3. उत्पादन तथा लागत
🔰बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. उत्पादन का मौलिक उद्देश्य है
(a) लाभ अर्जन
(b) रोजगार अर्जन
(c) मानव कल्याण
(d) मानव सन्तुष्टि
2. उत्पादन सम्भव नहीं है।
(a) भूमि और पूँजी के अभाव में
(b) भूमि और श्रम के अभाव में
(c) श्रम और पूँजी के अभाव में
(d) पूँजी और साहस के अभाव में
3. उत्पादन के निष्क्रिय साधन कौन सा है ?
(a) भूमि
(b) केवल पूँजी
(c) भूमि और पूँजी
(d) उपरोक्त सभी
4. किसी वस्तु का उत्पादन करने पर समाज को जो वास्तविक त्याग करना पड़ता है, वह .............. कहलाता है।
(a) निजी लागत
(b) स्थिर लागत
(c) अवसर लागत
(d) सामाजिक लागत
5. उत्त्पति ह्यस नियम लागू होता हैं।
(a) केवल कृषि क्षेत्रों में
(b) उत्पादन के सभी क्षेत्रों में
(c) केवल उद्योगों में
(d) इनमें से कोई नहीं
6. इनमें से कौन सा साधन उत्पादन का साधन नहीं है ?
(a) भूमि
(b) पूॅजी
(c) श्रम
(d) धन
7. किसी फर्म के निर्गत Output और आगत Input के बीच के सम्बन्धों को उत्पादन ............. कहते है।
(a) उपभोग
(b) उत्पादन
(c) निवेश
(d) फलन
8. कुल लागत को कुल उत्पादित इकाइयों से भाग देने पर जो लागत आती है, वही ....................... लागत कहलाती है।
(a) स्थिर लागत
(b) सीमान्त लागत
(c) कुल लागत
(d) औसत लागत
9. किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल लागत में जो वृद्ध्रि होती है, उसे ................ लागत कहते है।
(a) स्थिर लागत
(b) सीमान्त लागत
(c) कुल लागत
(d) औसत लागत
10. एक वस्तु की बिक्री 3 इकाई से बढकर 4 इकाई हो जाती। परिणामस्वरूप कुल लागत 100 से बढकार 125 हो जाती है, तो सीमान्त लागत क्या होगी ?
(a) 25 रूपये
(b) 20 रूपये
(c) 29 रूपये
(d) 40 रूपये
11. यदि 40 वस्तुओं की कुल लागत रू0 800 है तो औसत लागत क्या होगी ?
(a) 40 रूपये
(b) 20 रूपये
(c) 400 रूपये
(d) 100 रूपये
12. उत्पादन के साधनों पर किया जाने वाला व्यय क्या कहलाता है ?
(a) आगम
(b) आय
(c) लागत
(d) सामाजिक लागत
13. उत्पादन फलन में उत्पादन किसका फलन है।
(a) उत्पति के साधनों का
(b) कीमत का
(c) कुल व्यय का
(d) उपर्युक्त सभी का
14. पैमाने में वृद्वि का अर्थ है।
(a) सभी साधनों को भिन्न-भिन्न अनुपातों में बढ़ाना
(b) एक साधन को स्थिर रखकर अन्य साधनों को बढ़ाना
(c) केवल एक साधन को बढ़ाना।
(d) सभी साधनों को एक ही अनुपात मे बढ़ाना
15. अल्पकाल में ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था में परिवर्तनशील साधन की सीमान्त उत्पादकता होती है।
(a) धनात्मक
(b) शून्य
(c) ऋणात्मक
(d) ये सभी
16. कुल परवर्ती लागत तथा कुल स्थिर लागत के जोड़ से प्राप्त होती है।
(a) कुल लागत
(b) औसत लागत
(c) सीमान्त लागत
(d) इनमें से कोई नहीं।
(a) लाभ अर्जन
(b) रोजगार अर्जन
(c) मानव कल्याण
(d) मानव सन्तुष्टि
2. उत्पादन सम्भव नहीं है।
(a) भूमि और पूँजी के अभाव में
(b) भूमि और श्रम के अभाव में
(c) श्रम और पूँजी के अभाव में
(d) पूँजी और साहस के अभाव में
3. उत्पादन के निष्क्रिय साधन कौन सा है ?
(a) भूमि
(b) केवल पूँजी
(c) भूमि और पूँजी
(d) उपरोक्त सभी
4. किसी वस्तु का उत्पादन करने पर समाज को जो वास्तविक त्याग करना पड़ता है, वह .............. कहलाता है।
(a) निजी लागत
(b) स्थिर लागत
(c) अवसर लागत
(d) सामाजिक लागत
5. उत्त्पति ह्यस नियम लागू होता हैं।
(a) केवल कृषि क्षेत्रों में
(b) उत्पादन के सभी क्षेत्रों में
(c) केवल उद्योगों में
(d) इनमें से कोई नहीं
6. इनमें से कौन सा साधन उत्पादन का साधन नहीं है ?
(a) भूमि
(b) पूॅजी
(c) श्रम
(d) धन
7. किसी फर्म के निर्गत Output और आगत Input के बीच के सम्बन्धों को उत्पादन ............. कहते है।
(a) उपभोग
(b) उत्पादन
(c) निवेश
(d) फलन
8. कुल लागत को कुल उत्पादित इकाइयों से भाग देने पर जो लागत आती है, वही ....................... लागत कहलाती है।
(a) स्थिर लागत
(b) सीमान्त लागत
(c) कुल लागत
(d) औसत लागत
9. किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल लागत में जो वृद्ध्रि होती है, उसे ................ लागत कहते है।
(a) स्थिर लागत
(b) सीमान्त लागत
(c) कुल लागत
(d) औसत लागत
10. एक वस्तु की बिक्री 3 इकाई से बढकर 4 इकाई हो जाती। परिणामस्वरूप कुल लागत 100 से बढकार 125 हो जाती है, तो सीमान्त लागत क्या होगी ?
(a) 25 रूपये
(b) 20 रूपये
(c) 29 रूपये
(d) 40 रूपये
11. यदि 40 वस्तुओं की कुल लागत रू0 800 है तो औसत लागत क्या होगी ?
(a) 40 रूपये
(b) 20 रूपये
(c) 400 रूपये
(d) 100 रूपये
12. उत्पादन के साधनों पर किया जाने वाला व्यय क्या कहलाता है ?
(a) आगम
(b) आय
(c) लागत
(d) सामाजिक लागत
13. उत्पादन फलन में उत्पादन किसका फलन है।
(a) उत्पति के साधनों का
(b) कीमत का
(c) कुल व्यय का
(d) उपर्युक्त सभी का
14. पैमाने में वृद्वि का अर्थ है।
(a) सभी साधनों को भिन्न-भिन्न अनुपातों में बढ़ाना
(b) एक साधन को स्थिर रखकर अन्य साधनों को बढ़ाना
(c) केवल एक साधन को बढ़ाना।
(d) सभी साधनों को एक ही अनुपात मे बढ़ाना
15. अल्पकाल में ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था में परिवर्तनशील साधन की सीमान्त उत्पादकता होती है।
(a) धनात्मक
(b) शून्य
(c) ऋणात्मक
(d) ये सभी
16. कुल परवर्ती लागत तथा कुल स्थिर लागत के जोड़ से प्राप्त होती है।
(a) कुल लागत
(b) औसत लागत
(c) सीमान्त लागत
(d) इनमें से कोई नहीं।
🔰निशिचत तथा अति लधु प्रश्नोत्तर
प्र01. उत्पादन के चार साधन बताइए ?
उ0 1. भूमि, 2 श्रम, 3 पूॅजी, 4 सहासी
प्र02. उत्पादन फलन की परिभाषा दीजिए ?
उ0 किसी फर्म के निर्गत और आगत के बीच के सम्बन्धों को उत्पादन फलन कहते है।
प्र03. पैमाने के प्रतिफल से आप क्या समझते हैं ?
उ0 पैमाने का प्रतिफल इस बात का अध्ययन करता है कि यदि उत्पत्ति के साधनों में आनुपातिक परिवर्तन कर दिया जाए तो उत्पादन में किस प्रकार परिवर्तन होगा।
प्र04. दीर्धकालीन उत्पादन फलन से क्या आशय है ?
उ0 दीर्धकाल में सभी उत्पादन के साधन परिवर्तनशील होते है। जब किसी भी साधन को स्थिर न रखकर सभी साधनों की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो उसे दीर्धकालीन उत्पादन फलन कहते है।
प्र05 एक फर्म द्वारा उपयोग में लाए गए आगतों और उत्पादित निर्गतों के बीच सम्बन्ध का नाम है ?
उ0 उत्पादन फलन
प्र06 स्पष्ट लागतों से क्या आशय है ?
उ0 स्पष्ट लागतों से आशय मौद्रिक लागतों से है।
प्र07 सीमान्त लागत ज्ञात करने का सूत्र क्या है ?
उ0 किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल लागत में जो वृद्वि होती है, उसे सीमान्त लागत कहते है। सूत्र
प्र08 पैमाने की बचतों से क्या अभिप्राय है ?
उ0 पैमाने की बचतों से आशय उस स्थिति से है जिसमें उत्पादन के पैमाने के फलस्वरूप प्रति इकाई लागत कम हो जाती है या प्रति इकाई साधन का उत्पादन बढ़ जाता है।
उ0 1. भूमि, 2 श्रम, 3 पूॅजी, 4 सहासी
प्र02. उत्पादन फलन की परिभाषा दीजिए ?
उ0 किसी फर्म के निर्गत और आगत के बीच के सम्बन्धों को उत्पादन फलन कहते है।
प्र03. पैमाने के प्रतिफल से आप क्या समझते हैं ?
उ0 पैमाने का प्रतिफल इस बात का अध्ययन करता है कि यदि उत्पत्ति के साधनों में आनुपातिक परिवर्तन कर दिया जाए तो उत्पादन में किस प्रकार परिवर्तन होगा।
प्र04. दीर्धकालीन उत्पादन फलन से क्या आशय है ?
उ0 दीर्धकाल में सभी उत्पादन के साधन परिवर्तनशील होते है। जब किसी भी साधन को स्थिर न रखकर सभी साधनों की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो उसे दीर्धकालीन उत्पादन फलन कहते है।
प्र05 एक फर्म द्वारा उपयोग में लाए गए आगतों और उत्पादित निर्गतों के बीच सम्बन्ध का नाम है ?
उ0 उत्पादन फलन
प्र06 स्पष्ट लागतों से क्या आशय है ?
उ0 स्पष्ट लागतों से आशय मौद्रिक लागतों से है।
प्र07 सीमान्त लागत ज्ञात करने का सूत्र क्या है ?
उ0 किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल लागत में जो वृद्वि होती है, उसे सीमान्त लागत कहते है। सूत्र
प्र08 पैमाने की बचतों से क्या अभिप्राय है ?
उ0 पैमाने की बचतों से आशय उस स्थिति से है जिसमें उत्पादन के पैमाने के फलस्वरूप प्रति इकाई लागत कम हो जाती है या प्रति इकाई साधन का उत्पादन बढ़ जाता है।
प्र01. उत्पादन फलन को परिभाषित कीजिए ? अल्पकालीन एवं दीर्धकालीन उत्पादन फलन को समझाइए।
प्ररिभाष - किसी फर्म के उत्पाद और आदा के बीच सम्बन्धों को उत्पादन फलन कहते है। उत्पादन फलन हमें यह बताता है कि तकनीकी ज्ञान और कुशल प्रबन्ध की सहायता से उत्पादक आदाओं के विभिन्न संयोगों से उत्पाद की अधिकतम मात्रा किस प्रकार प्राप्त कर सकते है।
सूत्र -q = f (x1, x2, …………….)
उत्पादन फलन के दो रूप होते है।
1. अल्पकालीन उत्पादन फलन - जब उत्पाद के कुछ साधनों (जैसे भूमि तथा पूँजी) की मात्रा को स्थिर रखते हुए, अन्य परिवर्तनशील साधनों (जैसे- श्रमिक और संगठन) की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो उसे अल्पकालीन उत्पादन फलन कहते है। अल्पकाल में उत्पादन के सभी साधनों को बढ़ाना या धटाना सम्भव नहीं होता है, केवल परिवर्तनशील साधनों की मात्रा को आवश्यकतानुसार धटाया-बढ़ाया जा सकता है।
2. दीर्धकालीन उत्पादन फलन - जब उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते है अर्थात् जब किसी साधन को स्थिर न रखकर सभी साधनों की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो उत्पादन फलन दीर्धकालीन होता है, क्योंकि दीर्धकाल में उत्पादन के साधनों को आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
प्र02. कुल लागत, औसत लागत तथा सीमान्त लागत को समझाइए। अथवा औसत लागत और सीमान्त लागत के सम्बन्धों को रेखाचित्र की सहयता से समझाइए।
कुल लागत - किसी वस्तु के कुल उत्पादन में जो कुल धन व्यय होता है, उसे कुल लागत कहते है।
औसत लागत - कल लागत को उत्पादन से भाग देने पर जो लागत प्राप्त होती है उसे औसत लागत कहते है।
सीमान्त लागत - किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल लागत में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त लागत कहते है।
प्ररिभाष - किसी फर्म के उत्पाद और आदा के बीच सम्बन्धों को उत्पादन फलन कहते है। उत्पादन फलन हमें यह बताता है कि तकनीकी ज्ञान और कुशल प्रबन्ध की सहायता से उत्पादक आदाओं के विभिन्न संयोगों से उत्पाद की अधिकतम मात्रा किस प्रकार प्राप्त कर सकते है।
सूत्र -q = f (x1, x2, …………….)
उत्पादन फलन के दो रूप होते है।
1. अल्पकालीन उत्पादन फलन - जब उत्पाद के कुछ साधनों (जैसे भूमि तथा पूँजी) की मात्रा को स्थिर रखते हुए, अन्य परिवर्तनशील साधनों (जैसे- श्रमिक और संगठन) की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो उसे अल्पकालीन उत्पादन फलन कहते है। अल्पकाल में उत्पादन के सभी साधनों को बढ़ाना या धटाना सम्भव नहीं होता है, केवल परिवर्तनशील साधनों की मात्रा को आवश्यकतानुसार धटाया-बढ़ाया जा सकता है।
2. दीर्धकालीन उत्पादन फलन - जब उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते है अर्थात् जब किसी साधन को स्थिर न रखकर सभी साधनों की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो उत्पादन फलन दीर्धकालीन होता है, क्योंकि दीर्धकाल में उत्पादन के साधनों को आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
प्र02. कुल लागत, औसत लागत तथा सीमान्त लागत को समझाइए। अथवा औसत लागत और सीमान्त लागत के सम्बन्धों को रेखाचित्र की सहयता से समझाइए।
कुल लागत - किसी वस्तु के कुल उत्पादन में जो कुल धन व्यय होता है, उसे कुल लागत कहते है।
औसत लागत - कल लागत को उत्पादन से भाग देने पर जो लागत प्राप्त होती है उसे औसत लागत कहते है।
सीमान्त लागत - किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल लागत में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त लागत कहते है।
औसत लागत और सीमान्त लागत के संबंध
कुछ समय उपरान्त जब उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील हो जाता है तो सीमान्त तथा औसत लागत में वृद्धि होने लगती है, किन्तु सीमान्त लागत बढ़ने की प्रवृत्ति औसत लागत की तुलना में अधिक तीव्र होती है, इसीलिए ये रेखाएँ U आकार की होती हैं। E बिन्दु पर दोनों लागतें समान हैं। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं- (1) जब औसत लागत गिरती है तो सीमान्त लागत औसत लागत से कम होगी। (2) जब औसत लागत बढ़ती है तो सीमान्त लागत भी बढ़ेगी और वह औसत लागत से अधिक होगी। (3) यदि औसत लागत स्थिर है तो वह सीमान्त लागत के बराबर होगी। (4) सीमान्त लागत रेखा औसत लागत रेखा को नीचे से उसके निम्नतम बिन्दु पर काटेगी। |
प्र03. परिवर्तनशील तथा स्थिर लागतों को स्पष्ट कीजिए।
कुल लागत - किसी वस्तु के कुल उत्पादन में जो कुल धन व्यय होता है उसे कुल लागत कहते है।
परिवर्तनशील तथा स्थिर लागतों में अन्तर
परिवर्तनशील लागतें - परिवर्तनशील लागतें कुल लागत का वह अंश होता है जो उत्पादन के बढ़ जाने से बढ़ता है तथा धटने के साथ धटता जाती है। यदि उत्पादन किसी भी समय नहीं हो रहा है तो परिवर्तनशील लागतें बिल्कुल समाप्त हो जाती है। जैसे कच्ची माल का मूल्य, ईधन पर व्यय, श्रमिकों की मजदूरी आदि।
स्थिर लागतें - स्थिर लागतें कुल लागत का वह अंश होती है जो उत्पादन के कम होने, या जादा या बिल्कुल न होने पर स्थिर रहता है। इसे स्थिर लागत कहते है। इस लागतें में भवनों का किराया, पँूजी का ब्याज, बीमा व्यय, स्थायी कर्मचारी तथा प्रबन्धकों का वेतन आदि।
प्र04. उत्पादन लागत से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट लागतों एवं अस्पष्ट लागतों में अन्तर बताइए।
उत्पादन लागत - उत्पादन लागत के अन्र्तगत वे सभी व्यय सम्मिलित किए जाते है, जो किसी उत्पादक या फर्म द्वारा वस्तु के उत्पादन व्यय के रूप में उठाए जाते है। जैसे उत्पादन के विभिन्न साधनो (भूमि, पूँजी, श्रम और संहास ) को दिया जाना वाला पुरस्कार, परिवहान व्यय, बीमा एवं कर, मशीनों का क्रय-विक्रय, विज्ञापन, बिजली, कच्चा माल आदि पर किया जाने वाला व्यय, धिसावट आदि।
स्पष्ट तथा अस्पष्ट लागतों में अन्तर
स्पष्ट लागतें - स्पष्ट लागतों में उत्पादन जैसे उत्पादन के साधनों को दिया जाने वाला पुरस्कार, विक्रय लागतों में (विज्ञापन, प्रचार आदि पर होने वाला व्यय) तथा अन्य लागतों में (कर, सुरक्षा व्यय, बीमा आदि) का समावेश होता है।
अस्पष्ट लागतें - अस्पष्ट लागतों में उद्यमी के अपने साधनों की लागतों को सम्मिलित किया जाता है। जैसे अपनी निजी भूमि का प्रयोग उत्पादन कार्यो में।
प्र05. उत्पादन लागत से आप क्या समझते हैं ? द्राव्यिक, वास्तविक एवं अवसर लागत को संक्षेप में समझाइए।
उत्पादन लागत - उत्पादन लागत के अन्र्तगत वे सभी व्यय सम्मिलित किए जाते है, जो किसी उत्पादक या फर्म द्वारा वस्तु के उत्पादन व्यय के रूप में उठाए जाते है। जैसे उत्पादन के विभिन्न साधनो ं(भूमि, पूँजी, श्रम और संहास ) को दिया जाना वाला पुरस्कार, परिवहान व्यय, बीमा एवं कर, मशीनों का क्रय-विक्रय, विज्ञापन, बिजली, कच्चा माल आदि पर किया जाने वाला व्यय, धिसावट आदि।
(अ) द्राव्यिक लागता - द्राव्यिक लागतों के अन्तर्गत वे लागतें आती है, जिन्हें कोई उत्पादक उत्पत्ति के साधनों के प्रयोग के लिए द्रव्य के रूप में व्यय करता है। इसमें तीन मदें सम्मिलित होती है।
1. स्पष्ट लागतें - इन लागतों में उत्पादन लागत को दिया जाने वाला पुरस्कार, विक्रय लागत, विज्ञान, प्रचार, सुरक्षा, बीमा आदि पर होना वाला व्यय को समावेश किया जाता है।
2. अस्पष्ट लागतें - इन लागतों में उद्यमी के अपने साधनों का प्रयोग होता है।
(ब) वास्तविक लागत - वास्तविक लागत की अवधारणा का प्रतिपादन सर्वप्रथम प्रो0 मार्शल ने किया था। उनके अनुसार किसी वस्तु के उत्पादन के निर्माण में समाज को जो कष्ट, त्याग तथा कठिनाइयाॅ सहनी पड़ती है उन सभी के योग को वास्तविक लागत कहते है।
(स) अवसर लागत - किसी वस्तु के उत्पादन की अवसर लागत वस्तु की वह मात्रा है जिसका त्याग किया जाता है। किसी एक वस्तु का निर्माण करने के लिए किसी दूसरे वस्तु का त्याग किया जाता है।
प्र06. पैमाने के प्रतिफल से क्या अर्थ है। पैमाने के बढ़ते, स्थिर और धटते प्रतिफल को रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
प्ररिभाष - पैमाने के प्रतिफल का विचार इस बात का अध्ययन करता है कि यदि उत्पत्ति के साधनों में आनुपतिक परिवर्तन कर दिया जाए तो उत्पादन में किस प्रकार परिवर्तन होगा।
पैमाने के प्रतिफल तीन प्रकार से होता है।
1. पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था
2. पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था
3. पैमाने के धटते प्रतिफल की अवस्था
कुल लागत - किसी वस्तु के कुल उत्पादन में जो कुल धन व्यय होता है उसे कुल लागत कहते है।
परिवर्तनशील तथा स्थिर लागतों में अन्तर
परिवर्तनशील लागतें - परिवर्तनशील लागतें कुल लागत का वह अंश होता है जो उत्पादन के बढ़ जाने से बढ़ता है तथा धटने के साथ धटता जाती है। यदि उत्पादन किसी भी समय नहीं हो रहा है तो परिवर्तनशील लागतें बिल्कुल समाप्त हो जाती है। जैसे कच्ची माल का मूल्य, ईधन पर व्यय, श्रमिकों की मजदूरी आदि।
स्थिर लागतें - स्थिर लागतें कुल लागत का वह अंश होती है जो उत्पादन के कम होने, या जादा या बिल्कुल न होने पर स्थिर रहता है। इसे स्थिर लागत कहते है। इस लागतें में भवनों का किराया, पँूजी का ब्याज, बीमा व्यय, स्थायी कर्मचारी तथा प्रबन्धकों का वेतन आदि।
प्र04. उत्पादन लागत से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट लागतों एवं अस्पष्ट लागतों में अन्तर बताइए।
उत्पादन लागत - उत्पादन लागत के अन्र्तगत वे सभी व्यय सम्मिलित किए जाते है, जो किसी उत्पादक या फर्म द्वारा वस्तु के उत्पादन व्यय के रूप में उठाए जाते है। जैसे उत्पादन के विभिन्न साधनो (भूमि, पूँजी, श्रम और संहास ) को दिया जाना वाला पुरस्कार, परिवहान व्यय, बीमा एवं कर, मशीनों का क्रय-विक्रय, विज्ञापन, बिजली, कच्चा माल आदि पर किया जाने वाला व्यय, धिसावट आदि।
स्पष्ट तथा अस्पष्ट लागतों में अन्तर
स्पष्ट लागतें - स्पष्ट लागतों में उत्पादन जैसे उत्पादन के साधनों को दिया जाने वाला पुरस्कार, विक्रय लागतों में (विज्ञापन, प्रचार आदि पर होने वाला व्यय) तथा अन्य लागतों में (कर, सुरक्षा व्यय, बीमा आदि) का समावेश होता है।
अस्पष्ट लागतें - अस्पष्ट लागतों में उद्यमी के अपने साधनों की लागतों को सम्मिलित किया जाता है। जैसे अपनी निजी भूमि का प्रयोग उत्पादन कार्यो में।
प्र05. उत्पादन लागत से आप क्या समझते हैं ? द्राव्यिक, वास्तविक एवं अवसर लागत को संक्षेप में समझाइए।
उत्पादन लागत - उत्पादन लागत के अन्र्तगत वे सभी व्यय सम्मिलित किए जाते है, जो किसी उत्पादक या फर्म द्वारा वस्तु के उत्पादन व्यय के रूप में उठाए जाते है। जैसे उत्पादन के विभिन्न साधनो ं(भूमि, पूँजी, श्रम और संहास ) को दिया जाना वाला पुरस्कार, परिवहान व्यय, बीमा एवं कर, मशीनों का क्रय-विक्रय, विज्ञापन, बिजली, कच्चा माल आदि पर किया जाने वाला व्यय, धिसावट आदि।
(अ) द्राव्यिक लागता - द्राव्यिक लागतों के अन्तर्गत वे लागतें आती है, जिन्हें कोई उत्पादक उत्पत्ति के साधनों के प्रयोग के लिए द्रव्य के रूप में व्यय करता है। इसमें तीन मदें सम्मिलित होती है।
1. स्पष्ट लागतें - इन लागतों में उत्पादन लागत को दिया जाने वाला पुरस्कार, विक्रय लागत, विज्ञान, प्रचार, सुरक्षा, बीमा आदि पर होना वाला व्यय को समावेश किया जाता है।
2. अस्पष्ट लागतें - इन लागतों में उद्यमी के अपने साधनों का प्रयोग होता है।
(ब) वास्तविक लागत - वास्तविक लागत की अवधारणा का प्रतिपादन सर्वप्रथम प्रो0 मार्शल ने किया था। उनके अनुसार किसी वस्तु के उत्पादन के निर्माण में समाज को जो कष्ट, त्याग तथा कठिनाइयाॅ सहनी पड़ती है उन सभी के योग को वास्तविक लागत कहते है।
(स) अवसर लागत - किसी वस्तु के उत्पादन की अवसर लागत वस्तु की वह मात्रा है जिसका त्याग किया जाता है। किसी एक वस्तु का निर्माण करने के लिए किसी दूसरे वस्तु का त्याग किया जाता है।
प्र06. पैमाने के प्रतिफल से क्या अर्थ है। पैमाने के बढ़ते, स्थिर और धटते प्रतिफल को रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
प्ररिभाष - पैमाने के प्रतिफल का विचार इस बात का अध्ययन करता है कि यदि उत्पत्ति के साधनों में आनुपतिक परिवर्तन कर दिया जाए तो उत्पादन में किस प्रकार परिवर्तन होगा।
पैमाने के प्रतिफल तीन प्रकार से होता है।
1. पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था
2. पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था
3. पैमाने के धटते प्रतिफल की अवस्था
Watch Video on उत्पत्ति ह्यस नियम
प्र0 7 उत्पत्ति ह्यस नियम किसे कहते ? इसकी क्रियाशीलता के क्या कारण है ?
उ0 - उत्पत्ति ह्यस नियम का सर्वप्रथम उल्लेख सन् 1815 ई0 में सर एडवर्ड वेस्ट द्वारा अपने एक लेख में किया गया था। उसके बाद इस नियम की स्पष्ट व्याख्या प्रो0 एडम स्मिथ, रिकार्डो, माल्थस तथा मार्शल ने की। आधुनिक अर्थशास्त्री उत्पत्ति ह्यस नियम को परिवर्तनशील अनुपातों का नियम कहते है।
इस नियम के अनुसार " यदि उत्पादन के किसी एक या अधिक साधनों की मात्रा को स्थिर रखते हुए अन्य साधनों को धीरे-धीरे बढ़या जाए तो एक बिन्दु के बाद परिवर्तनशील साधनों की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से प्राप्त होने वाली उपज धटने लगती है।"
प्रो0 बेन्हम के अनुसार, उत्पादन के साधनों के संयोग में एक साधन के अनुपात में ज्यों-ज्यों वृद्वि की जाती है तो एक सीमा के पश्चात् उस साधन का सीमान्त तथा औसत उत्पादन धटता जाता है।"
उत्पत्ति ह्यस नियम की व्याख्या - यह नियम तीन आर्थिक धारणाओं पर आधारित है। कुल उत्पाद, सीमान्त उत्पाद और औसत उत्पाद। कुल उत्पाद - परिवर्तनशील साधनों की निशिचत इकाइयों के प्रयोग से होने वाले उत्पादन को कुल उत्पाद कहते है। औसत उत्पाद - कुल उत्पादन को परिवर्तनशील साधन की कुल ईकाइयों से भाग देने से प्राप्त होता है उसे औसत उत्पादन कहते है। सीमान्त उत्पाद - परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से प्राप्त उत्पादन को सीमान्त उत्पाद कहते है।
इस नियम के अनुसार भूमि और पँूजी को स्थिर साधन है और श्रम को गतिशील साधन माना है। श्रम की उत्तरोत्तर इकाइयों से प्राप्त उत्पादन की तीन अवस्था (प्रथम, द्वतीय तथा तृतीय) होगी।
प्रथम अवस्था - यह नियम के अनुसार प्रारम्भ में जब परिवर्तनशील साधन अर्थात् श्रम की इकाइयों में वृद्वि की जाती है तो अन्य स्थिर साधनों का अधिक अच्छा प्रयोग होने से कुल उत्पादन में तीव्र वृद्वि होती है। इस प्रकार इस अवस्था में कुल उत्पादन, सीमान्त उत्पादन और औसत उत्पादन में वृद्वि देखने को मिलती है। इस अवस्था को बढ़ते हुए उत्पादन की अवस्था भी कहते है। जैसे तालिका और रेखा चित्र में दिखाया गया है।
द्वितीय अवस्था - यह अवस्था उत्पत्ति वृद्वि नियम तथा उत्पत्ति ह्यस नियम के बीच की अवस्था में लागू होता है। इस अवस्थ में उत्पत्ति के साधनों की अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से उत्पादन में आनुपातिक वृद्वि होती है। इसे उत्पत्ति समता नियम भी कहते है।
तृतीय अवस्था - इस अवस्थ में उत्पादन धटती दर से होने लगता है। परिवर्तनशील साधन के बढ़ने से कुल उत्पादन ,औसत उत्पादन और सीमान्त उत्पादन तीनों धटने लगते है। जिसमें सीमान्त उत्पादन बड़ी तेजी से धटने लगता है। इस अवस्था को उत्पत्ति ह्यस नियम कहते है।
उ0 - उत्पत्ति ह्यस नियम का सर्वप्रथम उल्लेख सन् 1815 ई0 में सर एडवर्ड वेस्ट द्वारा अपने एक लेख में किया गया था। उसके बाद इस नियम की स्पष्ट व्याख्या प्रो0 एडम स्मिथ, रिकार्डो, माल्थस तथा मार्शल ने की। आधुनिक अर्थशास्त्री उत्पत्ति ह्यस नियम को परिवर्तनशील अनुपातों का नियम कहते है।
इस नियम के अनुसार " यदि उत्पादन के किसी एक या अधिक साधनों की मात्रा को स्थिर रखते हुए अन्य साधनों को धीरे-धीरे बढ़या जाए तो एक बिन्दु के बाद परिवर्तनशील साधनों की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से प्राप्त होने वाली उपज धटने लगती है।"
प्रो0 बेन्हम के अनुसार, उत्पादन के साधनों के संयोग में एक साधन के अनुपात में ज्यों-ज्यों वृद्वि की जाती है तो एक सीमा के पश्चात् उस साधन का सीमान्त तथा औसत उत्पादन धटता जाता है।"
उत्पत्ति ह्यस नियम की व्याख्या - यह नियम तीन आर्थिक धारणाओं पर आधारित है। कुल उत्पाद, सीमान्त उत्पाद और औसत उत्पाद। कुल उत्पाद - परिवर्तनशील साधनों की निशिचत इकाइयों के प्रयोग से होने वाले उत्पादन को कुल उत्पाद कहते है। औसत उत्पाद - कुल उत्पादन को परिवर्तनशील साधन की कुल ईकाइयों से भाग देने से प्राप्त होता है उसे औसत उत्पादन कहते है। सीमान्त उत्पाद - परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से प्राप्त उत्पादन को सीमान्त उत्पाद कहते है।
इस नियम के अनुसार भूमि और पँूजी को स्थिर साधन है और श्रम को गतिशील साधन माना है। श्रम की उत्तरोत्तर इकाइयों से प्राप्त उत्पादन की तीन अवस्था (प्रथम, द्वतीय तथा तृतीय) होगी।
प्रथम अवस्था - यह नियम के अनुसार प्रारम्भ में जब परिवर्तनशील साधन अर्थात् श्रम की इकाइयों में वृद्वि की जाती है तो अन्य स्थिर साधनों का अधिक अच्छा प्रयोग होने से कुल उत्पादन में तीव्र वृद्वि होती है। इस प्रकार इस अवस्था में कुल उत्पादन, सीमान्त उत्पादन और औसत उत्पादन में वृद्वि देखने को मिलती है। इस अवस्था को बढ़ते हुए उत्पादन की अवस्था भी कहते है। जैसे तालिका और रेखा चित्र में दिखाया गया है।
द्वितीय अवस्था - यह अवस्था उत्पत्ति वृद्वि नियम तथा उत्पत्ति ह्यस नियम के बीच की अवस्था में लागू होता है। इस अवस्थ में उत्पत्ति के साधनों की अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से उत्पादन में आनुपातिक वृद्वि होती है। इसे उत्पत्ति समता नियम भी कहते है।
तृतीय अवस्था - इस अवस्थ में उत्पादन धटती दर से होने लगता है। परिवर्तनशील साधन के बढ़ने से कुल उत्पादन ,औसत उत्पादन और सीमान्त उत्पादन तीनों धटने लगते है। जिसमें सीमान्त उत्पादन बड़ी तेजी से धटने लगता है। इस अवस्था को उत्पत्ति ह्यस नियम कहते है।
प्र0 8. कुल लागत, सीमान्त लागत और औसत लागत का सूत्र क्या है ?
🔰संख्यात्मक प्रश्नोत्तर
प्र01. नीचे दी गई कुल लागत तालिका से औसत लागत और सीमान्त लागत का आकलन कीजिए।
प्र02. निम्न तालिका से एक फर्म की कुल परिवर्तनशील लागत एवं सीमान्त लागत की गणना कीजिए। फर्म की स्थिर लागत रू0 12 है।
प्र03. एक फर्म की निम्न लागत तालिका से कुल परिवर्तनशील लागत तथा कुल लागत की गणना कीजिए जबकि फर्म की स्थिर लागत रू 10 है।
प्र04. निम्न तालिका से सीमान्त परिवर्ती लागत की गणना कीजिए ?
प्र05. निम्न से परिवर्तनीय अनुपातों के नियम के तीन चरणों की पहचान कीजिए और प्रत्येक चरण के पीछे कारण भी बताइए।
ASSESSMENT (मूल्यांकन)
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