अध्याय - 6
सहसंबंध
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👉बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कद (फुटों में) तथा वजन (किलोग्राम में) के बीच सहसम्बन्ध गुणांक की इकाई है।
(क) कि.ग्रा./फुट
(ख) प्रतिशत
(ग) अविद्यमान
प्रश्न 2. सरल सहसम्बन्ध गुणांक का परास निम्नलिखित होगा।
(क) 0 से अनन्त तक
(ख) 1 से + 1 तक
(ग) ऋणात्मक अनन्त से धनात्मक अनन्त तक
प्रश्न 3. यदि । धनात्मक है तो x और y के बीच का सम्बन्ध इस प्रकार का होता है।
(क) जब y बढ़ता है तो x बढ़ता है।
(ख) जब y घटता है तो x बढ़ता है।
(ग) जब । बढ़ता है तो x नहीं बढ़ता है।
प्रश्न 4. यदि = 0 तब चर x और y के बीच
(क) रेखीय सम्बन्ध होगा
(ख) रेखीय सम्बन्ध नहीं होगा
(ग) स्वतन्त्र होगा
प्रश्न 5. निम्नलिखित तीनों मापों में, कौनसा माप किसी भी प्रकार के सम्बन्ध की माप कर सकता है
(क) कार्ल पियरसन सहसम्बन्ध गुणांक
(ख) स्पीयरमैन का कोटि सहसम्बन्ध
(ग) प्रकीर्ण आरेख
प्रश्न 6. यदि परिशुद्ध रूप से मापित आँकड़े उपलब्ध हों, तो सरल सहसम्बन्ध गुणांक।
(क) कोटि सहसम्बन्ध गुणांक से अधिक सही होता है।
(ख) कोटि सहसम्बन्ध गुणांक से कम सही होता
(ग) कोटि सहसम्बन्ध की ही भाँति सही होता
(क) कि.ग्रा./फुट
(ख) प्रतिशत
(ग) अविद्यमान
प्रश्न 2. सरल सहसम्बन्ध गुणांक का परास निम्नलिखित होगा।
(क) 0 से अनन्त तक
(ख) 1 से + 1 तक
(ग) ऋणात्मक अनन्त से धनात्मक अनन्त तक
प्रश्न 3. यदि । धनात्मक है तो x और y के बीच का सम्बन्ध इस प्रकार का होता है।
(क) जब y बढ़ता है तो x बढ़ता है।
(ख) जब y घटता है तो x बढ़ता है।
(ग) जब । बढ़ता है तो x नहीं बढ़ता है।
प्रश्न 4. यदि = 0 तब चर x और y के बीच
(क) रेखीय सम्बन्ध होगा
(ख) रेखीय सम्बन्ध नहीं होगा
(ग) स्वतन्त्र होगा
प्रश्न 5. निम्नलिखित तीनों मापों में, कौनसा माप किसी भी प्रकार के सम्बन्ध की माप कर सकता है
(क) कार्ल पियरसन सहसम्बन्ध गुणांक
(ख) स्पीयरमैन का कोटि सहसम्बन्ध
(ग) प्रकीर्ण आरेख
प्रश्न 6. यदि परिशुद्ध रूप से मापित आँकड़े उपलब्ध हों, तो सरल सहसम्बन्ध गुणांक।
(क) कोटि सहसम्बन्ध गुणांक से अधिक सही होता है।
(ख) कोटि सहसम्बन्ध गुणांक से कम सही होता
(ग) कोटि सहसम्बन्ध की ही भाँति सही होता
👉विस्तृत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 7. साहचर्य के माप के लिए को सहप्रसरण से अधिक प्राथमिकता क्यों दी जाती है?
उत्तर: साहचर्य के माप के लिए " को सहप्रसरण से अधिक प्राथमिकता दी जाती है। इसका कारण है कि सहसम्बन्ध (1) सह-प्रसरण का मापन करता है न कि कार्य-कारण सम्बन्ध का। दो चरों x तथा y के बीच सहसम्बन्ध की उपस्थिति का अर्थ है कि जब एक चर का मान किसी दिशा में बदलता है, तो दूसरा चर भी किसी निश्चित दिशा में बदलेगा। अतः सह-प्रसरण की माप के कारण ही सहसम्बन्ध को अधिक प्राथमिकता दी जाती है।
प्रश्न 8. क्या आंकड़ों के प्रकार के आधार पर r,-1 तथा +1 के बाहर स्थित हो सकता है?
उत्तर: ऑकड़ों के प्रकार के आधार पर 1,-1 तथा +1 के बाहर स्थित नहीं हो सकता है, क्योंकि सहसम्बन्ध का न्यूनतम मान -1 तथा अधिकतम मान +1 होता है।
प्रश्न 9. क्या सहसम्बन्ध के द्वारा कार्य-कारण सम्बन्ध की जानकारी मिलती है?
उत्तर: सहसम्बन्ध से कार्य-कारण की जानकारी नहीं मिलती है, बल्कि सहसम्बन्ध सह - प्रसरण का मापन करता है। दो चरों x और y के बीच सहसम्बन्ध की उपस्थिति का अर्थ है कि जब एक चर का मान किसी दिशा में बदलता है तो दूसरे चर का मान या तो उसी दिशा में बदलेगा या फिर विपरीत दिशा में बदलेगा।
प्रश्न 10. सरल सहसम्बन्ध गुणांक की तुलना में कोटि सहसम्बन्ध गुणांक कब अधिक परिशुद्ध होता है?
उत्तर: सरल सहसम्बन्ध गुणांक की तुलना में कोटि सहसम्बन्ध गुणांक उन परिस्थितियों में अधिक परिशुद्ध होता है, जबकि तथ्यों को प्रत्यक्ष रूप से संख्या में मापना सम्भव न हो; परन्तु उन्हें एक निश्चित क्रम में रखा जा सकता है, जैसे-कुशलता, सुन्दरता, बुद्धिमता, योग्यता, स्वास्थ्य इत्यादि । इसके अतिरिक्त, कभी-कभी चरम मानों वाले दो चरों के बीच सहसम्बन्ध गुणांक, चरम मान से रहित गुणांक से अत्यन्त भिन्न हो सकता है। इन परिस्थितियों में कोटि सहसम्बन्ध साधारण सहसम्बन्ध की तुलना में बेहतर विकल्प प्रदान करता है।
प्रश्न 11. क्या शून्य सहसम्बन्ध का अर्थ स्वतन्त्रता है?
उत्तर: जब सहसम्बन्ध शून्य होता है तो दो चर आपस में सह-सम्बन्धित नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में सहसम्बन्ध का अभाव पाया जाता है तथापि इन चरों के बीच किसी दूसरे प्रकार का सहसम्बन्ध पाया जा सकता है। सामान्यतः शून्य सहसम्बन्ध का अर्थ स्वतन्त्रता ही है; क्योंकि इसमें सहसम्बन्ध की अनुपस्थिति पाई जाती है।
प्रश्न 12. क्या सरल सहसम्बन्ध गुणांक किसी भी प्रकार के सम्बन्ध को माप सकता है?
उत्तर: सरल सहसम्बन्ध गुणांक केवल दो चरों के बीच पाए जाने वाले सहसम्बन्ध को माप सकता है। जब दो चरों से अधिक चरों के मध्य सम्बन्ध पाया जाए जैसेगेहूँ की पैदावार पर वर्षा एवं तापमान के प्रभाव का अध्ययन करना, तो ऐसी स्थिति में सरल सहसम्बन्ध गुणांक सहसम्बन्ध को नहीं माप सकता है। अतः सरल सहसम्बन्ध गुणांक से सभी प्रकार के सम्बन्धों को नहीं मापा जा सकता है। यह दो चरों के मध्य पाए जाने वाले किसी भी प्रकार के सम्बन्ध को माप सकता है।
प्रश्न 13. एक सप्ताह तक अपने स्थानीय बाजार में 5 प्रकार की सब्जियों की कीमतें प्रतिदिन एकत्र करें। उनका सहसम्बन्ध गुणांक परिकलित कीजिए। इसके परिणाम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: उपर्युक्त स्थिति में सहसम्बन्ध गुणांक के परिकलन को अग्र उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
उत्तर: साहचर्य के माप के लिए " को सहप्रसरण से अधिक प्राथमिकता दी जाती है। इसका कारण है कि सहसम्बन्ध (1) सह-प्रसरण का मापन करता है न कि कार्य-कारण सम्बन्ध का। दो चरों x तथा y के बीच सहसम्बन्ध की उपस्थिति का अर्थ है कि जब एक चर का मान किसी दिशा में बदलता है, तो दूसरा चर भी किसी निश्चित दिशा में बदलेगा। अतः सह-प्रसरण की माप के कारण ही सहसम्बन्ध को अधिक प्राथमिकता दी जाती है।
प्रश्न 8. क्या आंकड़ों के प्रकार के आधार पर r,-1 तथा +1 के बाहर स्थित हो सकता है?
उत्तर: ऑकड़ों के प्रकार के आधार पर 1,-1 तथा +1 के बाहर स्थित नहीं हो सकता है, क्योंकि सहसम्बन्ध का न्यूनतम मान -1 तथा अधिकतम मान +1 होता है।
प्रश्न 9. क्या सहसम्बन्ध के द्वारा कार्य-कारण सम्बन्ध की जानकारी मिलती है?
उत्तर: सहसम्बन्ध से कार्य-कारण की जानकारी नहीं मिलती है, बल्कि सहसम्बन्ध सह - प्रसरण का मापन करता है। दो चरों x और y के बीच सहसम्बन्ध की उपस्थिति का अर्थ है कि जब एक चर का मान किसी दिशा में बदलता है तो दूसरे चर का मान या तो उसी दिशा में बदलेगा या फिर विपरीत दिशा में बदलेगा।
प्रश्न 10. सरल सहसम्बन्ध गुणांक की तुलना में कोटि सहसम्बन्ध गुणांक कब अधिक परिशुद्ध होता है?
उत्तर: सरल सहसम्बन्ध गुणांक की तुलना में कोटि सहसम्बन्ध गुणांक उन परिस्थितियों में अधिक परिशुद्ध होता है, जबकि तथ्यों को प्रत्यक्ष रूप से संख्या में मापना सम्भव न हो; परन्तु उन्हें एक निश्चित क्रम में रखा जा सकता है, जैसे-कुशलता, सुन्दरता, बुद्धिमता, योग्यता, स्वास्थ्य इत्यादि । इसके अतिरिक्त, कभी-कभी चरम मानों वाले दो चरों के बीच सहसम्बन्ध गुणांक, चरम मान से रहित गुणांक से अत्यन्त भिन्न हो सकता है। इन परिस्थितियों में कोटि सहसम्बन्ध साधारण सहसम्बन्ध की तुलना में बेहतर विकल्प प्रदान करता है।
प्रश्न 11. क्या शून्य सहसम्बन्ध का अर्थ स्वतन्त्रता है?
उत्तर: जब सहसम्बन्ध शून्य होता है तो दो चर आपस में सह-सम्बन्धित नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में सहसम्बन्ध का अभाव पाया जाता है तथापि इन चरों के बीच किसी दूसरे प्रकार का सहसम्बन्ध पाया जा सकता है। सामान्यतः शून्य सहसम्बन्ध का अर्थ स्वतन्त्रता ही है; क्योंकि इसमें सहसम्बन्ध की अनुपस्थिति पाई जाती है।
प्रश्न 12. क्या सरल सहसम्बन्ध गुणांक किसी भी प्रकार के सम्बन्ध को माप सकता है?
उत्तर: सरल सहसम्बन्ध गुणांक केवल दो चरों के बीच पाए जाने वाले सहसम्बन्ध को माप सकता है। जब दो चरों से अधिक चरों के मध्य सम्बन्ध पाया जाए जैसेगेहूँ की पैदावार पर वर्षा एवं तापमान के प्रभाव का अध्ययन करना, तो ऐसी स्थिति में सरल सहसम्बन्ध गुणांक सहसम्बन्ध को नहीं माप सकता है। अतः सरल सहसम्बन्ध गुणांक से सभी प्रकार के सम्बन्धों को नहीं मापा जा सकता है। यह दो चरों के मध्य पाए जाने वाले किसी भी प्रकार के सम्बन्ध को माप सकता है।
प्रश्न 13. एक सप्ताह तक अपने स्थानीय बाजार में 5 प्रकार की सब्जियों की कीमतें प्रतिदिन एकत्र करें। उनका सहसम्बन्ध गुणांक परिकलित कीजिए। इसके परिणाम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: उपर्युक्त स्थिति में सहसम्बन्ध गुणांक के परिकलन को अग्र उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
= 1 - 0.875 = 0.125
परिणामों की व्याख्या: यहाँ सप्ताह भर की पाँच सब्जियों की कीमतें एकत्र कर उनके मध्य सहसम्बन्ध की गणना की गई। आलू तथा गोभी के मध्य सहसम्बन्ध की गणना करने पर सहसम्बन्ध गुणांक 0.089 आया। गोभी एवं टमाटर के मध्य सहसम्बन्ध गुणांक 036 निकला। टमाटर तथा मटर के मध्य सहसम्बन्ध गुणांक 0.34 निकला तथा मटर एवं गाजर के बीच सहसम्बन्ध गुणांक 048 निकला। इसी प्रकार गाजर और आलू के बीच सहसम्बन्ध गुणांक 0.125 निकला। इन पाँच सब्जियों में से मटर तथा गाजर के बीच सहसम्बन्ध गुणांक सबसे अधिक अर्थात् 0.48 पाया गया अतः इसमें उच्च कीमतें पाई गई।
प्रश्न 14. अपनी कक्षा के सहपाठियों के कद मापिए। उनसे उनके बेंच पर बैठे सहपाठी का कद पूछिए। इन दो चरों का सहसम्बन्ध गुणांक परिकलित कीजिए और परिणाम का निर्वचन कीजिए।
उत्तर:उपर्युक्त स्थिति में सहसम्बन्ध गुणांक के परिकलन को अग्र उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
परिणामों की व्याख्या: यहाँ सप्ताह भर की पाँच सब्जियों की कीमतें एकत्र कर उनके मध्य सहसम्बन्ध की गणना की गई। आलू तथा गोभी के मध्य सहसम्बन्ध की गणना करने पर सहसम्बन्ध गुणांक 0.089 आया। गोभी एवं टमाटर के मध्य सहसम्बन्ध गुणांक 036 निकला। टमाटर तथा मटर के मध्य सहसम्बन्ध गुणांक 0.34 निकला तथा मटर एवं गाजर के बीच सहसम्बन्ध गुणांक 048 निकला। इसी प्रकार गाजर और आलू के बीच सहसम्बन्ध गुणांक 0.125 निकला। इन पाँच सब्जियों में से मटर तथा गाजर के बीच सहसम्बन्ध गुणांक सबसे अधिक अर्थात् 0.48 पाया गया अतः इसमें उच्च कीमतें पाई गई।
प्रश्न 14. अपनी कक्षा के सहपाठियों के कद मापिए। उनसे उनके बेंच पर बैठे सहपाठी का कद पूछिए। इन दो चरों का सहसम्बन्ध गुणांक परिकलित कीजिए और परिणाम का निर्वचन कीजिए।
उत्तर:उपर्युक्त स्थिति में सहसम्बन्ध गुणांक के परिकलन को अग्र उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
प्रश्न 15. कुछ ऐसे चरों की सूची बनाएँ, जिनका परिशुद्ध मापन कठिन हो।
उत्तर: कुछ ऐसे सम्बन्ध होते हैं, जो मात्र संयोग होते हैं, ऐसे चरों का परिशुद्ध मापन कठिन होता है। इनका उदाहरण निम्न प्रकार है
प्रश्न 16. 1 के विभिन्न मानों +1,-1 तथा 0 की व्याख्या करें।
उत्तर: जब का मान +1 होता है तो दो चरों के बीच पाए जाने वाला रेखीय सम्बन्ध पूर्णतया धनात्मक होता है। यदि का मान -1 होता है तो दो चरों के बीच पाया जाने वाला सहसम्बन्ध पूर्णतया ऋणात्मक होता है। यदि का मान शून्य (0) होता है तो दो चरों के बीच सहसम्बन्ध का अभाव पाया जाता है, किन्तु ऐसी स्थिति में चरों के बीच रेखीय सम्बन्ध के अलावा किसी दूसरी प्रकार का सम्बन्ध पाया जा सकता है।
प्रश्न 17. पियरसन सहसम्बन्ध गुणांक से कोटि सहसम्बन्ध गुणांक क्यों भिन्न होता है?
उत्तर: कोटि सहसम्बन्ध गुणांक, पियरसन सहसम्बन्ध गुणांक से भिन्न होता है। कोटि सहसम्बन्ध गुणांक का प्रयोग तब किया जाता है जब चरों को सार्थक रूप से नहीं मापा जा सकता है; जैसे-कुशलता, सुन्दरता, बुद्धिमानी इत्यादि। जब गुणवत्ताओं पर आधारित चरों का सहसम्बन्ध ज्ञात किया जाता है तब उन्हें परिमाणीकरण करने के बजाय उनकी कोटि निर्धारित करना अधिक अच्छा विकल्प है, अत: कोटि सहसम्बन्ध गुणांक का उपयोग किया जाता है। जब कभी चरम मानों वाले दो चरों के बीच सहसम्बन्ध गुणांक, चर मान से रहित गुणांक से अत्यन्त भिन्न होता है तब कोटि सहसम्बन्ध गुणांक, पियरसन गुणांक की तुलना में बेहतर विकल्प प्रदान करता है।
उत्तर: कुछ ऐसे सम्बन्ध होते हैं, जो मात्र संयोग होते हैं, ऐसे चरों का परिशुद्ध मापन कठिन होता है। इनका उदाहरण निम्न प्रकार है
- किसी पक्षी विहार में प्रवासी पक्षियों के आने के साथ उस क्षेत्र में जन्म दरों के सहसम्बन्ध का मापन।
- आपकी जूते की माप तथा जेब में पैसों के बीच सहसम्बन्ध का मापन।
- चीन का मौसम तथा भारत में चाय की मांग के बीच सहसम्बन्ध का मापन।
- चीन में वर्षा की मात्रा तथा भारत में कपड़े की मांग के बीच सहसम्बन्ध का मापन आदि।
प्रश्न 16. 1 के विभिन्न मानों +1,-1 तथा 0 की व्याख्या करें।
उत्तर: जब का मान +1 होता है तो दो चरों के बीच पाए जाने वाला रेखीय सम्बन्ध पूर्णतया धनात्मक होता है। यदि का मान -1 होता है तो दो चरों के बीच पाया जाने वाला सहसम्बन्ध पूर्णतया ऋणात्मक होता है। यदि का मान शून्य (0) होता है तो दो चरों के बीच सहसम्बन्ध का अभाव पाया जाता है, किन्तु ऐसी स्थिति में चरों के बीच रेखीय सम्बन्ध के अलावा किसी दूसरी प्रकार का सम्बन्ध पाया जा सकता है।
प्रश्न 17. पियरसन सहसम्बन्ध गुणांक से कोटि सहसम्बन्ध गुणांक क्यों भिन्न होता है?
उत्तर: कोटि सहसम्बन्ध गुणांक, पियरसन सहसम्बन्ध गुणांक से भिन्न होता है। कोटि सहसम्बन्ध गुणांक का प्रयोग तब किया जाता है जब चरों को सार्थक रूप से नहीं मापा जा सकता है; जैसे-कुशलता, सुन्दरता, बुद्धिमानी इत्यादि। जब गुणवत्ताओं पर आधारित चरों का सहसम्बन्ध ज्ञात किया जाता है तब उन्हें परिमाणीकरण करने के बजाय उनकी कोटि निर्धारित करना अधिक अच्छा विकल्प है, अत: कोटि सहसम्बन्ध गुणांक का उपयोग किया जाता है। जब कभी चरम मानों वाले दो चरों के बीच सहसम्बन्ध गुणांक, चर मान से रहित गुणांक से अत्यन्त भिन्न होता है तब कोटि सहसम्बन्ध गुणांक, पियरसन गुणांक की तुलना में बेहतर विकल्प प्रदान करता है।
👉✍️अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न (नोट्स)
प्र0.1 सहसम्बन्ध का क्या अर्थ है ?
परिभाषा - जब दो चर राशियों में से एक चर राशि के बढ़ने से दूसरी चर राशि में वृद्धि या कमी हो एवं एक चर राशि की कमी से दूसरी चर राशि में वृद्धि या कमी हो तो उन दोनों चर राशियों में सहसम्बन्ध पाया जाता है।
उदाहरण - जैसे किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग में कमी होती है।
रोजगार में वृद्धि होने पर उत्पादन में वृद्धि होती है।
प्र0.2 सहसम्बन्ध के कितने प्रकार है ?
1. धनात्मक अथवा ऋणात्मक सहसम्बन्ध -
यदि एक चर मूल्य धटने पर दूसरा चर मूल्य भी धटे अथवा एक चर मूल्य के बढ़ने पर दूसरा चर मूल्य भी बढ़े तो ऐसा सहसम्बन्ध धनात्मक होता है। उदाहरण मूल्य एवं पूर्ति में इस प्रकार का संबध पाया जाता है।
ऋणात्मक सहसम्बन्ध उस दशा में होता है जब एक चर मूल्य के धटने पर दूसरा चर मूल्य बढ़ता हो तथा एक चर मूल्य के बढ़ने पर दूसरे चर मूल्य में कमी होती हो। मूल्य एवं माँग में इसी प्रकार का सहसम्बन्ध पाया जाता है।
2. सरल, आंशिक अथवा बहुगुणी सहसम्बन्ध - दो चर मूल्यों के सहसम्बन्ध को सरल सहसम्बन्ध कहते है। आंशिक सहसम्बन्ध में दो मूल्यों में एक अन्य स्वतन्त्र चर मूल्य का समावेश करके सहसम्बन्ध ज्ञात किया जाता है। बहुगुणी सहसम्बन्ध में तीन या अधिक चर मूल्यों के मध्य सहसम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है।
3. रेखीय तथा अरेखीय सहसम्बन्ध - यदि दो चर मूल्यों के मध्य परिवर्तन का अनुपात समान होता है तो उनमें रेखीय सहसम्बन्ध होगा। इन चर मूल्यों को यदि बिन्दुरेखीय पत्र पर अंकित किया जाए तो बिन्दु एक सीधी रेखा के रूप में होगें। यदि दो चर मूल्यों के मध्य परिवर्तन का अनुपात एक समान नहीं होगा तो उसे अरेखीय सहसम्बन्ध कहते है।
प्र0.3 सहसम्बन्ध के परिमाण कौन से है ?
सहसम्बन्ध के तीन प्रमुख परिमाण हो सकते है।
(1) पूर्ण सहसम्बन्ध -
(अ) जब दो श्रेणियों में परिवर्तन एक ही दिशा में तथा समान अनुपात में होते हैं तो उनमें पूर्ण धनात्मक सहसम्बन्ध पाया जाता है। ऐसी दशा में सहसम्बन्ध (r) + 1 गुणांक होता है।
(ब) जब दो श्रेणियों में परिवर्तन विपरीत दिशा में किन्तु समान अनुपात में होते हैं तो उनमें पूर्ण ऋणात्मक सहसम्बन्ध पाया जाता है। ऐसी दशा में सहसम्बन्ध गुणांक (r) - 1 होता है।
(2) सहसम्बन्ध का अभाव - जब दो श्रेणियों या चरों एक दूसरे को प्रभावित नहीं करते तो हम कहे सकते है की उनमें सहसम्बन्ध का अभाव है। ऐसी दशा में सहसम्बन्ध गुणांक (r) शून्य (0) होता है।
(3) सीमित सहसम्बन्ध - जब दो श्रेणियों या चरों में परिवर्तन एक समान नहीं होते या सीमित मात्रा में होते है तो उनको सीमित सहसम्बन्ध कहते है। इस प्रकार का सहसम्बन्ध धनात्मक व ऋणात्मक दोनों प्रकार का हो सकता है। सामान्यतः यह 1 के मध्य होता है। परिमाण की दृष्टि से सीमित सहसम्बन्ध तीन प्रकार के हो सकते है।
परिमाण की दृष्टि से सीमित सहसम्बन्ध तीन प्रकार के हो सकते है
1. उच्च स्तरीय सहसम्बन्ध
2. मध्यम स्तरीय सहसम्बन्ध
3. निम्न स्तरीय सहसम्बन्ध
परिभाषा - जब दो चर राशियों में से एक चर राशि के बढ़ने से दूसरी चर राशि में वृद्धि या कमी हो एवं एक चर राशि की कमी से दूसरी चर राशि में वृद्धि या कमी हो तो उन दोनों चर राशियों में सहसम्बन्ध पाया जाता है।
उदाहरण - जैसे किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग में कमी होती है।
रोजगार में वृद्धि होने पर उत्पादन में वृद्धि होती है।
प्र0.2 सहसम्बन्ध के कितने प्रकार है ?
1. धनात्मक अथवा ऋणात्मक सहसम्बन्ध -
यदि एक चर मूल्य धटने पर दूसरा चर मूल्य भी धटे अथवा एक चर मूल्य के बढ़ने पर दूसरा चर मूल्य भी बढ़े तो ऐसा सहसम्बन्ध धनात्मक होता है। उदाहरण मूल्य एवं पूर्ति में इस प्रकार का संबध पाया जाता है।
ऋणात्मक सहसम्बन्ध उस दशा में होता है जब एक चर मूल्य के धटने पर दूसरा चर मूल्य बढ़ता हो तथा एक चर मूल्य के बढ़ने पर दूसरे चर मूल्य में कमी होती हो। मूल्य एवं माँग में इसी प्रकार का सहसम्बन्ध पाया जाता है।
2. सरल, आंशिक अथवा बहुगुणी सहसम्बन्ध - दो चर मूल्यों के सहसम्बन्ध को सरल सहसम्बन्ध कहते है। आंशिक सहसम्बन्ध में दो मूल्यों में एक अन्य स्वतन्त्र चर मूल्य का समावेश करके सहसम्बन्ध ज्ञात किया जाता है। बहुगुणी सहसम्बन्ध में तीन या अधिक चर मूल्यों के मध्य सहसम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है।
3. रेखीय तथा अरेखीय सहसम्बन्ध - यदि दो चर मूल्यों के मध्य परिवर्तन का अनुपात समान होता है तो उनमें रेखीय सहसम्बन्ध होगा। इन चर मूल्यों को यदि बिन्दुरेखीय पत्र पर अंकित किया जाए तो बिन्दु एक सीधी रेखा के रूप में होगें। यदि दो चर मूल्यों के मध्य परिवर्तन का अनुपात एक समान नहीं होगा तो उसे अरेखीय सहसम्बन्ध कहते है।
प्र0.3 सहसम्बन्ध के परिमाण कौन से है ?
सहसम्बन्ध के तीन प्रमुख परिमाण हो सकते है।
(1) पूर्ण सहसम्बन्ध -
(अ) जब दो श्रेणियों में परिवर्तन एक ही दिशा में तथा समान अनुपात में होते हैं तो उनमें पूर्ण धनात्मक सहसम्बन्ध पाया जाता है। ऐसी दशा में सहसम्बन्ध (r) + 1 गुणांक होता है।
(ब) जब दो श्रेणियों में परिवर्तन विपरीत दिशा में किन्तु समान अनुपात में होते हैं तो उनमें पूर्ण ऋणात्मक सहसम्बन्ध पाया जाता है। ऐसी दशा में सहसम्बन्ध गुणांक (r) - 1 होता है।
(2) सहसम्बन्ध का अभाव - जब दो श्रेणियों या चरों एक दूसरे को प्रभावित नहीं करते तो हम कहे सकते है की उनमें सहसम्बन्ध का अभाव है। ऐसी दशा में सहसम्बन्ध गुणांक (r) शून्य (0) होता है।
(3) सीमित सहसम्बन्ध - जब दो श्रेणियों या चरों में परिवर्तन एक समान नहीं होते या सीमित मात्रा में होते है तो उनको सीमित सहसम्बन्ध कहते है। इस प्रकार का सहसम्बन्ध धनात्मक व ऋणात्मक दोनों प्रकार का हो सकता है। सामान्यतः यह 1 के मध्य होता है। परिमाण की दृष्टि से सीमित सहसम्बन्ध तीन प्रकार के हो सकते है।
परिमाण की दृष्टि से सीमित सहसम्बन्ध तीन प्रकार के हो सकते है
1. उच्च स्तरीय सहसम्बन्ध
2. मध्यम स्तरीय सहसम्बन्ध
3. निम्न स्तरीय सहसम्बन्ध
प्र0.4 सहसम्बन्ध का क्या महत्तव है ?
सांख्यिकीय में सहसम्बन्ध का बहुत महत्व है। इस सिद्धान्त का विकास फ्रांसिस गाल्टन व कार्ल पियरसन ने किया था। इस सिद्धान्त के माध्यम से अर्थशास्त्र के नियम, नीति निर्माण, कारण एवं परिणाम में सबंध, व्यापारिक निर्णय लेने आदि में सहायक है।
(1) नियमों तथा धारणाओं का निर्माण करना - सहसम्बन्ध के अध्ययन से चरों के पारस्परिक सम्बन्ध की दिशा और मात्रा का ज्ञान होता है। जैसे माँग का नियम का निर्माण हुआ।
(2) कारण एवं परिणाम में सम्बन्ध स्पष्ट करना - सहसम्बन्ध वैज्ञानिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में दो या दो से अधिक धटनाओं के आपसी सम्बन्धों को स्पष्ट करता है। यह स्पष्ट करता है कि विभिन्न समस्याओं के कारण और परिणाम में कितना और किस प्रकार का सम्बन्ध है।
(3) व्यापारिक निर्णय लेने में सहायक - सहसम्बन्ध के आधार पर चरों में होने वाले परिवर्तन के आधार पर व्यापार में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
सांख्यिकीय में सहसम्बन्ध का बहुत महत्व है। इस सिद्धान्त का विकास फ्रांसिस गाल्टन व कार्ल पियरसन ने किया था। इस सिद्धान्त के माध्यम से अर्थशास्त्र के नियम, नीति निर्माण, कारण एवं परिणाम में सबंध, व्यापारिक निर्णय लेने आदि में सहायक है।
(1) नियमों तथा धारणाओं का निर्माण करना - सहसम्बन्ध के अध्ययन से चरों के पारस्परिक सम्बन्ध की दिशा और मात्रा का ज्ञान होता है। जैसे माँग का नियम का निर्माण हुआ।
(2) कारण एवं परिणाम में सम्बन्ध स्पष्ट करना - सहसम्बन्ध वैज्ञानिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में दो या दो से अधिक धटनाओं के आपसी सम्बन्धों को स्पष्ट करता है। यह स्पष्ट करता है कि विभिन्न समस्याओं के कारण और परिणाम में कितना और किस प्रकार का सम्बन्ध है।
(3) व्यापारिक निर्णय लेने में सहायक - सहसम्बन्ध के आधार पर चरों में होने वाले परिवर्तन के आधार पर व्यापार में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
प्र0.5 प्रकीर्ण आरेख विधि क्या है ?
प्रकीर्ण आरेख (scatter plot) एक आरेख है जिससे दो चरों के मानों को कार्तीय निर्देशांक प्रणाली में दर्शाया जाता है. इस आरेख में, एक चर स्वतंत्र चर होता है और दूसरा परतंत्र चर होता है. स्वतंत्र चर को x-अक्ष पर और परतंत्र चर को y-अक्ष पर दर्शाया जाता है.
प्रकीर्ण आरेख (scatter plot) एक आरेख है जिससे दो चरों के मानों को कार्तीय निर्देशांक प्रणाली में दर्शाया जाता है. इस आरेख में, एक चर स्वतंत्र चर होता है और दूसरा परतंत्र चर होता है. स्वतंत्र चर को x-अक्ष पर और परतंत्र चर को y-अक्ष पर दर्शाया जाता है.