6. प्रतिस्पद्र्धारहित बाजार
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बहुविकल्पीय उत्तरीय प्रश्न
1.बाजार स्थिति जिसमें वस्तु का केवल एक विक्रेता होता है।
*एकाधिकार
अल्पाधिकार
द्वाधिकार
कोई नहीं।
2.एकाधिकारी से आशय है ।
अपने क्षेत्र में एक ही उत्पादक
वस्तु की कोई निकट स्थानापन्न ना होना
फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध
*उपर्युक्त सभी
3.बाजार की निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता है ।
एक क्षेत्र
क्रेताओं और विक्रेताओं की स्थिति
वस्तु का एक मूल्य
*उपर्युक्त सभी
4.एकाधिकृत प्रतियोगिता की धारणा को दिया है ।
हिक्स ने
*चेंबरलिंन ने
श्रीमती रॉबिंसन ने
सेम्युल्सन ने
5.किस बाजार में सीमांत आगम कीमत के बराबर होता है।
एकाधिकार में
अल्पाधिकार में
द्वाधिकार में
*पूर्ण प्रतियोगिता में
6.एक अधिकारी फार्म निर्धारित कर सकती है।
वस्तु की कीमत तथा मांग
कीमत तथा बेचे जाने वाला उत्पादन
कीमत तथा बिक्री की मात्रा
*कीमत तथा बिक्री की मात्रा दोनों
7.बाजार मांग और बाजार पूर्ति समान रहने पर स्थिति अनुरूप होती है।
संतुलित कीमत के बराबर
न्यूनतम कीमत के बराबर
*अधिकतम कीमत के बराबर
कोई नहीं
8.निम्न में से बाजार का कौन सा स्वरूप कीमत निर्धारित होता है ।
एकाधिकार
अल्पाधिकार
*पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता
9.वह बाज़ार जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या कम होती है तथा वस्तु विभेद पाया जाता है।
पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकारी
अल्पाधिकार
*अपूर्ण प्रतियोगिता
10.स्वेदशी बाजार में लागत से अधिक मूल्य पर और विदेशी बाज़ार में लागत से कम मूल्य पर बेचने को ....... कहते है ?
निर्यात
आयात
*राशिपातन
इनमें से काई नहीं
11.बाजार का वर्गीकरण किया जा सकता है ।
समय के आधार पर
क्षेत्र के आधार पर
प्रतियोगिता के आधार
*पर उपर्युक्त सभी
12.वह बाज़ार जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है तथा उनमें प्रतियोगिता होती है। क्या कहते है ?
*पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकार
अल्पाधिकार
अपूर्ण प्रतियोगिता
13.वस्तु विभेद किस बाज़ार में पाया जाता है ?
पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकार
*अल्पाधिकार
अपूर्ण प्रतियोगिता
14.वह बाज़ार जिसमें वस्तु का एक उत्पादक व विक्रेता होता है और उसका पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण होता है ?
पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकारी
अल्पाधिकार
*अपूर्ण प्रतियोगिता
15.एकाधिकारी बाज़ार का मुख्य लक्ष्य क्या होता है ?
बिक्री बढ़ना
पूर्ति पर नियन्त्रण
लाभ कमाना
*कीमत पर नियन्त्रण
16.एकाधिकारी का___________ ?
उत्पादन एवं उपभोग दोनों पर नियंत्रण होता है
*केवल पूर्ति पर नियंत्रण होता है
मांग और पूर्ति पर नियंत्रण होता है
कीमत एवं लाभ दोनों पर नियंत्रण होता है
17.अल्पाधिकार होता है
*पूर्ण प्रतियोगिता का एक रूप
अपूर्ण प्रतियोगिता का एक रूप
एकाधिकार का एक रूप
इनमें से कोई नहीं
18.वह बाज़ार जिसमें विक्रेता मूल्य पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है। और फर्मो का प्रवेश पूर्णतः प्रतिबन्धित होता है।
पूर्ण प्रतियोगिता
*एकाधिकारी
अल्पाधिकार
अपूर्ण प्रतियोगिता
19.वह बाज़ार जिसमें दो उत्पादक होते है और उत्पादन कार्य पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रूप से करते है।
पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकारी
अल्पाधिकार
*द्वयाधिकार
20.वस्तु - विभेद तथा विक्रय लागतें कौन - से बाज़ार की विशेषताएं है ?
*पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकारी
अल्पाधिकार
द्वयाधिकार
21.वस्तु को भिन्न-भिन्न विक्रताओं को भिन्न कीमतों पर बेचना ही ......................... कहलाता है ?
*कीमत विभेद
वस्तु विभेद
उत्पादन
उपर्युक्त सभी
22.अपूर्ण प्रतियोगिता की अवधारणा किसने दी ?
*बाँमोल
श्रीमती जाँन रोबिन्सन
सैमुअल्सन
चैम्बरलिन
*एकाधिकार
अल्पाधिकार
द्वाधिकार
कोई नहीं।
2.एकाधिकारी से आशय है ।
अपने क्षेत्र में एक ही उत्पादक
वस्तु की कोई निकट स्थानापन्न ना होना
फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध
*उपर्युक्त सभी
3.बाजार की निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता है ।
एक क्षेत्र
क्रेताओं और विक्रेताओं की स्थिति
वस्तु का एक मूल्य
*उपर्युक्त सभी
4.एकाधिकृत प्रतियोगिता की धारणा को दिया है ।
हिक्स ने
*चेंबरलिंन ने
श्रीमती रॉबिंसन ने
सेम्युल्सन ने
5.किस बाजार में सीमांत आगम कीमत के बराबर होता है।
एकाधिकार में
अल्पाधिकार में
द्वाधिकार में
*पूर्ण प्रतियोगिता में
6.एक अधिकारी फार्म निर्धारित कर सकती है।
वस्तु की कीमत तथा मांग
कीमत तथा बेचे जाने वाला उत्पादन
कीमत तथा बिक्री की मात्रा
*कीमत तथा बिक्री की मात्रा दोनों
7.बाजार मांग और बाजार पूर्ति समान रहने पर स्थिति अनुरूप होती है।
संतुलित कीमत के बराबर
न्यूनतम कीमत के बराबर
*अधिकतम कीमत के बराबर
कोई नहीं
8.निम्न में से बाजार का कौन सा स्वरूप कीमत निर्धारित होता है ।
एकाधिकार
अल्पाधिकार
*पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता
9.वह बाज़ार जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या कम होती है तथा वस्तु विभेद पाया जाता है।
पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकारी
अल्पाधिकार
*अपूर्ण प्रतियोगिता
10.स्वेदशी बाजार में लागत से अधिक मूल्य पर और विदेशी बाज़ार में लागत से कम मूल्य पर बेचने को ....... कहते है ?
निर्यात
आयात
*राशिपातन
इनमें से काई नहीं
11.बाजार का वर्गीकरण किया जा सकता है ।
समय के आधार पर
क्षेत्र के आधार पर
प्रतियोगिता के आधार
*पर उपर्युक्त सभी
12.वह बाज़ार जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है तथा उनमें प्रतियोगिता होती है। क्या कहते है ?
*पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकार
अल्पाधिकार
अपूर्ण प्रतियोगिता
13.वस्तु विभेद किस बाज़ार में पाया जाता है ?
पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकार
*अल्पाधिकार
अपूर्ण प्रतियोगिता
14.वह बाज़ार जिसमें वस्तु का एक उत्पादक व विक्रेता होता है और उसका पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण होता है ?
पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकारी
अल्पाधिकार
*अपूर्ण प्रतियोगिता
15.एकाधिकारी बाज़ार का मुख्य लक्ष्य क्या होता है ?
बिक्री बढ़ना
पूर्ति पर नियन्त्रण
लाभ कमाना
*कीमत पर नियन्त्रण
16.एकाधिकारी का___________ ?
उत्पादन एवं उपभोग दोनों पर नियंत्रण होता है
*केवल पूर्ति पर नियंत्रण होता है
मांग और पूर्ति पर नियंत्रण होता है
कीमत एवं लाभ दोनों पर नियंत्रण होता है
17.अल्पाधिकार होता है
*पूर्ण प्रतियोगिता का एक रूप
अपूर्ण प्रतियोगिता का एक रूप
एकाधिकार का एक रूप
इनमें से कोई नहीं
18.वह बाज़ार जिसमें विक्रेता मूल्य पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है। और फर्मो का प्रवेश पूर्णतः प्रतिबन्धित होता है।
पूर्ण प्रतियोगिता
*एकाधिकारी
अल्पाधिकार
अपूर्ण प्रतियोगिता
19.वह बाज़ार जिसमें दो उत्पादक होते है और उत्पादन कार्य पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रूप से करते है।
पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकारी
अल्पाधिकार
*द्वयाधिकार
20.वस्तु - विभेद तथा विक्रय लागतें कौन - से बाज़ार की विशेषताएं है ?
*पूर्ण प्रतियोगिता
एकाधिकारी
अल्पाधिकार
द्वयाधिकार
21.वस्तु को भिन्न-भिन्न विक्रताओं को भिन्न कीमतों पर बेचना ही ......................... कहलाता है ?
*कीमत विभेद
वस्तु विभेद
उत्पादन
उपर्युक्त सभी
22.अपूर्ण प्रतियोगिता की अवधारणा किसने दी ?
*बाँमोल
श्रीमती जाँन रोबिन्सन
सैमुअल्सन
चैम्बरलिन
निश्चित उत्तरीय प्रश्न
प्र01 वस्तु विभेद किस बाजार में पाया जाता है ?
उ0 अपूर्ण प्रतियोगिता
प्र02 मूल्य विभेद से आप क्या समझते है ?
उ0 जब एकाधिकारी एक की लागत में उत्पन्न एक ही वस्तु की भिन्न-भिन्न इकाइयों का अलग-अलग ग्राहकों से अलग-अलग बाजारों में लेता है।
प्र03 यदि AR > AC है तो फर्म के लाभ की स्थिति क्या होगी ?
उ0 यदि AR > AC है तो फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होगा।
प्र04 फर्म किस दशा में अपना उत्पादन बन्द कर देगी है ?
उ0 यदि AR से AVC कम होने पर फर्म अपना उत्पादन बन्द कर देगी।
प्र05 एकाधिकारी को अल्पकाल में हानि कब होगी है ?
उ0 यदि AR < AC है तो अल्पकाल में एकाधिकारी को हानि होगी।
प्र06 एकाधिकारी का मुख्य उद्देश्य क्या होता है ?
उ0 एकाधिकारी का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
प्र07 राशिपातन किसे कहते है ?
उ0 जब एकाधिकारी अपनी वस्तु को स्वेदशी बाजार में लागत से अधिक मूल्य पर और विदेशी बाजार में लागत से कम मूल्य पर बेचता है तो उसे राशिपातन कहते है।
प्र08 किस बाजार मे फर्म कीमत प्राप्तकर्त्ता होती है ?
उ0 पूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक उत्पादक या विक्रेता बाजार में प्रचलित कीमत को मान लेती है वह कीमत का निर्धारण नहीं करती।
प्र09 प्रो0 चैम्बरलिन मॉडल किसका विश्लेषण करता है ?
उ0 प्रो0 चैम्बरलिन मॉडल उत्पादन तथा मूल्य दोनों के साम्य का विशलेषण करता है।
प्र010 क्रेता एकाधिकार से क्या आशय है ?
उ0 क्रेता एकाधिकार आशय बाजार की उस दशा से है जिसमें किसी वस्तु अथवा सेवा का केवल एक की क्रेता होता है।
उ0 अपूर्ण प्रतियोगिता
प्र02 मूल्य विभेद से आप क्या समझते है ?
उ0 जब एकाधिकारी एक की लागत में उत्पन्न एक ही वस्तु की भिन्न-भिन्न इकाइयों का अलग-अलग ग्राहकों से अलग-अलग बाजारों में लेता है।
प्र03 यदि AR > AC है तो फर्म के लाभ की स्थिति क्या होगी ?
उ0 यदि AR > AC है तो फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होगा।
प्र04 फर्म किस दशा में अपना उत्पादन बन्द कर देगी है ?
उ0 यदि AR से AVC कम होने पर फर्म अपना उत्पादन बन्द कर देगी।
प्र05 एकाधिकारी को अल्पकाल में हानि कब होगी है ?
उ0 यदि AR < AC है तो अल्पकाल में एकाधिकारी को हानि होगी।
प्र06 एकाधिकारी का मुख्य उद्देश्य क्या होता है ?
उ0 एकाधिकारी का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
प्र07 राशिपातन किसे कहते है ?
उ0 जब एकाधिकारी अपनी वस्तु को स्वेदशी बाजार में लागत से अधिक मूल्य पर और विदेशी बाजार में लागत से कम मूल्य पर बेचता है तो उसे राशिपातन कहते है।
प्र08 किस बाजार मे फर्म कीमत प्राप्तकर्त्ता होती है ?
उ0 पूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक उत्पादक या विक्रेता बाजार में प्रचलित कीमत को मान लेती है वह कीमत का निर्धारण नहीं करती।
प्र09 प्रो0 चैम्बरलिन मॉडल किसका विश्लेषण करता है ?
उ0 प्रो0 चैम्बरलिन मॉडल उत्पादन तथा मूल्य दोनों के साम्य का विशलेषण करता है।
प्र010 क्रेता एकाधिकार से क्या आशय है ?
उ0 क्रेता एकाधिकार आशय बाजार की उस दशा से है जिसमें किसी वस्तु अथवा सेवा का केवल एक की क्रेता होता है।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्र01. बाजार से क्या आशय है ? प्रतियोगिता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण कीजिए।
उ0 बाजार का अर्थ एवं परिभाषा - अर्थशास्त्र की भाषा में बाजार का अर्थ उस समस्त क्षेत्र से होता है जिसमें किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता फेले हुए होते है तथा उनमें स्वतन्त्र प्रतियोगिता पाई जाती है। 6 प्रकार के बाजार वर्तमान समय में पाये जाते है।
उ0 बाजार का अर्थ एवं परिभाषा - अर्थशास्त्र की भाषा में बाजार का अर्थ उस समस्त क्षेत्र से होता है जिसमें किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता फेले हुए होते है तथा उनमें स्वतन्त्र प्रतियोगिता पाई जाती है। 6 प्रकार के बाजार वर्तमान समय में पाये जाते है।
1. पूर्ण बाजार - जब किसी बाजार में पूर्ण बाजार की स्थिति पाई जाती है तो उसे पूर्ण बाजार कहते है। पूर्ण बाजार में क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या होती है, क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है, बाजार में समरूप वस्तु पाई जाती है, वस्तुओं का एक ही मूल्य होता है, फार्मो का बाजार में प्रवेश तथा बाहर जाने की स्वतन्त्रता होती हे, उत्पत्ति के साधन गतिशील होते है। यह व्यावहारिक जगत में नहीं पाई जाती ।
2.अपूर्ण बाजार - जब किसी बाजार में अपूर्ण बाजार की स्थिति पाई जाती है तो उसे अपूर्ण बाजार कहते है। अपूर्ण बाजार में क्रेताओं तथा विक्रेताओं की संख्या कम होती है, क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है, बाजार में समरूप वस्तु नहीं पाई जाती है, वस्तुओं के मल्य में विभिन्नता पाई जाती है, फार्मो का बाजार में प्रवेश तथा बहार जाने की स्वतन्त्रता नहीं होती हे, उत्पत्ति के साधन पूर्ण गतिशील नहीं होते है। यह व्यावहारिक जगत में पाई जाती ।
3.एकाधिकार बाजार - जब किसी बाजार में एकाधिकार बाजार की स्थिति पाई जाती है तो उसे एकाधिकार बाजार कहते है। एकाधिकार में किसी वस्तु का केवल एक उत्पादक अथवा विक्रेता होता है। उसका वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है। वह वस्तु का उत्पादन करता है जिसकी स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध न हो। बाजार में नये फर्मो का प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध रहता है एकाधिकार में वस्तु की माँग की लोच शुन्य होती है। उदाहरण जैसे - सहकारी विभाग, सरकार के फर्म आदि।
4.एकाधिकारी बाजार - उस बाजार को कहते है जिसमें क्रेता और विक्रेता की संख्या अधिक होती है। इसमें वस्तुओं में विभिन्नता पाई जाती है। क्रेता और विक्रेता को बाजार का पूर्ण ज्ञान नहीं रहता। विक्रेता का मूल्य पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। बाजार में फर्मो का प्रवेश व बहिर्गमन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता और गैर-कीमत प्रतियोगिता पाई जाती है।
5.अल्पाधिकार बाजार- यह बाजार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु विशेष के उत्पादों/बिक्रेताओं की संख्या कम होती है और वे एक-दूसरे की कार्यवाही को प्रभावित करते है। अल्पाधिकार बाजार में एकरूप या भेदित वस्तुओं का उत्पादन करती है। वस्तुओं की कीमतों में विभिन्नता जादा नहीं पाई जाती, फर्मों का बाजार में प्रवेश व बहिर्गमन कठिन होता है तथा विज्ञापन तथा बिक्री बढ़ाने की क्रियाएँ अधिक होती है।
6.द्वयाधिकार बाजार - की वह स्थिति है जिसमें वस्तु के केवल दो ही उत्पादक होते है, दोनों एक ही वस्तु बेचते है, दोनों उत्पादकों की वस्तुएँ प्रायः एकरूप होती है, दोनों ही अपने उत्पादन कार्य में स्वतन्त्र हैं एवं दोनों की वस्तुएँ एक-दूसरे से प्रतियोगिता करती है।
प्र02.पूर्ण प्रतियोगिता क्या है ? इसकी विशेषताएँ सविस्तार से समझाइए।
पूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ एवं परिभाषा -
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति है जिसमें क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या होती है, क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है, बाजार में समरूप वस्तु पाई जाती है, वस्तुओं का एक ही मूल्य होता है, फार्मो का बाजार में प्रवेश तथा बहार जाने की स्वतन्त्रता होती हे, उत्पत्ति के साधन गतिशील होते है। यह व्यावहारिक जगत में नहीं पाई जाती ।
1. क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या - पूर्ण प्रतियोगिता बाजार मे क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या होती है जिसके कारण विक्रेता अकेले वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।
2. समरूप वस्तुओं का उत्पादन - पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में लगभग एक ही आकार की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। वस्तुओं के रंग, रूप, गुण आदि में कोई अन्तर नहीं किया जाता है।
3. बाजार का पूर्ण ज्ञान - पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। जिसके कारण कोई भी विक्रेता अधिक कीमत में वस्तुओं की ब्रिकी नहीं कर सकता।
4. फर्मों का बाजार में स्वतन्त्र प्रवेश तथा बहिर्गमन - पूर्ण प्रतियोगिता बाजार मे फर्मों की संख्या बहुत अधिक होती है। जिसके कारण फर्मों को बाजार में प्रवेश करने तथा बाहर जाने की पूर्ण स्वतन्त्रा होती है। अतः एक फर्म के उद्योग या बाजार में प्रवेश करने तथा बाहर जाने से वस्तुओं की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
5. उत्पादन के साधनों की गतिशीलता - पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत उत्पादन के साधन पूर्णतया गतिशील होते है। अर्थात् उत्पादन के साधन एक उत्पादक को छोड़कर दूसरे उत्पादक के पास कार्य कर सकते है।
6. गैर कीमत प्रतियोगिता - पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में गैर कीमत प्रतियोगिता नहीं पाई जाती। अर्थात् पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में विक्रय लागतों का अभाव होता है।
प्र03. एकाधिकार प्रतियोगिता क्या है ? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
एकाधिकार प्रतियोगिता का अर्थ एवं परिभाषा
एकाधिकार बाजार उस बाजार को कहते है जिसमें किसी वस्तु का केवल एक ही उत्पादक अथवा विक्रेता होता है। विक्रेता का वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है।
विशेषताएँ -
1. एकाधिकार अपनी वस्तु का अकेला उत्पादक होता है।
2. बाजार में केवल एक फर्म होती है। जिसका वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है।
3. एकाधिकार वस्तु की कोई निकट स्थानापन्न वस्तु बाजार में नहीं होती।
4. एकाधिकार वस्तु की माँग की लोच शुन्य होती है।
5 एकाधिकार एक फर्म, फर्मों का समूह, सरकार या सहकारी हो सकती है।
प्र04 अल्पाधिकार बाजार किसे कहते है। इसकी क्या विशेषताएं है ?
अल्पाधिकार प्रतियोगिता का अर्थ एवं परिभाषा -
यह बाजार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु विशेष के उत्पादों/बिक्रेताओं की संख्या कम होती है और वे एक-दूसरे की कार्यवाही को प्रभावित करते है। अल्पाधिकार बाजार में एकरूप या भेदित वस्तुओं का उत्पादन करती है। वस्तुओं की कीमतों में विभिन्नता जादा नहीं पाई जाती, फर्मों का बाजार में प्रवेश व बहिर्गमन कठिन होता है तथा विज्ञापन तथा बिक्री बढ़ाने की क्रियाएँ अधिक होती है।
अल्पाधिकार की विशेषताएं -
1. विक्रेताओं की संख्या का कम होना - इस बाजार में विक्रेताओं की कम संख्या होती है। जिसके कारण प्रत्येक विक्रेता कुल बाजार के एक महत्त्वपूर्ण भाग में ही अपनी वस्तुएं बेचता है।
2. समरूप या विभेदात्मक उत्पादन - अल्पाधिकार में वस्तुएं समरूप तथा विभेदात्मक भी हो सकती है।
3. विज्ञापन का महत्त्व - अल्पाधिकार में विज्ञापन या विक्रय लागत का अधिक महत्त्व होता है, क्योंकि प्रत्येक फर्म बाजार में अपना हिस्सा बढ़ाने के लिए विज्ञापन पर व्यय करता है।
4. कीमतों में विभिन्नता - अल्पाधिकार में कीमतों में बहुत ही कम परिवर्तन होते है। इसमें कीमतें स्थिर रहती है।
5. परस्पर निर्भरता - अल्पाधिकार में फर्मों द्वारा निर्णय करने में पारस्परिक निर्भरता होती है।
प्र05. पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत विक्रेता मूल्य स्वीकार करता है, जबकि एकाधिकार के अन्तर्गत विक्रेता मूल्य निर्धारित करता है। विवेचना कीजिए।
क्रेता कयों और कितना मूल्य देने के लिए तत्पर होता है।-
क्रेता वस्तु का मूल्य इसलिए देता है क्योंकि वस्तु में उसकी आवश्यकता को सन्तुष्टि करने का गुण या उपयोगिता होती है। वह किसी वस्तु का अधिक से अधिक उतना ही मूल्य देने के लिए तत्पर होगा जितनी कि उसे वस्तु में सीमान्त उपयोगिता प्राप्त होगी।
कोई भी क्रेता बाजार में किसी वस्तु की विभिन्न इकाइयों का क्रय केवल उस समय तक करता है जब तक वस्तु की सीमान्त इकाई से प्राप्त उपयोगिता की मात्रा वस्तु के लिए दी गई कीमत से अधिक रहती है।
उपयोगिता ह्यस नियम के अनुसार जब हम किसी वस्तु एक से अधिक इकाइयों का उपयोग करते है तो उससे मिलने वाली उपयोगिता निरन्तर धटती जाती है और अन्त में ऐसी स्थिति आ जाती है जब वस्तु की अतिरिक्त इकाई से प्राप्त उपयोगिता वस्तु के लिए दी गई कीमत की उपयोगिता के बराबर हो जाती है। ऐसी स्थिति में वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का क्रय करना उपभोक्ता के लिए आर्थिक लाभदायक नहीं रहता और वह वस्तु का क्रय बन्द कर देता है। अतः हम कह सकते है कि कोई भी क्रेता सीमान्त उपयोगिता से अधिक मूल्य नहीं देगा।
विक्रेता कयों और कितना न्यूनतम मूल्य लेगा -
प्रत्येक उत्पादक या विक्रेता अपनी वस्तु का कुछ न कुछ मूल्य अवश्य लेता है क्योंकि वस्तु को बनाने में कुछ लागत अवश्य आती है। विक्रेता वस्तु का सीमान्त लागत के बराबर मूल्य अवश्य लेगा। इस प्रकार वस्तु की सीमान्त उत्पादन लागत वह न्यूनतम मूल्य है जो विक्रेता या उत्पादक को अवश्य प्राप्त होना चाहिए। इस प्रकार उत्पादन लागत कीमत निर्धारण की न्यूनतम सीमा हुई। इस प्रकार उत्पादक वस्तु की सीमान्त लागत के बराबर अवश्य की मूल्य लेगा।
2.अपूर्ण बाजार - जब किसी बाजार में अपूर्ण बाजार की स्थिति पाई जाती है तो उसे अपूर्ण बाजार कहते है। अपूर्ण बाजार में क्रेताओं तथा विक्रेताओं की संख्या कम होती है, क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है, बाजार में समरूप वस्तु नहीं पाई जाती है, वस्तुओं के मल्य में विभिन्नता पाई जाती है, फार्मो का बाजार में प्रवेश तथा बहार जाने की स्वतन्त्रता नहीं होती हे, उत्पत्ति के साधन पूर्ण गतिशील नहीं होते है। यह व्यावहारिक जगत में पाई जाती ।
3.एकाधिकार बाजार - जब किसी बाजार में एकाधिकार बाजार की स्थिति पाई जाती है तो उसे एकाधिकार बाजार कहते है। एकाधिकार में किसी वस्तु का केवल एक उत्पादक अथवा विक्रेता होता है। उसका वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है। वह वस्तु का उत्पादन करता है जिसकी स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध न हो। बाजार में नये फर्मो का प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध रहता है एकाधिकार में वस्तु की माँग की लोच शुन्य होती है। उदाहरण जैसे - सहकारी विभाग, सरकार के फर्म आदि।
4.एकाधिकारी बाजार - उस बाजार को कहते है जिसमें क्रेता और विक्रेता की संख्या अधिक होती है। इसमें वस्तुओं में विभिन्नता पाई जाती है। क्रेता और विक्रेता को बाजार का पूर्ण ज्ञान नहीं रहता। विक्रेता का मूल्य पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। बाजार में फर्मो का प्रवेश व बहिर्गमन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता और गैर-कीमत प्रतियोगिता पाई जाती है।
5.अल्पाधिकार बाजार- यह बाजार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु विशेष के उत्पादों/बिक्रेताओं की संख्या कम होती है और वे एक-दूसरे की कार्यवाही को प्रभावित करते है। अल्पाधिकार बाजार में एकरूप या भेदित वस्तुओं का उत्पादन करती है। वस्तुओं की कीमतों में विभिन्नता जादा नहीं पाई जाती, फर्मों का बाजार में प्रवेश व बहिर्गमन कठिन होता है तथा विज्ञापन तथा बिक्री बढ़ाने की क्रियाएँ अधिक होती है।
6.द्वयाधिकार बाजार - की वह स्थिति है जिसमें वस्तु के केवल दो ही उत्पादक होते है, दोनों एक ही वस्तु बेचते है, दोनों उत्पादकों की वस्तुएँ प्रायः एकरूप होती है, दोनों ही अपने उत्पादन कार्य में स्वतन्त्र हैं एवं दोनों की वस्तुएँ एक-दूसरे से प्रतियोगिता करती है।
प्र02.पूर्ण प्रतियोगिता क्या है ? इसकी विशेषताएँ सविस्तार से समझाइए।
पूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ एवं परिभाषा -
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति है जिसमें क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या होती है, क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है, बाजार में समरूप वस्तु पाई जाती है, वस्तुओं का एक ही मूल्य होता है, फार्मो का बाजार में प्रवेश तथा बहार जाने की स्वतन्त्रता होती हे, उत्पत्ति के साधन गतिशील होते है। यह व्यावहारिक जगत में नहीं पाई जाती ।
1. क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या - पूर्ण प्रतियोगिता बाजार मे क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या होती है जिसके कारण विक्रेता अकेले वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।
2. समरूप वस्तुओं का उत्पादन - पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में लगभग एक ही आकार की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। वस्तुओं के रंग, रूप, गुण आदि में कोई अन्तर नहीं किया जाता है।
3. बाजार का पूर्ण ज्ञान - पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। जिसके कारण कोई भी विक्रेता अधिक कीमत में वस्तुओं की ब्रिकी नहीं कर सकता।
4. फर्मों का बाजार में स्वतन्त्र प्रवेश तथा बहिर्गमन - पूर्ण प्रतियोगिता बाजार मे फर्मों की संख्या बहुत अधिक होती है। जिसके कारण फर्मों को बाजार में प्रवेश करने तथा बाहर जाने की पूर्ण स्वतन्त्रा होती है। अतः एक फर्म के उद्योग या बाजार में प्रवेश करने तथा बाहर जाने से वस्तुओं की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
5. उत्पादन के साधनों की गतिशीलता - पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत उत्पादन के साधन पूर्णतया गतिशील होते है। अर्थात् उत्पादन के साधन एक उत्पादक को छोड़कर दूसरे उत्पादक के पास कार्य कर सकते है।
6. गैर कीमत प्रतियोगिता - पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में गैर कीमत प्रतियोगिता नहीं पाई जाती। अर्थात् पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में विक्रय लागतों का अभाव होता है।
प्र03. एकाधिकार प्रतियोगिता क्या है ? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
एकाधिकार प्रतियोगिता का अर्थ एवं परिभाषा
एकाधिकार बाजार उस बाजार को कहते है जिसमें किसी वस्तु का केवल एक ही उत्पादक अथवा विक्रेता होता है। विक्रेता का वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है।
विशेषताएँ -
1. एकाधिकार अपनी वस्तु का अकेला उत्पादक होता है।
2. बाजार में केवल एक फर्म होती है। जिसका वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है।
3. एकाधिकार वस्तु की कोई निकट स्थानापन्न वस्तु बाजार में नहीं होती।
4. एकाधिकार वस्तु की माँग की लोच शुन्य होती है।
5 एकाधिकार एक फर्म, फर्मों का समूह, सरकार या सहकारी हो सकती है।
प्र04 अल्पाधिकार बाजार किसे कहते है। इसकी क्या विशेषताएं है ?
अल्पाधिकार प्रतियोगिता का अर्थ एवं परिभाषा -
यह बाजार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु विशेष के उत्पादों/बिक्रेताओं की संख्या कम होती है और वे एक-दूसरे की कार्यवाही को प्रभावित करते है। अल्पाधिकार बाजार में एकरूप या भेदित वस्तुओं का उत्पादन करती है। वस्तुओं की कीमतों में विभिन्नता जादा नहीं पाई जाती, फर्मों का बाजार में प्रवेश व बहिर्गमन कठिन होता है तथा विज्ञापन तथा बिक्री बढ़ाने की क्रियाएँ अधिक होती है।
अल्पाधिकार की विशेषताएं -
1. विक्रेताओं की संख्या का कम होना - इस बाजार में विक्रेताओं की कम संख्या होती है। जिसके कारण प्रत्येक विक्रेता कुल बाजार के एक महत्त्वपूर्ण भाग में ही अपनी वस्तुएं बेचता है।
2. समरूप या विभेदात्मक उत्पादन - अल्पाधिकार में वस्तुएं समरूप तथा विभेदात्मक भी हो सकती है।
3. विज्ञापन का महत्त्व - अल्पाधिकार में विज्ञापन या विक्रय लागत का अधिक महत्त्व होता है, क्योंकि प्रत्येक फर्म बाजार में अपना हिस्सा बढ़ाने के लिए विज्ञापन पर व्यय करता है।
4. कीमतों में विभिन्नता - अल्पाधिकार में कीमतों में बहुत ही कम परिवर्तन होते है। इसमें कीमतें स्थिर रहती है।
5. परस्पर निर्भरता - अल्पाधिकार में फर्मों द्वारा निर्णय करने में पारस्परिक निर्भरता होती है।
प्र05. पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत विक्रेता मूल्य स्वीकार करता है, जबकि एकाधिकार के अन्तर्गत विक्रेता मूल्य निर्धारित करता है। विवेचना कीजिए।
क्रेता कयों और कितना मूल्य देने के लिए तत्पर होता है।-
क्रेता वस्तु का मूल्य इसलिए देता है क्योंकि वस्तु में उसकी आवश्यकता को सन्तुष्टि करने का गुण या उपयोगिता होती है। वह किसी वस्तु का अधिक से अधिक उतना ही मूल्य देने के लिए तत्पर होगा जितनी कि उसे वस्तु में सीमान्त उपयोगिता प्राप्त होगी।
कोई भी क्रेता बाजार में किसी वस्तु की विभिन्न इकाइयों का क्रय केवल उस समय तक करता है जब तक वस्तु की सीमान्त इकाई से प्राप्त उपयोगिता की मात्रा वस्तु के लिए दी गई कीमत से अधिक रहती है।
उपयोगिता ह्यस नियम के अनुसार जब हम किसी वस्तु एक से अधिक इकाइयों का उपयोग करते है तो उससे मिलने वाली उपयोगिता निरन्तर धटती जाती है और अन्त में ऐसी स्थिति आ जाती है जब वस्तु की अतिरिक्त इकाई से प्राप्त उपयोगिता वस्तु के लिए दी गई कीमत की उपयोगिता के बराबर हो जाती है। ऐसी स्थिति में वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का क्रय करना उपभोक्ता के लिए आर्थिक लाभदायक नहीं रहता और वह वस्तु का क्रय बन्द कर देता है। अतः हम कह सकते है कि कोई भी क्रेता सीमान्त उपयोगिता से अधिक मूल्य नहीं देगा।
विक्रेता कयों और कितना न्यूनतम मूल्य लेगा -
प्रत्येक उत्पादक या विक्रेता अपनी वस्तु का कुछ न कुछ मूल्य अवश्य लेता है क्योंकि वस्तु को बनाने में कुछ लागत अवश्य आती है। विक्रेता वस्तु का सीमान्त लागत के बराबर मूल्य अवश्य लेगा। इस प्रकार वस्तु की सीमान्त उत्पादन लागत वह न्यूनतम मूल्य है जो विक्रेता या उत्पादक को अवश्य प्राप्त होना चाहिए। इस प्रकार उत्पादन लागत कीमत निर्धारण की न्यूनतम सीमा हुई। इस प्रकार उत्पादक वस्तु की सीमान्त लागत के बराबर अवश्य की मूल्य लेगा।
प्र06. पूर्ण, अपूर्ण तथा एकाधिकार प्रतियोगिता में क्या अन्तर है।
प्र07. एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में क्या अन्तर है।
प्र08. मितव्ययिता (बचतें) के विरोधामास की व्याख्या कीजिए।
बड़े पैमाने की मितव्ययिताएँ या बचतें
आजकल विश्व में बड़े पैमाने में उत्पादन किया जाता है और इसकी प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण है की बड़े पैमाने में उत्पादन करने फर्मों को कई प्रकार की मितव्ययिता या बचतें प्राप्त होती है और उनके लाभ में बहुत अधिक वृद्वि होती है।
बचतें दो प्रकार की हाती है।
बड़े पैमाने की मितव्ययिताएँ या बचतें
आजकल विश्व में बड़े पैमाने में उत्पादन किया जाता है और इसकी प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण है की बड़े पैमाने में उत्पादन करने फर्मों को कई प्रकार की मितव्ययिता या बचतें प्राप्त होती है और उनके लाभ में बहुत अधिक वृद्वि होती है।
बचतें दो प्रकार की हाती है।
आन्तरिक बचतें - प्रा0 मार्शल के अनुसार आन्तरिक बचतें वे होती है तो किसी फर्म को उसकी कार्य कुश्लता आदि के कारण प्राप्त होती है। ये दो प्रकार की होती है।
1. साधनों की अविभाज्यता - कुछ साधन ऐसे होते है तो विभाजित नहीं किये जा सकते जैसे मशीन, विपणन, वित्त, अनुसंधान आदि। परन्तु जब फर्म के आकार में वृद्वि होती है तो इसका पुरा उपयोग होने लगता है और उत्पादन तेजी से बड़ता है जिससे आन्तरिक बचतें प्राप्त होने लगती है।2. विशिष्टीकरण- फर्म के आकर में वृद्वि होने पर प्रत्येक व्यक्ति वही कार्य करता है जिसमें उसे विशिष्टता प्राप्त होती है। प्रत्येक कार्य को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर के किया जाता है जिससे कार्य में तेजी आती है और बडे़ पैमाने में आन्तरिक बचतें प्राप्त होती है।
बाह्य बचतें- ये बचतें किसी फर्म को तभी प्राप्त होती जब उद्योग किसी निकटवर्ती बाजार क्षेत्र के पास होना, कच्चे माल की निकटता, यातायात के कुशल साधन तथा एक स्थान पर केन्द्रित फर्मों द्वारा विशिष्टकरण को अपनाना।
बड़े पैमाने की अमितव्ययिताएँ
उत्पादन के पैमाने के विस्तार से फर्म को अनेक आन्तरिक और बाह्य बचतें प्राप्त होती है। किन्तु ये बचतें फर्म के अनुकूलतम स्तर तक विस्तार तक ही प्राप्त होती है। इसके बाद भी यदि फर्म का विस्तार किया जाता है तो अनेक प्रकार के अपव्यय बढ़ जाते है। जैसे-
1. प्रबन्धकीय अकुशलता- उत्पादन के अनुकूलतम स्तर से अधिक हो जाने पर पर प्रबन्धकीय अकुशलता बढ़ जाती है और विभिन्न उत्पादन क्रियाओं के बीच नियन्त्रण ढीला पड़ जाता है। इन सब के कारण आन्तरिक अपव्यय बढ़ जाता है।
2. वित्तीय अपव्यय- एकाधिकार व सम्पत्ति के क्रेन्द्रीकरण को रोकने के लिए सरकार बड़े उद्योगों पर अनेक प्रकार प्रतिबन्ध व कर लगाती है जिससे उद्योगों का अपव्यय बढ़ जाता है।
3. तकनीकी अपव्यय- प्रत्येक संयंत्र की एक क्षमता होती है और उससे अधिक उत्पादन किया जाता है तो टूट-फूट, मशीनों खराब होना के व्यय बढ़ जाता है।
4. जोखिम उठाने के अपव्यय- बड़ी फर्म में तालाबन्दी, हड़ताल, श्रमिकों की छँटनी आदि की जोखिमें अधिक रहते हैं। इन सब कारणों से फर्म को नुकसान और अपव्यय होता है।
बाह्य अमितव्ययिताएँ-
1. प्रतियोगिता के दोष- फर्मों के आकार बढ़ जाने से अन्य उद्योग से प्रतियोगिता होने से कई प्रकार के खर्च बढ़ने से अपव्यय बढ़ जाता है।
2. वर्ग संधर्ष- बड़े उद्योगों में बहुत अधिक संख्या में मजदूर कम वेतन पर कार्य करते है जिसके कारण मालिकों तथा मजदूरों के बीच वर्ग संधर्ष होता रहता है जिसके कारण कभी अद्योग के बंद होने से अपव्यय बढ़ जाता है।
3. अति उत्पादन का भय- उद्योग के आकार के बढ़ जाने पर वस्तुओं के अति उत्पादन का भय बना रहता है जिससे आर्थिक मन्दी व बेरोजगारी की समस्याएँ पैदा हो जाती है।
1. साधनों की अविभाज्यता - कुछ साधन ऐसे होते है तो विभाजित नहीं किये जा सकते जैसे मशीन, विपणन, वित्त, अनुसंधान आदि। परन्तु जब फर्म के आकार में वृद्वि होती है तो इसका पुरा उपयोग होने लगता है और उत्पादन तेजी से बड़ता है जिससे आन्तरिक बचतें प्राप्त होने लगती है।2. विशिष्टीकरण- फर्म के आकर में वृद्वि होने पर प्रत्येक व्यक्ति वही कार्य करता है जिसमें उसे विशिष्टता प्राप्त होती है। प्रत्येक कार्य को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर के किया जाता है जिससे कार्य में तेजी आती है और बडे़ पैमाने में आन्तरिक बचतें प्राप्त होती है।
बाह्य बचतें- ये बचतें किसी फर्म को तभी प्राप्त होती जब उद्योग किसी निकटवर्ती बाजार क्षेत्र के पास होना, कच्चे माल की निकटता, यातायात के कुशल साधन तथा एक स्थान पर केन्द्रित फर्मों द्वारा विशिष्टकरण को अपनाना।
बड़े पैमाने की अमितव्ययिताएँ
उत्पादन के पैमाने के विस्तार से फर्म को अनेक आन्तरिक और बाह्य बचतें प्राप्त होती है। किन्तु ये बचतें फर्म के अनुकूलतम स्तर तक विस्तार तक ही प्राप्त होती है। इसके बाद भी यदि फर्म का विस्तार किया जाता है तो अनेक प्रकार के अपव्यय बढ़ जाते है। जैसे-
1. प्रबन्धकीय अकुशलता- उत्पादन के अनुकूलतम स्तर से अधिक हो जाने पर पर प्रबन्धकीय अकुशलता बढ़ जाती है और विभिन्न उत्पादन क्रियाओं के बीच नियन्त्रण ढीला पड़ जाता है। इन सब के कारण आन्तरिक अपव्यय बढ़ जाता है।
2. वित्तीय अपव्यय- एकाधिकार व सम्पत्ति के क्रेन्द्रीकरण को रोकने के लिए सरकार बड़े उद्योगों पर अनेक प्रकार प्रतिबन्ध व कर लगाती है जिससे उद्योगों का अपव्यय बढ़ जाता है।
3. तकनीकी अपव्यय- प्रत्येक संयंत्र की एक क्षमता होती है और उससे अधिक उत्पादन किया जाता है तो टूट-फूट, मशीनों खराब होना के व्यय बढ़ जाता है।
4. जोखिम उठाने के अपव्यय- बड़ी फर्म में तालाबन्दी, हड़ताल, श्रमिकों की छँटनी आदि की जोखिमें अधिक रहते हैं। इन सब कारणों से फर्म को नुकसान और अपव्यय होता है।
बाह्य अमितव्ययिताएँ-
1. प्रतियोगिता के दोष- फर्मों के आकार बढ़ जाने से अन्य उद्योग से प्रतियोगिता होने से कई प्रकार के खर्च बढ़ने से अपव्यय बढ़ जाता है।
2. वर्ग संधर्ष- बड़े उद्योगों में बहुत अधिक संख्या में मजदूर कम वेतन पर कार्य करते है जिसके कारण मालिकों तथा मजदूरों के बीच वर्ग संधर्ष होता रहता है जिसके कारण कभी अद्योग के बंद होने से अपव्यय बढ़ जाता है।
3. अति उत्पादन का भय- उद्योग के आकार के बढ़ जाने पर वस्तुओं के अति उत्पादन का भय बना रहता है जिससे आर्थिक मन्दी व बेरोजगारी की समस्याएँ पैदा हो जाती है।