6. ग्रामीण विकास रोजगार
Text Questions and Answers
प्रश्न 1. ग्रामीण विकास का क्या अर्थ है? ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्नों को स्पष्ट करें।
उत्तर: ग्रामीण विकास का अर्थ-ग्रामीण विकास का तात्पर्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उन घटकों के विकास पर ध्यान केन्द्रित करने पर बल देना है जो वर्तमान में पिछड़ी हुई अवस्था में हैं किन्तु वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सर्वांगीण विकास हेतु आवश्यक हैं।
दूसरे शब्दों में ग्रामीण विकास का अभिप्राय उन आवश्यक सुविधाओं को उपलब्ध करवाना है जिनसे ग्रामीण क्षेत्र के लोग सही ढंग से अपना जीवनयापन कर सकें तथा साथ ही वहाँ के लोगों की उत्पादकता में भी वृद्धि हो सके। ग्रामीण विकास के अन्तर्गत कृषि एवं गैर कृषि सुविधाओं एवं संरचना के विकास एवं विस्तार के प्रयास किए जाते हैं।
ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्न/ घटक: ग्रामीण विकास से जुड़े महत्त्वपूर्ण प्रश्न अथवा घटक निम्न प्रकार।
(1) ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता विशेषकर महिला साक्षरता, शिक्षा सुविधाओं एवं कौशल की क्या स्थिति है? उनमें सुधार किया जाना आवश्यक है।
(2) ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता एवं जन स्वास्थ्य सुविधाओं की क्या स्थिति है? ग्रामीण विकास हेतु इनमें सुधार किया जाना आवश्यक है।
(3) ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि-सुधार कार्यक्रमों की क्या स्थिति है? इन कार्यक्रमों को कुशलतापूर्वक क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
(4) भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में आधारित संरचना के विकास का क्या स्तर है? अर्थात् बिजली, सिंचाई, साख सुविधाओं, विपणन, परिवहन सुविधाओं, कृषि अनुसंधान विस्तार एवं सूचना प्रसार की सुविधाएँ कैसी हैं? ग्रामीण विकास हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में आधारित संरचना का विकास अति आवश्यक है।
(5) ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता और समाज के कमजोर वर्गों की जीवन दशाएँ कैसी हैं? ग्रामीण विकास हेतु निर्धनता निवारण कार्यक्रम, रोजगार सृजक कार्यक्रमों एवं कमजोर वर्गों के उत्थान सम्बन्धी कार्यक्रमों को लागू करना अति आवश्यक है।
प्रश्न 2. ग्रामीण विकास में साख के महत्त्व पर चर्चा करें।
उत्तर: ग्रामीण विकास में साख का महत्त्व
ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की विशेष रूप से कृषि से जुड़े हुए लोगों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त कमजोर है अतः उनके लिए साख का विशेष महत्त्व है। ग्रामीण विकास में साख की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ग्रामीण विकास में साख के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) कृषि एवं गैर कृषि कार्यों हेतु: ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है अत: उन्हें कृषि एवं गैर कृषि कार्यों को सम्पन्न करने हेतु साख की आवश्यकता होती है। जिससे ग्रामीण विकास को बल मिलता है।
(2) कृषि उत्पादकता में वृद्धि हेतु: ग्रामीण क्षेत्र में कृषि एवं गैर कृषि कार्यों में उच्च उत्पादकता हेतु विभिन्न आधुनिक कृषि आगतों के प्रयोग के लिए पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है अतः साख की आवश्यकता पड़ती है। पर्याप्त साख उपलब्ध होने से उत्पादकता में वृद्धि होती है।
(3) कृषि आगतों हेतु: ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित होती है तथा कृषि मुख्य रूप से कृषि आगतों, जैसे उन्नत खाद, उन्नत बीज, कृषि उपकरण आदि पर निर्भर करती है। कृषकों की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण वे पर्याप्त कृषि आगतों को प्राप्त नहीं कर पाते अतः उन्हें कृषि साख की आवश्यकता पड़ती है। इस कृषि साख के माध्यम से ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलता है।
(4) कृषि सम्बद्ध क्रियाओं हेतु: ग्रामीण क्षेत्र में कृषि सम्बद्ध क्रियाओं जैसे दुग्ध, पशुपालन, मत्स्य पालन, मुर्गीपालन आदि को कृषि साख के फलस्वरूप बढ़ावा मिलता है, इससे ग्रामीण की आय में वृद्धि होती है।
(5) भू-क्षरण को रोकने हेतु: कृषि भूमि के भूक्षरण होने से कृषकों को नुकसान होता है। अतः भू-क्षरण को रोकने हेतु कृषि वित्त की आवश्यकता पड़ती है।
(6) स्थायी भू-सुधार: कृषि क्षेत्र में उत्पादन वृद्धि हेतु कृषकों को कई स्थायी सुधार करने पड़ते हैं, जैसेस्थायी रूप से उपकरण खरीदना, पम्पसेट लगाना, कुओं का निर्माण, पक्की नालियों का निर्माण आदि। इन सभी कार्यों हेतु कृषकों को दीर्घकालीन साख की आवश्यकता पड़ती है। इस साख के फलस्वरूप ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन मिलता है।
प्रश्न 3.गरीबों की ऋण आवश्यकताएं पूरी करने में अतिलघु साख व्यवस्था की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर: अतिलघु साख व्यवस्था का तात्पर्य स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से साख उपलब्ध करवाने से है। देश में औपचारिक साख व्यवस्था की कमियों को दूर करने हेतु तथा ग्रामीण सामाजिक एवं सामुदायिक विकास हेतु स्वयं सहायता समूहों का प्रादुर्भाव हुआ। इसके अन्तर्गत एक गांव के कुछ लोग मिलकर एक समूह अथवा संगठन बनाते हैं। इस समूह के सभी सदस्य अपनी छोटी-छोटी बचतों को एकत्रित करते हैं तथा इस एकत्र राशि में से जरूरतमंद सदस्यों को उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाया जाता है, इस ऋण को ऋणी छोटी-छोटी आसान किस्तों में चुकाता है।
भारत में वर्ष 2003 के अन्त में देश में लगभग 7 लाख साख प्रदान करने वाले स्वयं सहायता समूह कार्यरत थे। अतः इस प्रकार की साख उपलब्धता को अतिलघु साख कार्यक्रम कहा जाता है। इस अतिलघु साख कार्यक्रम के फलस्वरूप कृषक को छोटे-छोटे ऋण उचित ब्याज दर पर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं जिसे वह आसानी से चुका देता है। स्वयं सहायता समूहों ने महिलाओं के सशक्तिकरण में भी सहायता की है।
प्रश्न 4. सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों के विकास के लिए किए गए प्रयासों की व्याख्या करें।
उत्तर: सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में बाजारों के विकास हेतु बाजारों के नियमन की नीति अपनाई है तथा बाजारों में आधारभूत सुविधाओं का विस्तार किया है तथा गांवों में कई नियमित मंडी परिसरों की स्थापना की गई है। इसके अतिरिक्त सरकार ने व्यवस्थित एवं पारदर्शी विपणन व्यवस्था की स्थापना के प्रयास किए हैं। इसके अतिरिक्त सरकार के निजी व्यापारियों को नियन्त्रित करने हेतु बाजार में हस्तक्षेप की नीति अपनाई है।
प्रश्न 5. आजीविका को धारणीय बनाने के लिए कृषि का विविधीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर: कृषि के विविधीकरण की आवश्यकता इसलिए उत्पन्न हो रही है क्योंकि केवल कृषि के आधार पर आजीविका कमाने में बहुत अधिक जोखिम है अत: कृषि के विविधीकरण के फलस्वरूप केवल कृषि के आधार पर आजीविका कमाने का जोखिम कम हो जाता है। साथ ही ग्रामीण जन समुदाय को उत्पादक और वैकल्पिक धारणीय आजीविका के अवसर भी उपलब्ध होते हैं। कृषि विविधीकरण से लोगों को रोजगार के अनेक विकल्प उपलब्ध हो पाते हैं।
प्रश्न 6. भारत के ग्रामीण विकास में ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
उत्तर: ग्रामीण विकास में बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका: भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आर्थिक स्थिति काफी खराब है अत: उन्हें कृषि एवं गैर कृषि कार्यों हेतु वित्त की आवश्यकता पड़ती है। ग्रामीणों की वित्त आवश्यकता को पूरा करने में बैंकों का महत्वपूर्ण योगदान है। बैंकों के माध्यम से ग्रामीणों को उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होता है। इसके फलस्वरूप उन्हें महाजनों एवं व्यापारियों के शोषण से निर्धन कृषकों एवं श्रमिकों को मुक्ति मिली है। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग व्यवस्था के तीव्र विस्तार |का ग्रामीण कृषि और गैर कृषि उत्पादन, आय एवं रोजगार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हरित क्रान्ति के दौरान बैंक साख का कृषि विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
आलोचनात्मक समीक्षा: हालांकि ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था का ग्रामीण विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है किन्तु अभी भी हमारी ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था पूरी तरह विकसित नहीं है। बैंकिंग व्यवस्था के अन्तर्गत बैंकों द्वारा सही ऋण चाहने वालों को ऋण प्रदान नहीं किया जाता तथा निर्धन व्यक्तियों को भी बैंकों से पर्याप्त ऋण प्राप्त नहीं हो पाता है क्योंकि बैंक भी सम्पन्न लोगों को ही ऋण देना चाहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों के समक्ष ऋणों की वसूली न हो पाने की महत्पूर्ण समस्या है, इन बैंकों की कोई प्रभावपूर्ण ऋण वसूली व्यवस्था नहीं बन पाई है। अत: कृषि ऋण का भुगतान न कर पाने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। अतः अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था पूरी तरह विकसित नहीं हो पाई
प्रश्न 7. कृषि विपणन से आपका क्या अभिप्राय
उत्तर: कृषि विपणन का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिससे देश भर में उत्पादित कृषि पदार्थों का संग्रह, भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन, पैकिंग, वर्गीकरण और वितरण आदि किया जाता है।
प्रश्न 8. कृषि विपणन प्रक्रिया की कुछ बाधाएँ बताइए।
उत्तर: कृषि विपणन की प्रमुख बाधाएँ:
भारत में कृषि पदार्थों के विपणन की प्रमुख समस्याएँ अथवा बाधाएँ अग्न प्रकार हैं।
उत्तर: कृषि विपणन व्यवस्था: हम जो अनाज, फल, सब्जियाँ आदि रोज खाते हैं वे देश के अलग - अलग क्षेत्रों से बाजार व्यवस्था के माध्यम से नियमित रूप से हम तक पहुँचाये जाते हैं। कृषि विपणन वह प्रक्रिया है जिससे देश भर में उत्पादित कृषि पदार्थों का संग्रह, भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन, पैकिंग, वर्गीकरण तथा वितरण आदि किया जाता है। भारत में कृषि विपणन व्यवस्था में अनेक कमियाँ हैं। - भारत में कृषि विपणन व्यवस्था में सुधार हेतु सरकार द्वारा तो प्रयास किए ही जा रहे हैं, साथ ही कई वैकल्पिक |विधियों का भी प्रादुर्भाव हो रहा है।
कृषि विपणन के वैकल्पिक माध्यम: विगत वर्षों में भारत में कृषि विपणन के अनेक वैकल्पिक माध्यमों का प्रादुर्भाव हुआ है। देश में अनेक मण्डियों को विकसित किया गया है जिसमें किसान स्वयं उपभोक्ताओं को अपना उत्पाद बेचते हैं। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में अपनी मंडी, पुणे की हाड़पसार मंडी, आन्ध्रप्रदेश की रायधूबाज मंडी तथा तमिलनाडु की उझावरमंडी के कृषक बाजार आदि इस प्रकार से विकसित हो रहे वैकल्पिक क्रय-विक्रय माध्यम के कुछ उदाहरण हैं।
इसके अतिरिक्त एक अन्य वैकल्पिक विधि विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपनायी जाती है। इस पद्धति के अन्तर्गत ये कम्पनियाँ कृषकों को निःशुल्क खाद-बीज, कीटनाशक एवं अन्य आगतें एवं अन्य आगतें उपलब्ध करवाती हैं तथा कृषकों को उनके उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके उपरान्त कृषकों द्वारा उत्पन्न उत्पादों को भी उसी कम्पनी द्वारा खरीद लिया जाता है। इस प्रकार देश में कृषि विपणन व्यवस्था की कमियों को दूर करने हेतु अनेक वैकल्पिक माध्यमों का प्रादुर्भाव हो रहा है। इससे किसानों के जोखिम में कमी आई है तथा आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
प्रश्न 10. 'स्वर्णिम क्रान्ति' तथा 'हरित क्रान्ति' में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर: भारत में हरित क्रान्ति खाद्यान्नों के क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने हेतु अपनाई गई जबकि स्वर्णिम क्रान्ति का सम्बन्ध बागवानी से है।
प्रश्न 11. क्या सरकार द्वारा कृषि विपणन सुधार के लिए अपनाए गए विभिन्न उपाय पर्याप्त हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: भारत सरकार ने कृषि विपणन सुधार हेतु अनेक प्रयास किए हैं तथा उनके सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं किन्तु फिर भी सरकार द्वारा किए गए विभिन्न प्रयास पर्याप्त नहीं रहे। अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में मण्डियां विकसित नहीं की जा सकी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आधारिक संरचना का नितान्त अभाव है। सरकार द्वारा कृषि विपणन हेतु किए प्रयासों में वित्तीय साधनों का अभाव रहा है। अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में 27,000 मण्डियों के विकसित किए जाने की आवश्यकता है। अतः सरकार द्वारा अपनाए गए विभिन्न उपाय अपर्याप्त हैं।
प्रश्न 12. ग्रामीण विविधीकरण में गैर कृषि रोजगार का महत्त्व समझाइए।
उत्तर: भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है किन्तु सिर्फ कृषि कार्य के आधार पर आजीविका कमाने में बहुत जोखिम होता है क्योंकि किसी कारण से कृषि उपज खराब होने से कृषकों की आमदनी समाप्त हो जाती है। अत: ग्रामीण क्षेत्रों में आमदनी के इस जोखिम को कम करने हेतु ग्रामीण विविधीकरण में गैर कृषि रोजगार का विशेष महत्त्व है। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों, कृषि प्रसंस्करण उद्योग, पशुपालन, मत्स्य पालन, बागवानी आदि गैर कृषि क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कर इस जोखिम को कम किया जा सकता है। इस विविधीकरण के फलस्वरूप लोगों को स्थायी रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं।
प्रश्न 13. विविधीकरण के स्रोत के रूप में पशुपालन, मत्स्यपालन और बागवानी के महत्त्व पर टिप्पणी करें।
उत्तर: विविधीकरण के स्रोत विविधीकरण दो प्रकार से किया जा सकता है। एक तो फसलों के उत्पादन की प्रणाली में परिवर्तन करके तथा दूसरा श्रम शक्ति को खेती से हटाकर अन्य कृषि सम्बद्ध गतिविधियों में लगाकर। इसके फलस्वरूप लोगों को कृषि
के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में स्थायी रोजगार के अवसर उपलब्ध हो पाएंगे। गैर कृषि क्षेत्र में तथा नए वैकल्पिक आजीविका स्रोतों का विकास कर ग्रामीण जनसमुदाय की आय में वृद्धि की जा सकती है। विविधीकरण के अन्तर्गत गैर कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित गतिविधियों को सम्मिलित किया जा सकता है।
(1) पशुपालन - पशुपालन गैर कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत सबसे महत्त्वपूर्ण उत्पादन गतिविधि है। भारत में किसान प्रायः कृषि के साथ-साथ पशुपालन का कार्य करते हैं। वे भैंस, गाय, बकरी, मुगी, बतख आदि को पालते हैं। कृषि से प्राप्त आय अनिश्चित एवं जोखिमपूर्ण होती है किन्तु पशुपालन की आय अधिक स्थायी होती है भारत में पशुपालन से करोड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। पशुपालन से कृषकों की आय एवं जीवन स्तर में वृद्धि होती है।
भारत में पशुपालन के फलस्वरूप विगत वर्षों में दुग्ध, मांस, ऊन, अण्डों आदि के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत में 'ऑपरेशन पलड' के फलस्वरूप डेयरी उद्योग में शानदार प्रगति दिखाई है। इसके साथ ही देश में सहकारिता के आधार पर दुग्ध व्यवसाय से निरन्तर प्रगति हो रही है।
(2) मत्स्यपालन-मत्स्य पालन देश में लोगों की आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में यह आजीविका का मुख्य स्रोत है। पिछले कुछ वर्षों में मत्स्यपालन हेतु बजटीय प्रावधानों में वृद्धि की गई है। साथ ही मत्स्यपालन एवं जल कृषिकी के क्षेत्र में नवीन प्रौद्योगिकी का प्रवेश हुआ है। इससे मत्स्यपालन में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
देश के सकल घरेलू उत्पादन में मत्स्यपालन का योगदान लगभग 0.8 प्रतिशत है। भारत में मछुआरों की आर्थिक स्थिति काफी खराब है किन्तु मत्स्यपालन की सहायता से अपना जीवनयापन कर रहे हैं। देश में मछुआरों की आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु सरकार द्वारा और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
(3) उद्यान विज्ञान (बागवानी): बागवानी, कृषि के अतिरिक्त रोजगार एवं आय उपलब्ध कराने वाली महत्त्वपूर्ण क्रिया है। भारत में अनेक प्रकार के उद्यान एवं बागान हैं। इन उद्यानों में फल, सब्जियों, रेशेदार फसलों, औषधीय तथा सुगंधित पौधे, मसाले, चाय, कॉफी इत्यादि का उत्पादन किया जाता है। इन सभी उत्पादों के माध्यम से रोजगार उपलब्ध होता है, साथ-साथ भोजन एवं पोषण भी उपलब्ध होता है।
भारत में वर्ष 1997 से 2003 की अवधि के दौरान 'स्वर्णिम क्रान्ति' के फलस्वरूप बागवानी में निवेश में वृद्धि हुई। साथ ही बागवानी फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। अतः देश में बागवानी क्षेत्र ने एक धारणीय वैकल्पिक रोजगार का रूप धारण कर लिया है। भारत कई फल एवं मसालों का अग्रणी उत्पादक देश है। बागवानी से कृषकों की आय में काफी सुधार हुआ है। देश में बागवानी के फलस्वरूप ग्रामीण महिलाओं को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए हैं।
(4) अन्य रोजगार/आजीविका विकल्प: भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में गैर कृषि क्षेत्र में पशुपालन, मत्स्यपालन एवं बागवानी के अतिरिक्त अनेक वैकल्पिक रोजगार एवं आजीविका के स्रोत उपलब्ध हैं। इसके अन्तर्गत कई कुटीर एवं लघु उद्योग सम्मिलित हैं, जैसे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, चर्म उद्योग, पर्यटन, मिट्टी के बर्तन बनाना, शिल्प कलाएँ, हथकरघा आदि भारत में सूचना एवं प्रौद्योगिकी में उन्नति के फलस्वरूप रोजगार के कई नए क्षेत्र भी खुल गए हैं।
प्रश्न 14. “सूचना प्रौद्योगिकी, धारणीय विकास तथा खाद्य सुरक्षा की प्राप्ति में बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान करती है।" टिप्पणी करें।
उत्तर: धारणीय विकास तथा खाद्य सुरक्षा की प्राप्ति में सूचना प्रौद्योगिकी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण एवं क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं जिनका अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सूचनाओं और उपयुक्त साफ्टवेयर का प्रयोग कर सरकार सहज ही खाद्य असुरक्षा की आशंका वाले क्षेत्रों का समय से पहले अनुमान लगा सकती है।
इस प्रकार सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से समाज ऐसी विपत्तियों की संभावनाओं को कम या पूरी तरह से समाप्त करने में भी सफल हो सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी का कृषि क्षेत्र पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। नवीन प्रौद्योगिकी की सहायता से मौसम, मृदा दशाओं, उदीयमान तकनीकों आदि की उपयुक्त जानकारी प्राप्त हो सकती है, जिसका उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
नवीन सूचना प्रौद्योगिकी से ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए हैं तथा भविष्य में भी रोजगार के और अधिक अवसर उत्पन्न होने की संभावना है। वर्तमान में भारत के विभिन्न भागों में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग ग्रामीण विकास के लिए हो रहा है।
प्रश्न 15. जैविक कृषि क्या है? यह धारणीय विकास को किस प्रकार बढ़ावा देती है?
उत्तर: जैविक कृषि, खेती करने की वह पद्धति है जो पर्यावरणीय सन्तुलन को पुनः स्थापित करके उसका संरक्षण और संवर्धन करती है। विगत कुछ वर्षों से कृषि में अत्यधिक रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग करने से लोगों के स्वास्थ्य एवं पशुधन पर हानिकारक प्रभाव पड़ा है। मृदा एवं पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। अतः जैविक कृषि एक ऐसी प्रौद्योगिकी है जिसके द्वारा विकास की धारणीयता के लिए पर्यावरण मित्र प्रौद्योगिकीय विकास के प्रयास किए गए। जैविक कृषि से विश्व में सुरक्षित खाद्यान्नों की पूर्ति में वृद्धि हुई है तथा लोगों के रोजगार एवं आय में भी वृद्धि हुई है। जैविक कृषि उत्पादों के निर्यात में भी वृद्धि हुई है। अतः जैविक कृषि धारणीय कृषि के विकास में सहायक है।
प्रश्न 16. जैविक कृषि के लाभ और सीमाएँ स्पष्ट करें।
उत्तर: जैविक कृषि का अर्थ: जैविक कृषि खेती करने की वह पद्धति है जो पर्यावरणीय सन्तुलन को पुनः स्थापित करके उनका संरक्षण और संवर्द्धन करती है। जैविक कृषि के लाभ जैविक कृषि के महत्त्व एवं लाभ को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है।
उत्तर: प्रारम्भिक वर्षों में जैविक कृषि की उत्पादकता रासायनिक कृषि की तुलना में कम रहती है, जिससे कृषकों का उत्पादन एवं आय कम हो जाती है।
उत्तर: ग्रामीण विकास का अर्थ-ग्रामीण विकास का तात्पर्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उन घटकों के विकास पर ध्यान केन्द्रित करने पर बल देना है जो वर्तमान में पिछड़ी हुई अवस्था में हैं किन्तु वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सर्वांगीण विकास हेतु आवश्यक हैं।
दूसरे शब्दों में ग्रामीण विकास का अभिप्राय उन आवश्यक सुविधाओं को उपलब्ध करवाना है जिनसे ग्रामीण क्षेत्र के लोग सही ढंग से अपना जीवनयापन कर सकें तथा साथ ही वहाँ के लोगों की उत्पादकता में भी वृद्धि हो सके। ग्रामीण विकास के अन्तर्गत कृषि एवं गैर कृषि सुविधाओं एवं संरचना के विकास एवं विस्तार के प्रयास किए जाते हैं।
ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्न/ घटक: ग्रामीण विकास से जुड़े महत्त्वपूर्ण प्रश्न अथवा घटक निम्न प्रकार।
(1) ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता विशेषकर महिला साक्षरता, शिक्षा सुविधाओं एवं कौशल की क्या स्थिति है? उनमें सुधार किया जाना आवश्यक है।
(2) ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता एवं जन स्वास्थ्य सुविधाओं की क्या स्थिति है? ग्रामीण विकास हेतु इनमें सुधार किया जाना आवश्यक है।
(3) ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि-सुधार कार्यक्रमों की क्या स्थिति है? इन कार्यक्रमों को कुशलतापूर्वक क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
(4) भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में आधारित संरचना के विकास का क्या स्तर है? अर्थात् बिजली, सिंचाई, साख सुविधाओं, विपणन, परिवहन सुविधाओं, कृषि अनुसंधान विस्तार एवं सूचना प्रसार की सुविधाएँ कैसी हैं? ग्रामीण विकास हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में आधारित संरचना का विकास अति आवश्यक है।
(5) ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता और समाज के कमजोर वर्गों की जीवन दशाएँ कैसी हैं? ग्रामीण विकास हेतु निर्धनता निवारण कार्यक्रम, रोजगार सृजक कार्यक्रमों एवं कमजोर वर्गों के उत्थान सम्बन्धी कार्यक्रमों को लागू करना अति आवश्यक है।
प्रश्न 2. ग्रामीण विकास में साख के महत्त्व पर चर्चा करें।
उत्तर: ग्रामीण विकास में साख का महत्त्व
ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की विशेष रूप से कृषि से जुड़े हुए लोगों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त कमजोर है अतः उनके लिए साख का विशेष महत्त्व है। ग्रामीण विकास में साख की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ग्रामीण विकास में साख के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) कृषि एवं गैर कृषि कार्यों हेतु: ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है अत: उन्हें कृषि एवं गैर कृषि कार्यों को सम्पन्न करने हेतु साख की आवश्यकता होती है। जिससे ग्रामीण विकास को बल मिलता है।
(2) कृषि उत्पादकता में वृद्धि हेतु: ग्रामीण क्षेत्र में कृषि एवं गैर कृषि कार्यों में उच्च उत्पादकता हेतु विभिन्न आधुनिक कृषि आगतों के प्रयोग के लिए पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है अतः साख की आवश्यकता पड़ती है। पर्याप्त साख उपलब्ध होने से उत्पादकता में वृद्धि होती है।
(3) कृषि आगतों हेतु: ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित होती है तथा कृषि मुख्य रूप से कृषि आगतों, जैसे उन्नत खाद, उन्नत बीज, कृषि उपकरण आदि पर निर्भर करती है। कृषकों की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण वे पर्याप्त कृषि आगतों को प्राप्त नहीं कर पाते अतः उन्हें कृषि साख की आवश्यकता पड़ती है। इस कृषि साख के माध्यम से ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलता है।
(4) कृषि सम्बद्ध क्रियाओं हेतु: ग्रामीण क्षेत्र में कृषि सम्बद्ध क्रियाओं जैसे दुग्ध, पशुपालन, मत्स्य पालन, मुर्गीपालन आदि को कृषि साख के फलस्वरूप बढ़ावा मिलता है, इससे ग्रामीण की आय में वृद्धि होती है।
(5) भू-क्षरण को रोकने हेतु: कृषि भूमि के भूक्षरण होने से कृषकों को नुकसान होता है। अतः भू-क्षरण को रोकने हेतु कृषि वित्त की आवश्यकता पड़ती है।
(6) स्थायी भू-सुधार: कृषि क्षेत्र में उत्पादन वृद्धि हेतु कृषकों को कई स्थायी सुधार करने पड़ते हैं, जैसेस्थायी रूप से उपकरण खरीदना, पम्पसेट लगाना, कुओं का निर्माण, पक्की नालियों का निर्माण आदि। इन सभी कार्यों हेतु कृषकों को दीर्घकालीन साख की आवश्यकता पड़ती है। इस साख के फलस्वरूप ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन मिलता है।
प्रश्न 3.गरीबों की ऋण आवश्यकताएं पूरी करने में अतिलघु साख व्यवस्था की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर: अतिलघु साख व्यवस्था का तात्पर्य स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से साख उपलब्ध करवाने से है। देश में औपचारिक साख व्यवस्था की कमियों को दूर करने हेतु तथा ग्रामीण सामाजिक एवं सामुदायिक विकास हेतु स्वयं सहायता समूहों का प्रादुर्भाव हुआ। इसके अन्तर्गत एक गांव के कुछ लोग मिलकर एक समूह अथवा संगठन बनाते हैं। इस समूह के सभी सदस्य अपनी छोटी-छोटी बचतों को एकत्रित करते हैं तथा इस एकत्र राशि में से जरूरतमंद सदस्यों को उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाया जाता है, इस ऋण को ऋणी छोटी-छोटी आसान किस्तों में चुकाता है।
भारत में वर्ष 2003 के अन्त में देश में लगभग 7 लाख साख प्रदान करने वाले स्वयं सहायता समूह कार्यरत थे। अतः इस प्रकार की साख उपलब्धता को अतिलघु साख कार्यक्रम कहा जाता है। इस अतिलघु साख कार्यक्रम के फलस्वरूप कृषक को छोटे-छोटे ऋण उचित ब्याज दर पर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं जिसे वह आसानी से चुका देता है। स्वयं सहायता समूहों ने महिलाओं के सशक्तिकरण में भी सहायता की है।
प्रश्न 4. सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों के विकास के लिए किए गए प्रयासों की व्याख्या करें।
उत्तर: सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में बाजारों के विकास हेतु बाजारों के नियमन की नीति अपनाई है तथा बाजारों में आधारभूत सुविधाओं का विस्तार किया है तथा गांवों में कई नियमित मंडी परिसरों की स्थापना की गई है। इसके अतिरिक्त सरकार ने व्यवस्थित एवं पारदर्शी विपणन व्यवस्था की स्थापना के प्रयास किए हैं। इसके अतिरिक्त सरकार के निजी व्यापारियों को नियन्त्रित करने हेतु बाजार में हस्तक्षेप की नीति अपनाई है।
प्रश्न 5. आजीविका को धारणीय बनाने के लिए कृषि का विविधीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर: कृषि के विविधीकरण की आवश्यकता इसलिए उत्पन्न हो रही है क्योंकि केवल कृषि के आधार पर आजीविका कमाने में बहुत अधिक जोखिम है अत: कृषि के विविधीकरण के फलस्वरूप केवल कृषि के आधार पर आजीविका कमाने का जोखिम कम हो जाता है। साथ ही ग्रामीण जन समुदाय को उत्पादक और वैकल्पिक धारणीय आजीविका के अवसर भी उपलब्ध होते हैं। कृषि विविधीकरण से लोगों को रोजगार के अनेक विकल्प उपलब्ध हो पाते हैं।
प्रश्न 6. भारत के ग्रामीण विकास में ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
उत्तर: ग्रामीण विकास में बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका: भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आर्थिक स्थिति काफी खराब है अत: उन्हें कृषि एवं गैर कृषि कार्यों हेतु वित्त की आवश्यकता पड़ती है। ग्रामीणों की वित्त आवश्यकता को पूरा करने में बैंकों का महत्वपूर्ण योगदान है। बैंकों के माध्यम से ग्रामीणों को उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होता है। इसके फलस्वरूप उन्हें महाजनों एवं व्यापारियों के शोषण से निर्धन कृषकों एवं श्रमिकों को मुक्ति मिली है। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग व्यवस्था के तीव्र विस्तार |का ग्रामीण कृषि और गैर कृषि उत्पादन, आय एवं रोजगार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हरित क्रान्ति के दौरान बैंक साख का कृषि विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
आलोचनात्मक समीक्षा: हालांकि ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था का ग्रामीण विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है किन्तु अभी भी हमारी ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था पूरी तरह विकसित नहीं है। बैंकिंग व्यवस्था के अन्तर्गत बैंकों द्वारा सही ऋण चाहने वालों को ऋण प्रदान नहीं किया जाता तथा निर्धन व्यक्तियों को भी बैंकों से पर्याप्त ऋण प्राप्त नहीं हो पाता है क्योंकि बैंक भी सम्पन्न लोगों को ही ऋण देना चाहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों के समक्ष ऋणों की वसूली न हो पाने की महत्पूर्ण समस्या है, इन बैंकों की कोई प्रभावपूर्ण ऋण वसूली व्यवस्था नहीं बन पाई है। अत: कृषि ऋण का भुगतान न कर पाने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। अतः अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था पूरी तरह विकसित नहीं हो पाई
प्रश्न 7. कृषि विपणन से आपका क्या अभिप्राय
उत्तर: कृषि विपणन का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिससे देश भर में उत्पादित कृषि पदार्थों का संग्रह, भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन, पैकिंग, वर्गीकरण और वितरण आदि किया जाता है।
प्रश्न 8. कृषि विपणन प्रक्रिया की कुछ बाधाएँ बताइए।
उत्तर: कृषि विपणन की प्रमुख बाधाएँ:
भारत में कृषि पदार्थों के विपणन की प्रमुख समस्याएँ अथवा बाधाएँ अग्न प्रकार हैं।
- बिचौलियों एवं मध्यस्थों की भूमिका: भारत में कृषि विपणन में सबसे मुख्य बाधा बिचौलियों एवं मध्यस्थों की उपस्थिति है। भारत में अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में महाजन, साहूकारों, व्यापारियों, अमीर किसानों, आढ़तियों आदि के द्वारा मध्यस्थों के रूप में कृषकों का शोषण किया जाता है।
- वित्तीय सुविधाओं का अभाव: भारतीय कृषक की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है अत: उसे साहूकारों एवं व्यापारियों से ऋण लेना पड़ता है तथा उनके द्वारा कृषकों का शोषण किया जाता है। अतः कृषकों की आर्थिक स्थिति खराब होने से कृषि विपणन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है।
- कृषकों में संगठन का अभाव: भारत में अपनी उपज को बेचने व उचित मूल्य प्राप्त करने के लिए कृषकों का कोई संगठन नहीं है जबकि क्रेता व्यापारी तथा मध्यस्थ संगठित होते हैं। यह संगठित व्यापारी वर्ग कृषकों का शोषण करता है, इससे कृषि विपणन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है।
- भण्डारण व्यवस्थाओं का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में भण्डारण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण उनकी फसलें नष्ट हो जाती हैं अतः कृषकों को उपज को कम कीमत पर बेचना पड़ता है। अतः भण्डारण के अभाव में विपणन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है।
- यातायात एवं संचार सुविधाओं का अभावभारत में ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात एवं संचार सुविधाओं का अत्यन्त अभाव है अतः इन सुविधाओं के अभाव में कृषकों को अपना उत्पाद कम कीमत पर स्थानीय बाजारों में ही बेचना पड़ता है जिस कारण कृषि विपणन में बाधा उत्पन्न होती है।
- कृषि उत्पाद की अपर्याप्त एवं घटिया किस्मभारत में कृषि की उन्नत आगतों के अभाव में कृषि उत्पाद अपर्याप्त एवं घटिया किस्म का होता है अतः कृषि विपणन में बाधा उत्पन्न होती है।
- उत्पत्ति की ग्रेडिंग एवं प्रमापीकरण का अभाव: भारत में उपज के श्रेणीकरण, ग्रेडिंग तथा प्रमापीकरण के अभाव में फसलों का उचित मूल्य प्राप्त नहीं होता एवं कृषि विपणन में बाधा उत्पन्न होती है।
- अन्य बाधाएँ: उपर्युक्त बाधाओं के अतिरिक्त कृषि विपणन की कुछ अन्य भी प्रमुख बाधाएँ हैं, जैसे-अशिक्षा, सामाजिक रूढ़िवादिता, बाजार भावों की जानकारी का अभाव, मण्डियों के नियमों की जानकारी का अभाव इत्यादि।
उत्तर: कृषि विपणन व्यवस्था: हम जो अनाज, फल, सब्जियाँ आदि रोज खाते हैं वे देश के अलग - अलग क्षेत्रों से बाजार व्यवस्था के माध्यम से नियमित रूप से हम तक पहुँचाये जाते हैं। कृषि विपणन वह प्रक्रिया है जिससे देश भर में उत्पादित कृषि पदार्थों का संग्रह, भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन, पैकिंग, वर्गीकरण तथा वितरण आदि किया जाता है। भारत में कृषि विपणन व्यवस्था में अनेक कमियाँ हैं। - भारत में कृषि विपणन व्यवस्था में सुधार हेतु सरकार द्वारा तो प्रयास किए ही जा रहे हैं, साथ ही कई वैकल्पिक |विधियों का भी प्रादुर्भाव हो रहा है।
कृषि विपणन के वैकल्पिक माध्यम: विगत वर्षों में भारत में कृषि विपणन के अनेक वैकल्पिक माध्यमों का प्रादुर्भाव हुआ है। देश में अनेक मण्डियों को विकसित किया गया है जिसमें किसान स्वयं उपभोक्ताओं को अपना उत्पाद बेचते हैं। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में अपनी मंडी, पुणे की हाड़पसार मंडी, आन्ध्रप्रदेश की रायधूबाज मंडी तथा तमिलनाडु की उझावरमंडी के कृषक बाजार आदि इस प्रकार से विकसित हो रहे वैकल्पिक क्रय-विक्रय माध्यम के कुछ उदाहरण हैं।
इसके अतिरिक्त एक अन्य वैकल्पिक विधि विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपनायी जाती है। इस पद्धति के अन्तर्गत ये कम्पनियाँ कृषकों को निःशुल्क खाद-बीज, कीटनाशक एवं अन्य आगतें एवं अन्य आगतें उपलब्ध करवाती हैं तथा कृषकों को उनके उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके उपरान्त कृषकों द्वारा उत्पन्न उत्पादों को भी उसी कम्पनी द्वारा खरीद लिया जाता है। इस प्रकार देश में कृषि विपणन व्यवस्था की कमियों को दूर करने हेतु अनेक वैकल्पिक माध्यमों का प्रादुर्भाव हो रहा है। इससे किसानों के जोखिम में कमी आई है तथा आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
प्रश्न 10. 'स्वर्णिम क्रान्ति' तथा 'हरित क्रान्ति' में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर: भारत में हरित क्रान्ति खाद्यान्नों के क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने हेतु अपनाई गई जबकि स्वर्णिम क्रान्ति का सम्बन्ध बागवानी से है।
प्रश्न 11. क्या सरकार द्वारा कृषि विपणन सुधार के लिए अपनाए गए विभिन्न उपाय पर्याप्त हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: भारत सरकार ने कृषि विपणन सुधार हेतु अनेक प्रयास किए हैं तथा उनके सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं किन्तु फिर भी सरकार द्वारा किए गए विभिन्न प्रयास पर्याप्त नहीं रहे। अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में मण्डियां विकसित नहीं की जा सकी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आधारिक संरचना का नितान्त अभाव है। सरकार द्वारा कृषि विपणन हेतु किए प्रयासों में वित्तीय साधनों का अभाव रहा है। अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में 27,000 मण्डियों के विकसित किए जाने की आवश्यकता है। अतः सरकार द्वारा अपनाए गए विभिन्न उपाय अपर्याप्त हैं।
प्रश्न 12. ग्रामीण विविधीकरण में गैर कृषि रोजगार का महत्त्व समझाइए।
उत्तर: भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है किन्तु सिर्फ कृषि कार्य के आधार पर आजीविका कमाने में बहुत जोखिम होता है क्योंकि किसी कारण से कृषि उपज खराब होने से कृषकों की आमदनी समाप्त हो जाती है। अत: ग्रामीण क्षेत्रों में आमदनी के इस जोखिम को कम करने हेतु ग्रामीण विविधीकरण में गैर कृषि रोजगार का विशेष महत्त्व है। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों, कृषि प्रसंस्करण उद्योग, पशुपालन, मत्स्य पालन, बागवानी आदि गैर कृषि क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कर इस जोखिम को कम किया जा सकता है। इस विविधीकरण के फलस्वरूप लोगों को स्थायी रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं।
प्रश्न 13. विविधीकरण के स्रोत के रूप में पशुपालन, मत्स्यपालन और बागवानी के महत्त्व पर टिप्पणी करें।
उत्तर: विविधीकरण के स्रोत विविधीकरण दो प्रकार से किया जा सकता है। एक तो फसलों के उत्पादन की प्रणाली में परिवर्तन करके तथा दूसरा श्रम शक्ति को खेती से हटाकर अन्य कृषि सम्बद्ध गतिविधियों में लगाकर। इसके फलस्वरूप लोगों को कृषि
के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में स्थायी रोजगार के अवसर उपलब्ध हो पाएंगे। गैर कृषि क्षेत्र में तथा नए वैकल्पिक आजीविका स्रोतों का विकास कर ग्रामीण जनसमुदाय की आय में वृद्धि की जा सकती है। विविधीकरण के अन्तर्गत गैर कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित गतिविधियों को सम्मिलित किया जा सकता है।
(1) पशुपालन - पशुपालन गैर कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत सबसे महत्त्वपूर्ण उत्पादन गतिविधि है। भारत में किसान प्रायः कृषि के साथ-साथ पशुपालन का कार्य करते हैं। वे भैंस, गाय, बकरी, मुगी, बतख आदि को पालते हैं। कृषि से प्राप्त आय अनिश्चित एवं जोखिमपूर्ण होती है किन्तु पशुपालन की आय अधिक स्थायी होती है भारत में पशुपालन से करोड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। पशुपालन से कृषकों की आय एवं जीवन स्तर में वृद्धि होती है।
भारत में पशुपालन के फलस्वरूप विगत वर्षों में दुग्ध, मांस, ऊन, अण्डों आदि के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत में 'ऑपरेशन पलड' के फलस्वरूप डेयरी उद्योग में शानदार प्रगति दिखाई है। इसके साथ ही देश में सहकारिता के आधार पर दुग्ध व्यवसाय से निरन्तर प्रगति हो रही है।
(2) मत्स्यपालन-मत्स्य पालन देश में लोगों की आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में यह आजीविका का मुख्य स्रोत है। पिछले कुछ वर्षों में मत्स्यपालन हेतु बजटीय प्रावधानों में वृद्धि की गई है। साथ ही मत्स्यपालन एवं जल कृषिकी के क्षेत्र में नवीन प्रौद्योगिकी का प्रवेश हुआ है। इससे मत्स्यपालन में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
देश के सकल घरेलू उत्पादन में मत्स्यपालन का योगदान लगभग 0.8 प्रतिशत है। भारत में मछुआरों की आर्थिक स्थिति काफी खराब है किन्तु मत्स्यपालन की सहायता से अपना जीवनयापन कर रहे हैं। देश में मछुआरों की आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु सरकार द्वारा और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
(3) उद्यान विज्ञान (बागवानी): बागवानी, कृषि के अतिरिक्त रोजगार एवं आय उपलब्ध कराने वाली महत्त्वपूर्ण क्रिया है। भारत में अनेक प्रकार के उद्यान एवं बागान हैं। इन उद्यानों में फल, सब्जियों, रेशेदार फसलों, औषधीय तथा सुगंधित पौधे, मसाले, चाय, कॉफी इत्यादि का उत्पादन किया जाता है। इन सभी उत्पादों के माध्यम से रोजगार उपलब्ध होता है, साथ-साथ भोजन एवं पोषण भी उपलब्ध होता है।
भारत में वर्ष 1997 से 2003 की अवधि के दौरान 'स्वर्णिम क्रान्ति' के फलस्वरूप बागवानी में निवेश में वृद्धि हुई। साथ ही बागवानी फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। अतः देश में बागवानी क्षेत्र ने एक धारणीय वैकल्पिक रोजगार का रूप धारण कर लिया है। भारत कई फल एवं मसालों का अग्रणी उत्पादक देश है। बागवानी से कृषकों की आय में काफी सुधार हुआ है। देश में बागवानी के फलस्वरूप ग्रामीण महिलाओं को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए हैं।
(4) अन्य रोजगार/आजीविका विकल्प: भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में गैर कृषि क्षेत्र में पशुपालन, मत्स्यपालन एवं बागवानी के अतिरिक्त अनेक वैकल्पिक रोजगार एवं आजीविका के स्रोत उपलब्ध हैं। इसके अन्तर्गत कई कुटीर एवं लघु उद्योग सम्मिलित हैं, जैसे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, चर्म उद्योग, पर्यटन, मिट्टी के बर्तन बनाना, शिल्प कलाएँ, हथकरघा आदि भारत में सूचना एवं प्रौद्योगिकी में उन्नति के फलस्वरूप रोजगार के कई नए क्षेत्र भी खुल गए हैं।
प्रश्न 14. “सूचना प्रौद्योगिकी, धारणीय विकास तथा खाद्य सुरक्षा की प्राप्ति में बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान करती है।" टिप्पणी करें।
उत्तर: धारणीय विकास तथा खाद्य सुरक्षा की प्राप्ति में सूचना प्रौद्योगिकी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण एवं क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं जिनका अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सूचनाओं और उपयुक्त साफ्टवेयर का प्रयोग कर सरकार सहज ही खाद्य असुरक्षा की आशंका वाले क्षेत्रों का समय से पहले अनुमान लगा सकती है।
इस प्रकार सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से समाज ऐसी विपत्तियों की संभावनाओं को कम या पूरी तरह से समाप्त करने में भी सफल हो सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी का कृषि क्षेत्र पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। नवीन प्रौद्योगिकी की सहायता से मौसम, मृदा दशाओं, उदीयमान तकनीकों आदि की उपयुक्त जानकारी प्राप्त हो सकती है, जिसका उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
नवीन सूचना प्रौद्योगिकी से ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए हैं तथा भविष्य में भी रोजगार के और अधिक अवसर उत्पन्न होने की संभावना है। वर्तमान में भारत के विभिन्न भागों में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग ग्रामीण विकास के लिए हो रहा है।
प्रश्न 15. जैविक कृषि क्या है? यह धारणीय विकास को किस प्रकार बढ़ावा देती है?
उत्तर: जैविक कृषि, खेती करने की वह पद्धति है जो पर्यावरणीय सन्तुलन को पुनः स्थापित करके उसका संरक्षण और संवर्धन करती है। विगत कुछ वर्षों से कृषि में अत्यधिक रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग करने से लोगों के स्वास्थ्य एवं पशुधन पर हानिकारक प्रभाव पड़ा है। मृदा एवं पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। अतः जैविक कृषि एक ऐसी प्रौद्योगिकी है जिसके द्वारा विकास की धारणीयता के लिए पर्यावरण मित्र प्रौद्योगिकीय विकास के प्रयास किए गए। जैविक कृषि से विश्व में सुरक्षित खाद्यान्नों की पूर्ति में वृद्धि हुई है तथा लोगों के रोजगार एवं आय में भी वृद्धि हुई है। जैविक कृषि उत्पादों के निर्यात में भी वृद्धि हुई है। अतः जैविक कृषि धारणीय कृषि के विकास में सहायक है।
प्रश्न 16. जैविक कृषि के लाभ और सीमाएँ स्पष्ट करें।
उत्तर: जैविक कृषि का अर्थ: जैविक कृषि खेती करने की वह पद्धति है जो पर्यावरणीय सन्तुलन को पुनः स्थापित करके उनका संरक्षण और संवर्द्धन करती है। जैविक कृषि के लाभ जैविक कृषि के महत्त्व एवं लाभ को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है।
- जैविक कृषि के फलस्वरूप विश्वभर में सुरक्षित खाद्यान्नों की पूर्ति में वृद्धि हुई है।
- जैविक कृषि में स्थानीय आगतों का ही प्रयोग किया जाता है जिस कारण कम लागत पर कृषि उत्पादन संभव हो पाता है।
- जैविक कृषि में कृषि आगतों की कम लागत के कारण अधिक प्रतिफल मिलता है जिससे कृषकों की आय में भी वृद्धि हुई है।
- विश्वभर में जैविक कृषि उत्पादों की मांग में वृद्धि होने से निर्यातों में भी वृद्धि हुई है तथा भविष्य में भी निर्यातों से और अधिक आय वृद्धि की संभावना है।
- जैविक कृषि से उत्पादित खाद्यान्नों में अधिक पोषक तत्व होते हैं जिनका स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अत: जैविक कृषि हमें अधिक स्वास्थ्यकर भोजन उपलब्ध कराती है।
- जैविक कृषि में परम्परागत कृषि की अपेक्षा श्रम आगतों का प्रयोग अधिक होता है जिस कारण रोजगार को बढ़ावा मिलता है।
- जैविक कृषि पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल है।
- जैविक कृषि की लोकप्रियता के लिए नई विधियों का प्रयोग करने से किसानों में इच्छाशक्ति एवं जागरूकता का अभाव पाया गया।
- जैविक कृषि संवर्द्धन के लिए उपयुक्त नीतियों एवं विपणन व्यवस्था का अभाव रहा है।
- जैविक कृषि की उत्पादकता रासायनिक कृषि की तुलना में कम रहती है अतः छोटे एवं सीमान्त कृषक इसे नहीं अपनाते हैं।
- जैविक उत्पादों के रासायनिक उत्पादों की अपेक्षा शीघ्र खराब होने की संभावना रहती है।
- जैविक कृषि में बे-मौसमी फसलों का उत्पादन अत्यन्त सीमित होता है।
उत्तर: प्रारम्भिक वर्षों में जैविक कृषि की उत्पादकता रासायनिक कृषि की तुलना में कम रहती है, जिससे कृषकों का उत्पादन एवं आय कम हो जाती है।