूल्य सापेक्षता का अनुमान लगाया जाता है। इसे कुल व्यय रीति कहते है।
कुल व्यय = कीमत × माँग की मात्रा
यह तीन प्रकार की होती है।
माँग की मूल्य इकाई के बराबर (ed = 1)
माँग की मूल्य इकाई से अधिक (ed > 1)
माँग की मूल्य इकाई से कम (ed < 1)
2. फ्लकस की प्रतिशत रीति - इस रीति के अन्तर्गत माँग में प्रतिशत परिवर्त की तुलना कीमत में हुऐं प्रतिशत परिवर्तन से की जाती है।
3. बिन्दु रीति - इस रीति से माँग रेखा के किसी बिन्दु पर माँग की लोच की गणना की जा सकती है। जिस बिन्दु पर माँग की लोच की गणना करनी हो, उस बिन्दु से नीचे वाले भाग को ऊपर वाले भाग से भाग देने पर माँग की लोच ज्ञात हो जाती है।
प्र0 10. माँग की मूल्य सापेक्षता (लोच) को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर : माँग की मूल्य सापेक्षता को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार है।
1. वस्तु की प्रकृति - सामान्यतः अनिवार्य (जैसे नमक, दाल, चावल आदि) वस्तुओं की माँग मूल्य निरपेक्ष होती है, और आरामदायक या विलासिता की वस्तुओं (जैसे-बिजली, स्कूटर, टीबी आदि )की माँग अधिक मूल्य सापेक्ष होती है।
2. वस्तु के वैकल्पिक प्रयोग - जिन वस्तुओं के वैकल्पिक प्रयोग सम्भव होते है, उनकी माँग अधिक मूल्य सापेक्ष होती है। जैसे - बिजली तथा दूध की माँग ।
3, स्थानापन्न वस्तुएँ - यदि किसी वस्तु की अनेक स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध होती है तो उनकी माँग अधिक मूल्य सापेक्ष होगी, क्योंकि वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने पर उसकी स्थानापन्न वस्तुओं का उपयोग किया जाने लगेगा। इसके विपरीत जिस वस्तु की स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध नहीं है तो उसकी माँग निरपेक्ष होगी।
4.वस्तुओं की संयुक्त माँग - संयुक्त रूप से माँग जाने वाली वस्तुओं ( जैसे - कार -पेट्रोल, पेन-स्याही) में एक वस्तु की मूल्य सापेक्षता दूसरी वस्तु की मूल्य सापेक्षता पर निर्भर करती है। जैसे यदि पेन की माँग मूल्य निरेपक्ष है तो स्याही मी माँग भी मूल्य निरपेक्ष होगी।
5, उपभोक्ता की आदत - यदि उपभोक्ता किसी वस्तु-विशेष के प्रयोग का आदि हो गया है तो ऐसी वस्तु की माँग मूल्य निरपेक्ष होगी। जैसे - सिगरेट तथा शराब पीना, क्योंकि इन वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होने पर भी इनकी माँग में कोई कमी नहीं होती है।
6. उपभोक्ता के रहन-सहन का स्तर - जिस समाज में लोगों का जीवन स्तर जितना ऊँचा होगी, वस्तुओं की माँग उतनी ही कम मूल्य सापेक्ष होगी। क्यों की धनी व्यक्यिों की माँग पर कीमत परिवर्तन का बहुत कम प्रभाव पड़ता है, क्यांकि वे ऊँची कीमत पर भी वस्तुओं को खरीदने में समर्थ होते है।
7, उभोक्ता की आर्थिक स्थिति - धनी लोगों की विलासिता वस्तुओं की माँग मूल्य निरपेक्ष होती है, जबकि इन्हीं वस्तुओं के लिए मध्यम व निधन वर्ग की माँग अध्यधिक मूल्य सापेक्ष होती है।
8. समाज में धन का वितरण - सामान्यतः जिस समाज में धन का असमान वितरण होने पर माँग मूल्य निरपेक्ष होती है और धन के समान वितण के साथ मूल्य सापेक्ष हो जाती है।
उत्तर : माँग की मूल्य सापेक्षता को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार है।
1. वस्तु की प्रकृति - सामान्यतः अनिवार्य (जैसे नमक, दाल, चावल आदि) वस्तुओं की माँग मूल्य निरपेक्ष होती है, और आरामदायक या विलासिता की वस्तुओं (जैसे-बिजली, स्कूटर, टीबी आदि )की माँग अधिक मूल्य सापेक्ष होती है।
2. वस्तु के वैकल्पिक प्रयोग - जिन वस्तुओं के वैकल्पिक प्रयोग सम्भव होते है, उनकी माँग अधिक मूल्य सापेक्ष होती है। जैसे - बिजली तथा दूध की माँग ।
3, स्थानापन्न वस्तुएँ - यदि किसी वस्तु की अनेक स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध होती है तो उनकी माँग अधिक मूल्य सापेक्ष होगी, क्योंकि वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने पर उसकी स्थानापन्न वस्तुओं का उपयोग किया जाने लगेगा। इसके विपरीत जिस वस्तु की स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध नहीं है तो उसकी माँग निरपेक्ष होगी।
4.वस्तुओं की संयुक्त माँग - संयुक्त रूप से माँग जाने वाली वस्तुओं ( जैसे - कार -पेट्रोल, पेन-स्याही) में एक वस्तु की मूल्य सापेक्षता दूसरी वस्तु की मूल्य सापेक्षता पर निर्भर करती है। जैसे यदि पेन की माँग मूल्य निरेपक्ष है तो स्याही मी माँग भी मूल्य निरपेक्ष होगी।
5, उपभोक्ता की आदत - यदि उपभोक्ता किसी वस्तु-विशेष के प्रयोग का आदि हो गया है तो ऐसी वस्तु की माँग मूल्य निरपेक्ष होगी। जैसे - सिगरेट तथा शराब पीना, क्योंकि इन वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होने पर भी इनकी माँग में कोई कमी नहीं होती है।
6. उपभोक्ता के रहन-सहन का स्तर - जिस समाज में लोगों का जीवन स्तर जितना ऊँचा होगी, वस्तुओं की माँग उतनी ही कम मूल्य सापेक्ष होगी। क्यों की धनी व्यक्यिों की माँग पर कीमत परिवर्तन का बहुत कम प्रभाव पड़ता है, क्यांकि वे ऊँची कीमत पर भी वस्तुओं को खरीदने में समर्थ होते है।
7, उभोक्ता की आर्थिक स्थिति - धनी लोगों की विलासिता वस्तुओं की माँग मूल्य निरपेक्ष होती है, जबकि इन्हीं वस्तुओं के लिए मध्यम व निधन वर्ग की माँग अध्यधिक मूल्य सापेक्ष होती है।
8. समाज में धन का वितरण - सामान्यतः जिस समाज में धन का असमान वितरण होने पर माँग मूल्य निरपेक्ष होती है और धन के समान वितण के साथ मूल्य सापेक्ष हो जाती है।
प्र010.माँग का नियम गुणात्मक कथन है या परिमाणात्मक कथन ?
उत्तर : माँग का नियम यह बताता है कि किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग कम हो जाती है तथा कीमत में कमी होने से माँग बढ़ जाती है। इस प्रकार वस्तु के मूल्य एवं उसकी माँग के मध्य विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है।
माँग के नियम एक गुणात्मक कथन है परिमाणात्मक नहीं क्यों की यह नियम केवल इस बात की व्याख्या करता है कि मूल्य के बढ़ने पर माँग में कमी होने की प्रवृत्ति पायी जाती है, जबकि मूल्य के कम होने पर माँग में बढ़ने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
उत्तर : माँग का नियम यह बताता है कि किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग कम हो जाती है तथा कीमत में कमी होने से माँग बढ़ जाती है। इस प्रकार वस्तु के मूल्य एवं उसकी माँग के मध्य विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है।
माँग के नियम एक गुणात्मक कथन है परिमाणात्मक नहीं क्यों की यह नियम केवल इस बात की व्याख्या करता है कि मूल्य के बढ़ने पर माँग में कमी होने की प्रवृत्ति पायी जाती है, जबकि मूल्य के कम होने पर माँग में बढ़ने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
प्र012. सीमांत उपयोगिता हास नियम की व्याख्या कीजिए तथा इसके महत्व एवं सीमाओं को भी समझाइए \ Or
रेखा चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए की कुल उपयोगिता तब अधिकतम होती है जब सीमांत उपयोगिता शून्य हो \ Or
धटती सीमान्त उपयोगिता का नियम अर्थशास्त्र का एक आधारभूत एवं सार्वभौमिक नियम है। व्याख्या कीजिए \
उत्तर : मनुष्य की आवश्यकताएं असीमित होती हैं तथा उनको पूरा करने वाले संसाधन सीमित होते हैं जिसके कारण किसी आवश्यकता विशेष को ही एक समय पर संतुष्ट किया जा सकता है आवश्यकताओं की इसी विशेषता पर सीमांत उपयोगिता हास नियम आधारित है प्रोफेसर मार्शल ने इस नियम को वैज्ञानिक आधार दिया था।
मार्शल की परिभाषा के अनुसार “किसी व्यक्ति के पास वस्तु विशेष के स्टॉक में एक भी हुई मात्रा में वृद्धि होने पर उसे जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है वह स्टॉक में होने वाली प्रत्येक वृद्धि के साथ घटता जाता है” ।
तालिका एवं रेखा चित्र द्वारा स्पष्टीकरण
रेखा चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए की कुल उपयोगिता तब अधिकतम होती है जब सीमांत उपयोगिता शून्य हो \ Or
धटती सीमान्त उपयोगिता का नियम अर्थशास्त्र का एक आधारभूत एवं सार्वभौमिक नियम है। व्याख्या कीजिए \
उत्तर : मनुष्य की आवश्यकताएं असीमित होती हैं तथा उनको पूरा करने वाले संसाधन सीमित होते हैं जिसके कारण किसी आवश्यकता विशेष को ही एक समय पर संतुष्ट किया जा सकता है आवश्यकताओं की इसी विशेषता पर सीमांत उपयोगिता हास नियम आधारित है प्रोफेसर मार्शल ने इस नियम को वैज्ञानिक आधार दिया था।
मार्शल की परिभाषा के अनुसार “किसी व्यक्ति के पास वस्तु विशेष के स्टॉक में एक भी हुई मात्रा में वृद्धि होने पर उसे जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है वह स्टॉक में होने वाली प्रत्येक वृद्धि के साथ घटता जाता है” ।
तालिका एवं रेखा चित्र द्वारा स्पष्टीकरण
रेखा चित्र द्वारा व्याख्या - रेखा चित्र के अनुसार OX पर रोटी की इकाइयां तथा OX पर उससे प्राप्त उपयोगिता को दिखाया गया है तालिका से स्पष्ट है रोटी की प्रथम इकाई से उपयोगिता 8 इकाई के बराबर प्राप्त होती है जैसे जैसे रोटी की एक से अधिक इकाइयों का उपयोग किया जाता है वैसे वैसे उपयोगिता घटती जाती है 6 इकाई पर सीमांत उपयोगिता शून्य हो जाती है यही पूर्ण संतुष्टि का बिंदु कहलाता है इससे अधिक रोटी उपभोग करने पर सातवीं इकाई उपभोक्ता को (अनुपयोगिता) ऋणात्मक प्राप्त होने लगती है।
नियम का महत्व यह नियम विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहन देता है। यह नियम मांग के नियम पर आधारित है। यह नियम सम सीमांत उपयोगिता नियम का आधार है। यह नियम उपभोक्ता की बचत का आधार है। यह नियम जीवन स्तर एवं कार्य क्षमता के संबंध की व्याख्या करता है। यह नियम प्रगतिशील कर प्रणाली उपभोक्ता उत्पादक एवं वित्त मंत्री के लिए महत्वपूर्ण है। नियम की सीमाएं यह नियम निम्नलिखित दशाओं में लागू नहीं होता जब उपभोग की कोई वस्तु की इकाई बहुत छोटी हो, जब उपभोक्ता की मानसिक स्थिति सामान्य ना हो, जब इच्छा दुर्लभ वस्तुएं, मुद्रा आदि के संचय करने की हो आदि। |
प्रश्न 13. स्थानापन्न को परिभाषित कीजिए। ऐसी दो वस्तुओं के उदाहरण दीजिए जो एक-दूसरे की स्थानापन्न हैं।
अथवा स्थानापन्न वस्तुओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर: स्थानापन्न वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका किसी दूसरी वस्तु के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए चाय व कॉफी (चाय का कॉफी के स्थान पर और कॉफी का चाय के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है), वनस्पति घी व मूँगफली का तेल (वनस्पति घी के स्थान पर मूँगफली का तेल और मूँगफली के तेल के स्थान पर वनस्पति घी का प्रयोग किया जा सकता है), जबकि वे वस्तुएँ जिनका उपयोग एकसाथ किया जाता है, पूरक वस्तुएँ कहलाती हैं; जैसे—पेन तथा स्याही, कार तथा पेट्रोल ।
प्रश्न 14. उपभोक्ता के बजट सेट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : माना उपभोक्ता उनमें से X और Y दो वस्तुएँ क्रय करना चाहता है। उपभोक्ता के पास साधन (धन) सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। उसके लिए उपलब्ध उपभोग बण्डल दोनों वस्तुओं की कीमत तथा उसकी आय पर निर्भर करता है। निश्चित आय तथा दोनों वस्तुओं की कीमतें दी होने पर उपभोक्ता केवल उन्हीं बण्डलों को खरीद सकता है जिनका मूल्य उसकी आय से कम या आय के बराबर हो । उपभोक्ता के लिए उपलब्ध बण्डलों के सेट को बजट सेट कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, बजट सेट उन सभी बण्डलों का संग्रह है जिन्हें उपभोक्ता प्रचलित बाजार कीमत पर खरीद सकता है।
उदाहरण – माना उपभोक्ता की आय M है तथा दोनों वस्तुओं की कीमतें क्रमश: P1 तथा P2 हैं। माना उपभोक्ता वस्तु 1 की x 1 इकाइयाँ खरीदना चाहता है तो उसे कुल मिलाकर P1x1 धन व्यय करना पड़ेगा। इसी प्रकार से यदि उपभोक्ता वस्तु 2 की x2 इकाइयाँ खरीदना चाहता है तो उसे P2x2 धन व्यय करना पड़ेगा। इसलिए यदि उपभोक्ता वस्तु 1 की x 1 तथा वस्तु 2 की X2 इकाइयों का बण्डल खरीदना चाहता है तो उसे P1X 1 + P2x2 धनराशि व्यय करनी होगी। वह यह बण्डल तभी खरीद पाएगा जब उसके पास कम-से-कम P11 + P2x2 धनराशि हो ।
Formula = P1x1 + P2x2 =SM
अथवा स्थानापन्न वस्तुओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर: स्थानापन्न वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका किसी दूसरी वस्तु के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए चाय व कॉफी (चाय का कॉफी के स्थान पर और कॉफी का चाय के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है), वनस्पति घी व मूँगफली का तेल (वनस्पति घी के स्थान पर मूँगफली का तेल और मूँगफली के तेल के स्थान पर वनस्पति घी का प्रयोग किया जा सकता है), जबकि वे वस्तुएँ जिनका उपयोग एकसाथ किया जाता है, पूरक वस्तुएँ कहलाती हैं; जैसे—पेन तथा स्याही, कार तथा पेट्रोल ।
प्रश्न 14. उपभोक्ता के बजट सेट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : माना उपभोक्ता उनमें से X और Y दो वस्तुएँ क्रय करना चाहता है। उपभोक्ता के पास साधन (धन) सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। उसके लिए उपलब्ध उपभोग बण्डल दोनों वस्तुओं की कीमत तथा उसकी आय पर निर्भर करता है। निश्चित आय तथा दोनों वस्तुओं की कीमतें दी होने पर उपभोक्ता केवल उन्हीं बण्डलों को खरीद सकता है जिनका मूल्य उसकी आय से कम या आय के बराबर हो । उपभोक्ता के लिए उपलब्ध बण्डलों के सेट को बजट सेट कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, बजट सेट उन सभी बण्डलों का संग्रह है जिन्हें उपभोक्ता प्रचलित बाजार कीमत पर खरीद सकता है।
उदाहरण – माना उपभोक्ता की आय M है तथा दोनों वस्तुओं की कीमतें क्रमश: P1 तथा P2 हैं। माना उपभोक्ता वस्तु 1 की x 1 इकाइयाँ खरीदना चाहता है तो उसे कुल मिलाकर P1x1 धन व्यय करना पड़ेगा। इसी प्रकार से यदि उपभोक्ता वस्तु 2 की x2 इकाइयाँ खरीदना चाहता है तो उसे P2x2 धन व्यय करना पड़ेगा। इसलिए यदि उपभोक्ता वस्तु 1 की x 1 तथा वस्तु 2 की X2 इकाइयों का बण्डल खरीदना चाहता है तो उसे P1X 1 + P2x2 धनराशि व्यय करनी होगी। वह यह बण्डल तभी खरीद पाएगा जब उसके पास कम-से-कम P11 + P2x2 धनराशि हो ।
Formula = P1x1 + P2x2 =SM
आंकिक के प्रश्न
प्र0 1. एक उपभोक्ता एक वस्तु रू0 3 प्रति इकाई कीमत होने पर वस्तु की 40 इकाई की खरीद करता है। अगर कीमत बढ़कर रू0 4 प्रति इकाई हो जाने पर वस्तु की खरीद धटकर 30 इकाई हो जाती है। कुल व्यय विधि से गणना करते हुए माँग की कीमत लोच बताइए।
प्र0 2. निम्न तालिका से एक रेखाचित्र का निर्माण कीजिए तथा सन्तुलन कीमत प्रदर्शित कीजिए।
ACTIVITY-1
ACTIVITY-1
ASSESSMENT (मूल्यांकन)
ASSESSMENT (मूल्यांकन)
सभी प्रश्न करना अनिवार्य है। प्रश्न बहुविकल्पीय प्रकार के होगें।