4. आय निर्धारण
🔰बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार, पूर्ण रोजगार-
(a) एक वास्तविक स्थिति है
(b) एक काल्पनिक स्थिति है।
(c) दोनों कथन सत्य हैं
(d) दोनों कथन असत्य हैं।
2. बाजार का नियम (Law of Market) प्रस्तुत किया है-
(a) जे०एम० कीन्स ने
(b) जे०बी० से ने
(c) ए०सी० पीगू ने
(d) जी०बी० क्लार्क ने।
3. "पूर्ति अपनी माँग स्वयं सृजित कर लेती है।" यह कथन है-
(a) जे०एम० कीन्स का
(b) मार्शल का
(c) जे०बी० से का
(d) माल्थस का।
4.विनियोग में परिवर्तन के साथ आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात ............. कहलाता है।
(a) सीमान्त आय
(b) गुणक
(c) MPC
(d) औसत आय
5. “General Theory of Employment, interest and Money” के लेखक कौन है ?
(a) हिक्स
(b) जे0एस0मिल
(c) मार्शल
(d) कीन्स
6.MPC का मूल्य 1 से अधिक क्यों नहीं हो सकता ? क्योकि
(a) MPC+MPS = 1
(b) MPC+MPS = 10
(c) MPC+MPS = 1 होता है।
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
7. ................... उस सम्पूर्ण व्यय को व्यक्त करती है जो कि रोजगार के किसी सन्तुलन स्तर पर किए गए कुल उत्पादन पर किया जाता है ?
(a) प्रभावपूण माँग
(b) बचत की माँग
(c) निवेश की माँग
(d) उपरोक्त सभी
8. किसी देश में पूँजीगत पदार्थो तथा निर्मित माल के भण्डार के संग्रह में शुद्ध वृद्धि ................. कहलाती है।
(a) उत्पादन
(b) विनियोग
(c) निवेश
(d) उपरोक्त कोई नहीं
09. आय में वृद्वि या कमी और उपभोग में वृद्वि या कमी के अनुपात को .................... कहते है।
(a) उपभोग प्रवृत्ति
(b) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
(c) औसत उपभोग प्रवृत्ति
(d) बचत उपभोग व्रवृत्ति
10. विनियोग मे परिवर्तन के साथ आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात ....................... कहलाता है।
(a) आय में वृद्वि
(b) विनियोग
(c) निवेश
(d) गुणक
11. जब समाज में किसी नवीन राशि का विनियोग किया जाता है तो जिससे जनता को प्रारम्भिक विनियोग की तुलना में कई गुनी आय प्राप्त होती है यह .................. कहलाता है।
(a) निवेश
(b) विनियोग गुणाक
(c) उत्पादन
(d) उपरोक्त सभी
12. यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति बराबर है, तो गुणक का मान बताइए।
(a) K = 1/MPS
(b) K= 10/MPS
(c) K = 1/MPC
(d) K = .5/MPC
13. भारत में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के निम्न कारण कौन से है ?
(a) औद्योगिक विकास
(b) जनसंख्या में वृद्धि
(c) सुरक्षा व्यय में वृद्धि
(d) उपर्युक्त सभी
(a) एक वास्तविक स्थिति है
(b) एक काल्पनिक स्थिति है।
(c) दोनों कथन सत्य हैं
(d) दोनों कथन असत्य हैं।
2. बाजार का नियम (Law of Market) प्रस्तुत किया है-
(a) जे०एम० कीन्स ने
(b) जे०बी० से ने
(c) ए०सी० पीगू ने
(d) जी०बी० क्लार्क ने।
3. "पूर्ति अपनी माँग स्वयं सृजित कर लेती है।" यह कथन है-
(a) जे०एम० कीन्स का
(b) मार्शल का
(c) जे०बी० से का
(d) माल्थस का।
4.विनियोग में परिवर्तन के साथ आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात ............. कहलाता है।
(a) सीमान्त आय
(b) गुणक
(c) MPC
(d) औसत आय
5. “General Theory of Employment, interest and Money” के लेखक कौन है ?
(a) हिक्स
(b) जे0एस0मिल
(c) मार्शल
(d) कीन्स
6.MPC का मूल्य 1 से अधिक क्यों नहीं हो सकता ? क्योकि
(a) MPC+MPS = 1
(b) MPC+MPS = 10
(c) MPC+MPS = 1 होता है।
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
7. ................... उस सम्पूर्ण व्यय को व्यक्त करती है जो कि रोजगार के किसी सन्तुलन स्तर पर किए गए कुल उत्पादन पर किया जाता है ?
(a) प्रभावपूण माँग
(b) बचत की माँग
(c) निवेश की माँग
(d) उपरोक्त सभी
8. किसी देश में पूँजीगत पदार्थो तथा निर्मित माल के भण्डार के संग्रह में शुद्ध वृद्धि ................. कहलाती है।
(a) उत्पादन
(b) विनियोग
(c) निवेश
(d) उपरोक्त कोई नहीं
09. आय में वृद्वि या कमी और उपभोग में वृद्वि या कमी के अनुपात को .................... कहते है।
(a) उपभोग प्रवृत्ति
(b) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
(c) औसत उपभोग प्रवृत्ति
(d) बचत उपभोग व्रवृत्ति
10. विनियोग मे परिवर्तन के साथ आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात ....................... कहलाता है।
(a) आय में वृद्वि
(b) विनियोग
(c) निवेश
(d) गुणक
11. जब समाज में किसी नवीन राशि का विनियोग किया जाता है तो जिससे जनता को प्रारम्भिक विनियोग की तुलना में कई गुनी आय प्राप्त होती है यह .................. कहलाता है।
(a) निवेश
(b) विनियोग गुणाक
(c) उत्पादन
(d) उपरोक्त सभी
12. यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति बराबर है, तो गुणक का मान बताइए।
(a) K = 1/MPS
(b) K= 10/MPS
(c) K = 1/MPC
(d) K = .5/MPC
13. भारत में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के निम्न कारण कौन से है ?
(a) औद्योगिक विकास
(b) जनसंख्या में वृद्धि
(c) सुरक्षा व्यय में वृद्धि
(d) उपर्युक्त सभी
🔰निशिचत तथा अति लधु प्रश्नोत्तर
प्र01. प्रौ0 कीन्स की प्रसिद्ध पुस्तक का क्या नाम है ?
उ0 General Theory of Employment, Interest and Money.
प्र02. प्रभावपूर्ण माँग क्या है ?
उ0 प्रभावपूर्ण माँग उस सम्पूर्ण व्यय को व्यक्त करती है जो कि रोजगार के किसी सन्तुलन स्तर पर किए गए कुल उत्पादन पर ki जाता है। जैसे - Ed = C+I+G
प्र03. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति MPC किसे कहते है ?
उ0 आय में वृद्धि या कमी और उपभोग में वृद्धि या कमी के अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते है।
प्र04. निवेश को परिभाषित कीजिए ?
उ0 किसी देश की पूँजीगत पदार्थो तथा निर्मित माल के भण्डार के संग्रह में शुद्ध वृद्धि को निवेश कहते है।
प्र05. वित्तीय निवेश किसे कहते है ?
उ0 जब कोई व्यक्ति सरकार की प्रतिभूतियो या किसी कम्पनी के शेयर को खरीदता है, तो ऐसा करने से केवल एक व्यक्ति द्वारा दूसरी व्यक्ति की सम्पत्ति का हस्तान्तरण होता है इसे वित्तीय निवेश कहते है।
प्र06. वास्तविक निवेश किसे कहते है ?
उ0 वह निवेश जिससे नवीन सम्पत्ति में वृद्धि होती है एवं पूँजीगत सामग्री की मात्रा बढ़ती है उसे वास्तविक निवेश कहते है। जैसे नये कारखानों व मशीनों का निर्माण आदि।
प्र07. प्रेरित निवेश से क्या आशय है ?
उ0 प्रेरित निवेश से आशय उस राशि से है जिसे लाभ / ब्याज अर्जित करने के लिए विनियोजित किया जाता है।
प्र08. तरलता पसन्दगी से क्या आशय है ?
उ0 तरलता पसन्दगी से आशय तरल रूप में मुद्रा की माँग से है।
प्र09. सामूहिक माँग से क्या अभिप्राय है ?
उ0 सामूहिक माँग से अभिप्राय समाज की सम्पूर्ण माँग से है।
प्र010. प्रत्याशित निवेश किसे कहते है ?
उ0 प्रत्याशित निवेश को भौतिक पूँजी स्टाॅक में वृद्धि और उत्पादक की माल सूची में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
प्र011. स्वत विनियोग क्या है ?
उ0 स्वत वियोग वहां है जिसमें निवेश का निर्धारण स्वतंत्र आर्थिक शक्तियों के द्वारा होता है इस पर उपभोक स्टार बाजार दर लाभ आदि का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
प्र012. अनैच्छिक बेरोजगारी से क्या अभिप्राय है ?
उ0 अनैच्छिक बेरोजगारी वह स्थित है जिसमें श्रमिक मजदूरी की वर्तमान दर पर काम करने के योग्य होते हैं तथा कार्य करने को तैयार रहते हैं परंतु उन्हें प्रचलित दरों पर काम नहीं मिलता।
उ0 General Theory of Employment, Interest and Money.
प्र02. प्रभावपूर्ण माँग क्या है ?
उ0 प्रभावपूर्ण माँग उस सम्पूर्ण व्यय को व्यक्त करती है जो कि रोजगार के किसी सन्तुलन स्तर पर किए गए कुल उत्पादन पर ki जाता है। जैसे - Ed = C+I+G
प्र03. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति MPC किसे कहते है ?
उ0 आय में वृद्धि या कमी और उपभोग में वृद्धि या कमी के अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते है।
प्र04. निवेश को परिभाषित कीजिए ?
उ0 किसी देश की पूँजीगत पदार्थो तथा निर्मित माल के भण्डार के संग्रह में शुद्ध वृद्धि को निवेश कहते है।
प्र05. वित्तीय निवेश किसे कहते है ?
उ0 जब कोई व्यक्ति सरकार की प्रतिभूतियो या किसी कम्पनी के शेयर को खरीदता है, तो ऐसा करने से केवल एक व्यक्ति द्वारा दूसरी व्यक्ति की सम्पत्ति का हस्तान्तरण होता है इसे वित्तीय निवेश कहते है।
प्र06. वास्तविक निवेश किसे कहते है ?
उ0 वह निवेश जिससे नवीन सम्पत्ति में वृद्धि होती है एवं पूँजीगत सामग्री की मात्रा बढ़ती है उसे वास्तविक निवेश कहते है। जैसे नये कारखानों व मशीनों का निर्माण आदि।
प्र07. प्रेरित निवेश से क्या आशय है ?
उ0 प्रेरित निवेश से आशय उस राशि से है जिसे लाभ / ब्याज अर्जित करने के लिए विनियोजित किया जाता है।
प्र08. तरलता पसन्दगी से क्या आशय है ?
उ0 तरलता पसन्दगी से आशय तरल रूप में मुद्रा की माँग से है।
प्र09. सामूहिक माँग से क्या अभिप्राय है ?
उ0 सामूहिक माँग से अभिप्राय समाज की सम्पूर्ण माँग से है।
प्र010. प्रत्याशित निवेश किसे कहते है ?
उ0 प्रत्याशित निवेश को भौतिक पूँजी स्टाॅक में वृद्धि और उत्पादक की माल सूची में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
प्र011. स्वत विनियोग क्या है ?
उ0 स्वत वियोग वहां है जिसमें निवेश का निर्धारण स्वतंत्र आर्थिक शक्तियों के द्वारा होता है इस पर उपभोक स्टार बाजार दर लाभ आदि का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
प्र012. अनैच्छिक बेरोजगारी से क्या अभिप्राय है ?
उ0 अनैच्छिक बेरोजगारी वह स्थित है जिसमें श्रमिक मजदूरी की वर्तमान दर पर काम करने के योग्य होते हैं तथा कार्य करने को तैयार रहते हैं परंतु उन्हें प्रचलित दरों पर काम नहीं मिलता।
🔰विस्तृत प्रश्नोत्तर
प्र01. सीमान्त उपभाग प्रवृत्ति (MPC) किसे कहते है ? यह किस प्रकार सीमान्त बचत प्रवृत्ति से सम्बन्धित है ?
सीमान्त उपभेाग प्रवृत्ति का अर्थ
आय में परिवर्तन के फलस्वरूप उपभोग में भी परिवर्तन हो जाता है अर्थात् जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में भी वृद्धि होती है और जब आय में कमी होती है तो उपभोग भी धट जाता है।
आय में वृद्धि (या कमी) और उपभोग में वृद्धि (या कमी) के अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते है।
सीमान्त उपभेाग प्रवृत्ति का अर्थ
आय में परिवर्तन के फलस्वरूप उपभोग में भी परिवर्तन हो जाता है अर्थात् जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में भी वृद्धि होती है और जब आय में कमी होती है तो उपभोग भी धट जाता है।
आय में वृद्धि (या कमी) और उपभोग में वृद्धि (या कमी) के अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते है।
सीमान्त उपभाग प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति में सम्बन्ध
आय का कुछ भाग जो उपभोग के बाद शेष बचता है उसे बचत कहते है। बचत में परिवर्तन व आय में परिवर्तन का अनुपात सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते है।
आय का कुछ भाग जो उपभोग के बाद शेष बचता है उसे बचत कहते है। बचत में परिवर्तन व आय में परिवर्तन का अनुपात सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते है।
02ः उपभोग प्रवृत्ति से क्या आशय है ? सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा औसत उपभोग प्रवृत्ति को उदाहरण की सहायता से समझाते हुए इन दोनों के मध्य सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
उ0:उपभेाग प्रवृत्ति का अर्थ
व्यक्ति अपनी आय का एक भाग उपभोग पर खर्च करता है और जो शेष बचता है उसे बचत कहते है। उपभोग और आय के बची के सम्बन्ध को उपभेाग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते है। उपभोग व्यक्ति की आय पर निर्भर करता है। आय में वृद्धि होने पर उपभोग में वृद्धि तथा आय कम होने पर उपभोग में कमी आती है। अतः उपभोग प्रवृत्ति हमें यह बताती है कि आय में परिर्वतन होन से उपभोग में भी परिवर्तन हो जात है, इसलिए यह कहा जाता है कि "उपभोग आय का फलन है।" उपभोग प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है। 1. औसत उपभाग प्रवृत्ति 2. सीमान्त उपभाग प्रवृत्ति औसत उपभाग प्रवृत्ति समाज में कुल आय का जो भाग उपभोग में उपभोग में प्रयोग किया जाता है उससे ही औसत उपभोग प्रवृत्ति का निर्धारण होता है। अर्थात औसत उपभोग प्रवृत्ति कुल आय का वही भाग है जो कुल उपभोग पर व्यय किया जाता है। सीमान्त उपभाग प्रवृत्ति जब आय में परिवर्तन होता है, तो उपभोग की मात्रा में भी परिवर्तन होता हैं। अर्थात् जब आय में वृद्धि होती है, तो उपभोग बढ़ता है और आय में कमी होती है तो उपभोग भी धटता जाता है। आय में वृद्धि या कमी और उपभोग में वृद्धि या कमी के अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की विशेषाएँ- 1. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति सदैव धनात्मक होती है। 2. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति शून्य से अधिक होती है, किन्तु एक से अधिक नहीं होती है। 3. आय में वृद्धि के साथ-साथ सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति धटती जाती है क्योंकि व्यय धटती दर से बढ़ता है और बचत प्रवृत्ति बढ़ती है। औसत तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्तियों का सम्बन्ध- 1. जब सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति स्थिर होती है, तो औसत उपभोग प्रवृत्ति भी स्थिर होती है। 2. आय में वृद्धि होने से सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति गिरने लगती है, किन्तु यह औसत उपभोग प्रवृत्ति से अधिक गिरती है। 3. आय में कमी होने से सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति बढ़ने लगती है, किन्तु यह औसत उपभोग प्रवृत्ति से अधिक बढ़ती है। |
औसत उपभाग प्रवृत्ति
सीमान्त उपभाग प्रवृत्ति
|
03ः कीन्स के रोजगार सिद्धान्त की मुख्य बातें बताइए।
उ0:विश्वव्यापी महामन्दी सन् 1929-33 के समय जो आर्थिक समस्याएँ पुरे विश्व के सामने हुई उसे प्रतिष्ठित आर्थिक सिद्धान्त सुलझाने में असफल रहे। प्रो0 कीन्स ने इस समस्या से निपटने के लिए अपने विचार अपनी पुस्तक “General Theory of Employment, Interest and Money” के माध्यम से दिये है। उन्होंनें बेरोजगारी उत्पन्न होने के कारणों एवं उनसे छुटकारा पाने के उपायों पर इस पुस्तक के माध्यम से प्रकाश डाला है।
सिद्धान्त की व्याख्या-
1. उनके अनुसार रोजगार प्रभावपूण माँग पर निर्भर करता है। जैसे प्रभावपूण माँग-कुल उत्पादन-कुल रोजगार।
2. प्रभावपूण माँग कुल माँग क्रिया तथा कुल पूर्ति क्रिया द्वारा निर्धारित होती है।
3. कुल पूर्ति क्रिया अल्पकाल में स्थिर रहती है, अतः प्रभावपूर्ण माँग पर कुल माँग क्रिया का प्रभाव पड़ता है।
4. कुल माँग क्रिया तीन बातों पर निर्भर करती है। 1. उपभोग व्यय, 2. विनियोग व्यय, 3. सरकारी व्यय।
5. उपभोग व्यय दो बातों पर निर्भर करती है। 1. आय का आकार, 2. उपभोग प्रवृत्ति।
6. उपभोग प्रवृत्ति दो बातों पर निर्भर करती है। 1. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति , 2. औसत उपभोग प्रवृत्ति।
7. विनियोग व्यय दो बातों पर निर्भर करता है। 1. पूंजी की सीमान्त दक्षिता, 2. ब्याज की दर।
8. ब्याज की दर दो बातों पर निर्भर करता है। 1. तरलता पसन्दगी, 2. द्रव्य की पूर्ति।
9. तरलता पसन्दगी तीन उदद्श्य पर निर्भर करती है। 1. लेन-देन, 2. सट्टा, 3. सतर्कता।
नोट - प्रो0 कीन्स के अनुसार रोजगार में वृद्धि करने के लिए आवश्यक है कि उपभोग और विनियोग मे वृद्धि की जाए।
प्र04ः प्रभावी माँग से क्या आशय है ? आय और रोजगार के स्तर को निर्धारित करने में उसका क्या महत्व है ?
प्रो0 कीन्स के अनुसार, बेरोजगारी का मूल कारण प्रभाव माँग में कमी हो जाना है। प्रभाव माँग समाज की कुल माँग है और सामूहिक माँग फलन (ADF) तथा सामूहिक पूर्ति फलन (ASF) द्वारा निर्धारित होती है। अर्थात प्रभाव माँग वह बिन्दु है जहाँ पर सामूहिक माँग तथा सामूहिक पूर्ति रेखाएँ साम्य की दशा में होती है।
सामूहिक माँग = सामूहिक पूर्ति
सामूहिक माँग -
सामूहिक माँग का अभिप्राय समाज की सम्पूर्ण माँग से है। इसका अर्थ यह हुआ कि जब अधिक श्रमिकों को रोजगार दिया जायेगा तो उसके फलस्वरूप उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होगी, जिससे साहसियों को भी अधिक मात्रा में द्रव्य की प्राप्ति होगी ।
सामूहिक पूर्ति -
सहसी वर्ग केवल उतनी ही श्रम शक्ति को रोजगार देता है जितना उसे पारिश्रमिक दिया जा सके। इसके लिए सहसी को उत्पादन का कम-से-कम लागत मूल्य अवश्य प्राप्त होना चाहिये। अगर उसे न्यूनतम प्राप्तियाँ प्राप्त नहीं होगी तो वह उत्पादन कार्य बन्द कर देंगें और श्रमिक बेरोजगार हो जायेगें।
प्रभावी माँग बिन्दु के द्वारा रोजगार स्तर का निर्धारण -
प्रभावी माँग वह बिन्दु है जिस पर सामूहिक माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते है। इसी बिन्दु पर रोजगार का स्तर का निर्धारण होता है।
सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति वक्रों की तीन स्थितियों इस प्रकार हो सकती है।
1. प्रथम - यदि साहसी की कुल वास्तविक प्राप्तियाँ कुल लागत से अधिक है, तो साहसी को लाभ होता है और उसे उत्पादन तथा रोजगार के स्तर में वृद्धि करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
2. द्वितीय - यदि साहसी की कुल वास्तविक प्राप्तियाँ कुल लागत से कम है, तो साहसी को होने लागती है ऐसी दशा में साहसी उत्पादन तथा रोजगार में कमी कने के लिए प्रेरित करती है।
3. तृतीय - यह वह स्थिति होनी है जिसमें वास्तविक प्राप्तियाँ कुल लागत के बराबर होती है, यही साम्य का बिन्दु कहलाता है जिसे कीन्स ने भावी माँग बिन्दुश् कहा है।
उ0:विश्वव्यापी महामन्दी सन् 1929-33 के समय जो आर्थिक समस्याएँ पुरे विश्व के सामने हुई उसे प्रतिष्ठित आर्थिक सिद्धान्त सुलझाने में असफल रहे। प्रो0 कीन्स ने इस समस्या से निपटने के लिए अपने विचार अपनी पुस्तक “General Theory of Employment, Interest and Money” के माध्यम से दिये है। उन्होंनें बेरोजगारी उत्पन्न होने के कारणों एवं उनसे छुटकारा पाने के उपायों पर इस पुस्तक के माध्यम से प्रकाश डाला है।
सिद्धान्त की व्याख्या-
1. उनके अनुसार रोजगार प्रभावपूण माँग पर निर्भर करता है। जैसे प्रभावपूण माँग-कुल उत्पादन-कुल रोजगार।
2. प्रभावपूण माँग कुल माँग क्रिया तथा कुल पूर्ति क्रिया द्वारा निर्धारित होती है।
3. कुल पूर्ति क्रिया अल्पकाल में स्थिर रहती है, अतः प्रभावपूर्ण माँग पर कुल माँग क्रिया का प्रभाव पड़ता है।
4. कुल माँग क्रिया तीन बातों पर निर्भर करती है। 1. उपभोग व्यय, 2. विनियोग व्यय, 3. सरकारी व्यय।
5. उपभोग व्यय दो बातों पर निर्भर करती है। 1. आय का आकार, 2. उपभोग प्रवृत्ति।
6. उपभोग प्रवृत्ति दो बातों पर निर्भर करती है। 1. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति , 2. औसत उपभोग प्रवृत्ति।
7. विनियोग व्यय दो बातों पर निर्भर करता है। 1. पूंजी की सीमान्त दक्षिता, 2. ब्याज की दर।
8. ब्याज की दर दो बातों पर निर्भर करता है। 1. तरलता पसन्दगी, 2. द्रव्य की पूर्ति।
9. तरलता पसन्दगी तीन उदद्श्य पर निर्भर करती है। 1. लेन-देन, 2. सट्टा, 3. सतर्कता।
नोट - प्रो0 कीन्स के अनुसार रोजगार में वृद्धि करने के लिए आवश्यक है कि उपभोग और विनियोग मे वृद्धि की जाए।
प्र04ः प्रभावी माँग से क्या आशय है ? आय और रोजगार के स्तर को निर्धारित करने में उसका क्या महत्व है ?
प्रो0 कीन्स के अनुसार, बेरोजगारी का मूल कारण प्रभाव माँग में कमी हो जाना है। प्रभाव माँग समाज की कुल माँग है और सामूहिक माँग फलन (ADF) तथा सामूहिक पूर्ति फलन (ASF) द्वारा निर्धारित होती है। अर्थात प्रभाव माँग वह बिन्दु है जहाँ पर सामूहिक माँग तथा सामूहिक पूर्ति रेखाएँ साम्य की दशा में होती है।
सामूहिक माँग = सामूहिक पूर्ति
सामूहिक माँग -
सामूहिक माँग का अभिप्राय समाज की सम्पूर्ण माँग से है। इसका अर्थ यह हुआ कि जब अधिक श्रमिकों को रोजगार दिया जायेगा तो उसके फलस्वरूप उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होगी, जिससे साहसियों को भी अधिक मात्रा में द्रव्य की प्राप्ति होगी ।
सामूहिक पूर्ति -
सहसी वर्ग केवल उतनी ही श्रम शक्ति को रोजगार देता है जितना उसे पारिश्रमिक दिया जा सके। इसके लिए सहसी को उत्पादन का कम-से-कम लागत मूल्य अवश्य प्राप्त होना चाहिये। अगर उसे न्यूनतम प्राप्तियाँ प्राप्त नहीं होगी तो वह उत्पादन कार्य बन्द कर देंगें और श्रमिक बेरोजगार हो जायेगें।
प्रभावी माँग बिन्दु के द्वारा रोजगार स्तर का निर्धारण -
प्रभावी माँग वह बिन्दु है जिस पर सामूहिक माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते है। इसी बिन्दु पर रोजगार का स्तर का निर्धारण होता है।
सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति वक्रों की तीन स्थितियों इस प्रकार हो सकती है।
1. प्रथम - यदि साहसी की कुल वास्तविक प्राप्तियाँ कुल लागत से अधिक है, तो साहसी को लाभ होता है और उसे उत्पादन तथा रोजगार के स्तर में वृद्धि करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
2. द्वितीय - यदि साहसी की कुल वास्तविक प्राप्तियाँ कुल लागत से कम है, तो साहसी को होने लागती है ऐसी दशा में साहसी उत्पादन तथा रोजगार में कमी कने के लिए प्रेरित करती है।
3. तृतीय - यह वह स्थिति होनी है जिसमें वास्तविक प्राप्तियाँ कुल लागत के बराबर होती है, यही साम्य का बिन्दु कहलाता है जिसे कीन्स ने भावी माँग बिन्दुश् कहा है।
प्र05. विनियोग का अर्थ तथा महत्त्व बताईये। स्वत्रन्त्र तथा प्रेरित विनियोग का अन्तर बताईये।
विनियोग का अर्थ-
प्रो0 कीन्स ने विनियोग को वास्तविक विनियोग माना है। उनके अनुसार वास्तविक विनियोग वह विनियोग जिसमें नवीन सम्प्रति, नये कारखनों, नई मशीनों, पूँजीगत सामग्री आदि का निमार्ण होता है।
विनियोग के प्रकार
स्वतन्त्र विनियोग -
स्वतन्त्र विनियोग का निर्धारण स्वतन्त्र आर्थिक शक्तियों के द्वारा होता है। इस विनियोग पर उपभाग स्तर, लाभ, ब्याज आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ब्याज दर में बिना परिवर्तन हुए विनियोग में परिवर्तन हो जाता है।
प्रेरित विनियोग -
प्रेरित विनियोग का अर्थ उस विनियोग की राशि से है जिसे लाभ अथवा ब्याज अर्जित करने के लिए विनियोजित किया जाता है। यह ब्याज दर से प्रेरित होता है।
विनियोग का महत्व -
प्रो0 कीन्स ने किसी भी देश के आर्थिक विकास में विनियोग का बड़ा महत्व बताया है। अल्पकाल में उपभोग का स्तर स्थिर रहता है, इसलिए आय तथा रोजगार के स्तर में जो परिवर्तन होते है उसके लिए विनियोग उत्तरदायी हाता है। रोजगार विनियोग वृद्धि के साथ बढ़ सकता है यदि उपभोग में वृद्धि में कोई परिवर्तन न हो। इस प्रकार विनियोग रोजगार स्तर का एक अन्यन्त महत्त्वपूर्ण निर्धारक है।
विनियोग का अर्थ-
प्रो0 कीन्स ने विनियोग को वास्तविक विनियोग माना है। उनके अनुसार वास्तविक विनियोग वह विनियोग जिसमें नवीन सम्प्रति, नये कारखनों, नई मशीनों, पूँजीगत सामग्री आदि का निमार्ण होता है।
विनियोग के प्रकार
स्वतन्त्र विनियोग -
स्वतन्त्र विनियोग का निर्धारण स्वतन्त्र आर्थिक शक्तियों के द्वारा होता है। इस विनियोग पर उपभाग स्तर, लाभ, ब्याज आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ब्याज दर में बिना परिवर्तन हुए विनियोग में परिवर्तन हो जाता है।
प्रेरित विनियोग -
प्रेरित विनियोग का अर्थ उस विनियोग की राशि से है जिसे लाभ अथवा ब्याज अर्जित करने के लिए विनियोजित किया जाता है। यह ब्याज दर से प्रेरित होता है।
विनियोग का महत्व -
प्रो0 कीन्स ने किसी भी देश के आर्थिक विकास में विनियोग का बड़ा महत्व बताया है। अल्पकाल में उपभोग का स्तर स्थिर रहता है, इसलिए आय तथा रोजगार के स्तर में जो परिवर्तन होते है उसके लिए विनियोग उत्तरदायी हाता है। रोजगार विनियोग वृद्धि के साथ बढ़ सकता है यदि उपभोग में वृद्धि में कोई परिवर्तन न हो। इस प्रकार विनियोग रोजगार स्तर का एक अन्यन्त महत्त्वपूर्ण निर्धारक है।
प्र06. विनियोग गुणक से क्या आशय है ?
उ0: जब समाज में किसी नवीन राशि का विनियोग किया जाता है तो उत्पादन और व्यय की एक ऐसी प्रक्रिया शुरू हो जाती है कि जिससे जनता को प्रारम्भिक विनियोग की तुलना में कई गुनी आय प्राप्त होती है। यह आय प्रारम्भिक विनियोग की तुलना में जिननी अधिक होती है, वह मान गुणक कहलाता है। कीन्स ने विनियोग गुणक को K का नाम दिया है। उनके अनुसार, यदि विनियोग गुणक (K) में वृद्धि होती है तो आय में वृद्धि निवेश में वृद्धि के ज्ञ गुणा हो जाएगी। |
प्र07 स्फीतिक तथा अवस्फीति अन्तराल में अन्तर बताइए ?
स्फीतिक अन्तराल - पूर्ण रोजगार स्तर पर कुल पूर्ति से कुल माँग की अधिकता स्फीति अन्तराल के रूप में जानी जाती है।
अवस्फीतिक अन्तराल - पूर्ण रोजागर स्तर पर कुल माँग से कुल पूर्ति की अधिकता अवस्फीति अन्तराल के रूप में जानी जाती है।
स्फीतिक अन्तराल - पूर्ण रोजगार स्तर पर कुल पूर्ति से कुल माँग की अधिकता स्फीति अन्तराल के रूप में जानी जाती है।
अवस्फीतिक अन्तराल - पूर्ण रोजागर स्तर पर कुल माँग से कुल पूर्ति की अधिकता अवस्फीति अन्तराल के रूप में जानी जाती है।
प्र08 स्फीतिक अन्तराल की अवधारणा को चित्र की सहयता से समझाइए ?
स्फीतिक अन्तराल - वर्तमान कीमतों पर वस्तुओं की पूर्ति के ऊपर उनकी माँग के आधिक्य को बताता है। अतः यदि वर्तमान कीमतों पर पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल व्यय कुल उत्पादन से अधिक हो जाता है तो स्फीतिक अन्तराल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
स्फीतिक अन्तराल - वर्तमान कीमतों पर वस्तुओं की पूर्ति के ऊपर उनकी माँग के आधिक्य को बताता है। अतः यदि वर्तमान कीमतों पर पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल व्यय कुल उत्पादन से अधिक हो जाता है तो स्फीतिक अन्तराल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
प्र09 पूर्ण रोजगार की अवधारणा से आप क्या समझते हैं
उ0: पूर्ण रोजगार (Full Employment) एक आर्थिक नीति और विकास की अवधारणा है जिसका मुख्य उद्देश्य होता है कि एक देश में सभी योग्य और इच्छुक लोगों को रोजगार मिलना चाहिए। इस अवधारणा के तहत, सरकार और आर्थिक नीति निर्माता को समाज में सभी वर्गों के लोगों को रोजगार देने का प्रयास करना चाहिए, ताकि वे आर्थिक सुरक्षा प्राप्त कर सकें, अपने जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बना सकें और देश की आर्थिक वृद्धि में सहयोग कर सकें। पूर्ण रोजगार.इस स्थिति में कुल पूर्ति तथा कुल माँग बराबर होती हैं तथा कुल माँग इतनी पर्याप्त होती है कि उन सभी व्यक्तियों को जो मजदूरी की वर्तमान दर पर काम करने के लिए तैयार हैए काम मिल रहा हैए अर्थात् कुल माँग तथा कुल पूर्ति में समानता उस बिन्दु पर होती है जो पूर्ण रोजगार के स्तर को प्रकट करता है। इस स्थिति में अनैच्छिक बेरोजगारी नहीं पाई जाती। इस स्थिति में कुल माँग पूर्ण रोजगार के लिए आवश्यक कुल पूर्ति से न तो कम है और न ही अधिक है। इस स्थिति में ।AS तथा AD में समानता उस स्तर पर होती है जिस स्तर पर अर्थव्यवस्था में संसाधनों को पूर्ण रोजगार प्राप्त हो रहा होता हैण् उसे चित्र द्वारा भी दिखाया जा सकता है। |
चित्र में पूर्ण रोजगार की स्थिति को प्रकट किया गया है। इस चित्र में चिह्न E पूर्ण रोजगार संतुलन को प्रकट कर रहा है। क्योंकि इस बिन्दु पर AS वक्र AD वक्र को काट रही है। बिन्दु E तक AS वक्र ऊपर की ओर उठ रही है जिससे ज्ञात होता है कि कुल माँग के बढ़ने के साथ साथ कुल पूर्ति में वृद्धि हो रही है। बिंदु E के पश्चात् कुल पूर्ति वक्र AS Curve खड़ी सीधी रेखा हो जाती है क्योंकि पूर्ण रोजगार की अवस्था प्राप्त करने के पश्चात रोजगार बढ़ने की सम्भावना नहीं रहती।
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प्र010 अनैच्छिक बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं इसके विभिन्न कारण लिखिए।
उ0:अनैच्छिक बेरोजगारी बेरोजगारी वहां स्थिति है जिसमें श्रमिक मजदूरी की वर्तमान दर पर काम करने के योग्य होते हैं तथा कार्य करने को तैयार हैं परंतु उन्हें कार्य नहीं मिलता ।
अनैच्छिक बेरोजगारी के कारण
1. अनियोजित औद्योगिकरण -_हमारे देश में पिछले कई वर्षों से तीव्रता के साथ औद्योगिकरण हुआ है। अनियोजित औद्योगिकरण के कारण आज मनुष्य के जगह पर मशीनों ने उसका स्थान ले लिया है मशीनों के कार्य करने से श्रमिकों की मांग में बहुत कमी आई है जिसके कारण बेरोजगारी में वृद्धि हुई है ।
2. कुटीर उद्योगों का पतन - आज देश के प्राचीन कुटीर उद्योग धन अभाव व आयोजित औद्योगिकरण के कारण धीरे-धीरे समाप्त हो गए हैं जिससे अनेक शिल्पकार और कारीगर बेकार हो गए हैं इससे भी बेरोजगारी बढ़ी है ।
3. आर्थिक मंदी - आर्थिक मंदी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी बेरोजगारी को बढ़ाती है औद्योगिकरण के फल स्वरुप बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन होने लगता है और जब वस्तुओं की मांग में कमी आती है तो मिल मालिक श्रमिकों को नौकरी से हटा देते हैं या उनकी छंटनी करने लगते हैं जिस से बड़ी मात्रा में श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं ।
4. श्रमिकों में गतिशीलता का अभाव - अधिकतर देखा जाता है भारतीय मजदूर अपने निवास स्थान पर जहां वे एक बार काम कर चुके होते हैं उस स्थान को छोड़कर दूसरी जगह जाना पसंद नहीं करते जिसके कारण बेरोजगारी बढ़ती है श्रमिकों में गतिशीलता के कम होने के कारण बेरोजगारी में वृद्धि होती है।
5. पर्याप्त पूंजी का अभाव - पूंजी की कमी के कारण नवीन उद्योगों की स्थापना नहीं हो पाती आज उद्योगों की स्थापना के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है लेकिन भारत में अधिकांश नागरीकों की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण वे अधिक मात्रा में बचत नहीं कर पाते हैं जिससे निवेश में कमी आती, जिसके कारण उद्योग स्थापित नहीं हो पाती है।
6. आर्थिक मंदी - किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी बेरोजगारी को बढ़ाती है औद्योगिकरण के फल स्वरुप बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन होने लगता है और जब वस्तुओं की मांग में कमी आती है तो मिल मालिक श्रमिकों को नौकरी से हटा देते हैं या उनकी छंटनी करने लगते हैं जिस से बड़ी मात्रा में श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं।
प्र011: भारत में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारणों की व्याख्या कीजिए।
1. औद्योगिक विकास की दर - को तेज करने के लिए सरकार द्वारा नए-नए उद्योगों की स्थापना की गई है जिससे सरकार के सर्वजनिक व्यय में बहुत अधिक वृद्धि हो गई है, देश में तेज आर्थिक विकास होने के कारण वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे सरकार को इन पर बहुत अधिक व्यय करना पड़ रहा है|
2. उत्पादकों को आर्थिक सहायता - देश में कृषि व उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा कृषि को व उद्योगपतियों को पर्याप्त मात्रा में ऋण एवं सहायता लगातार देनी होती है जिससे सर्वजनिक व्यय में लगातार वृद्धि हो रही है|
3. जनसंख्या में वृद्धि - गत वर्षों से भारत में लगातार जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है जिसके अनुसार भारत में बेरोजगारी बहुत तेजी से बढ़ रही है जिसके कारण सरकार का खर्च भी लगातार बढ़ रहा है
4. आर्थिक नियोजन - सरकार द्वारा देश के आर्थिक विकास के लिए कई पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण किया गया जिसमें सरकार को विभिन्न परियोजनाओं को पूरा करने के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता थी जिसे पूरा करने के लिए सरकार ने अधिक मात्रा में कर प्रबंध राष्ट्रीय आय में वृद्धि विगत वर्षों में आर्थिक विकास में हुई तीर वृद्धि के कारण
5. राष्ट्रीय आय वृद्धि - में भी लगातार वृद्धि हुई है जिससे लोगों की कर दान क्षमता में वृद्धि हुई है दूसरे और आय बढ़ने के फल स्वरुप उनके जीवन स्तर में भी वृद्धि हुई है जिसके कारण आज बाजार में वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे सरकार का सर्वजनिक व्यय लगातार बढ़ता जा रहा है|
6. सुरक्षा व में वृद्धि - सरकार द्वारा देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए बड़ी मात्रा में सेना, अस्त-शस्त्रों पर भारी व्यय करना पड़ता है जिसके कारण सरकार का रक्षा खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है|
7 .प्रजातंत्र शासन प्रणाली का विकास - आज की सरकार लोकतांत्रिक सरकार सरकार है जिन्हें जनहित में रहकर अनेक कार्य करने होते हैं जैसे उद्योगों का निर्माण, सड़कों का निर्माण, पानी, बिजली, सुरक्षा, रोजगार आदि
उ0:अनैच्छिक बेरोजगारी बेरोजगारी वहां स्थिति है जिसमें श्रमिक मजदूरी की वर्तमान दर पर काम करने के योग्य होते हैं तथा कार्य करने को तैयार हैं परंतु उन्हें कार्य नहीं मिलता ।
अनैच्छिक बेरोजगारी के कारण
1. अनियोजित औद्योगिकरण -_हमारे देश में पिछले कई वर्षों से तीव्रता के साथ औद्योगिकरण हुआ है। अनियोजित औद्योगिकरण के कारण आज मनुष्य के जगह पर मशीनों ने उसका स्थान ले लिया है मशीनों के कार्य करने से श्रमिकों की मांग में बहुत कमी आई है जिसके कारण बेरोजगारी में वृद्धि हुई है ।
2. कुटीर उद्योगों का पतन - आज देश के प्राचीन कुटीर उद्योग धन अभाव व आयोजित औद्योगिकरण के कारण धीरे-धीरे समाप्त हो गए हैं जिससे अनेक शिल्पकार और कारीगर बेकार हो गए हैं इससे भी बेरोजगारी बढ़ी है ।
3. आर्थिक मंदी - आर्थिक मंदी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी बेरोजगारी को बढ़ाती है औद्योगिकरण के फल स्वरुप बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन होने लगता है और जब वस्तुओं की मांग में कमी आती है तो मिल मालिक श्रमिकों को नौकरी से हटा देते हैं या उनकी छंटनी करने लगते हैं जिस से बड़ी मात्रा में श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं ।
4. श्रमिकों में गतिशीलता का अभाव - अधिकतर देखा जाता है भारतीय मजदूर अपने निवास स्थान पर जहां वे एक बार काम कर चुके होते हैं उस स्थान को छोड़कर दूसरी जगह जाना पसंद नहीं करते जिसके कारण बेरोजगारी बढ़ती है श्रमिकों में गतिशीलता के कम होने के कारण बेरोजगारी में वृद्धि होती है।
5. पर्याप्त पूंजी का अभाव - पूंजी की कमी के कारण नवीन उद्योगों की स्थापना नहीं हो पाती आज उद्योगों की स्थापना के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है लेकिन भारत में अधिकांश नागरीकों की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण वे अधिक मात्रा में बचत नहीं कर पाते हैं जिससे निवेश में कमी आती, जिसके कारण उद्योग स्थापित नहीं हो पाती है।
6. आर्थिक मंदी - किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी बेरोजगारी को बढ़ाती है औद्योगिकरण के फल स्वरुप बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन होने लगता है और जब वस्तुओं की मांग में कमी आती है तो मिल मालिक श्रमिकों को नौकरी से हटा देते हैं या उनकी छंटनी करने लगते हैं जिस से बड़ी मात्रा में श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं।
प्र011: भारत में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारणों की व्याख्या कीजिए।
1. औद्योगिक विकास की दर - को तेज करने के लिए सरकार द्वारा नए-नए उद्योगों की स्थापना की गई है जिससे सरकार के सर्वजनिक व्यय में बहुत अधिक वृद्धि हो गई है, देश में तेज आर्थिक विकास होने के कारण वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे सरकार को इन पर बहुत अधिक व्यय करना पड़ रहा है|
2. उत्पादकों को आर्थिक सहायता - देश में कृषि व उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा कृषि को व उद्योगपतियों को पर्याप्त मात्रा में ऋण एवं सहायता लगातार देनी होती है जिससे सर्वजनिक व्यय में लगातार वृद्धि हो रही है|
3. जनसंख्या में वृद्धि - गत वर्षों से भारत में लगातार जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है जिसके अनुसार भारत में बेरोजगारी बहुत तेजी से बढ़ रही है जिसके कारण सरकार का खर्च भी लगातार बढ़ रहा है
4. आर्थिक नियोजन - सरकार द्वारा देश के आर्थिक विकास के लिए कई पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण किया गया जिसमें सरकार को विभिन्न परियोजनाओं को पूरा करने के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता थी जिसे पूरा करने के लिए सरकार ने अधिक मात्रा में कर प्रबंध राष्ट्रीय आय में वृद्धि विगत वर्षों में आर्थिक विकास में हुई तीर वृद्धि के कारण
5. राष्ट्रीय आय वृद्धि - में भी लगातार वृद्धि हुई है जिससे लोगों की कर दान क्षमता में वृद्धि हुई है दूसरे और आय बढ़ने के फल स्वरुप उनके जीवन स्तर में भी वृद्धि हुई है जिसके कारण आज बाजार में वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे सरकार का सर्वजनिक व्यय लगातार बढ़ता जा रहा है|
6. सुरक्षा व में वृद्धि - सरकार द्वारा देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए बड़ी मात्रा में सेना, अस्त-शस्त्रों पर भारी व्यय करना पड़ता है जिसके कारण सरकार का रक्षा खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है|
7 .प्रजातंत्र शासन प्रणाली का विकास - आज की सरकार लोकतांत्रिक सरकार सरकार है जिन्हें जनहित में रहकर अनेक कार्य करने होते हैं जैसे उद्योगों का निर्माण, सड़कों का निर्माण, पानी, बिजली, सुरक्षा, रोजगार आदि
प्र012 माना कि किसी व्यक्ति की आय रू0 500 प्रतिमाह है जिसमें से वह रू0 300 प्रतिमहा उपभोग कर लेता है। अब यदि उसकी आय में वृद्धि हो जाती है और आय रू0 700 प्रतिमहा हो जाती तथा व्यय बढ़कर रू0 350 हो जाता है तो औसत तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की गणना करें ?
प्र013. यदि MPC = 0.8 तो गुणक क्या होगा ?
प्र014. यदि MPC = (i) 25% (ii) 100% तो गुणक का मूल्य ज्ञात कीजिए?
प्र015. यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS ) 0.1 है तो गुणक का गणना करें।
SELF ASSESSMENT (मूल्यांकन)
SELF ASSESSMENT (मूल्यांकन)