उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण: एक समीक्षा
Textbook Questions and Answers
Watch Video
प्रश्न 1. भारत में आर्थिक सुधार क्यों आरम्भ किए गए?
उत्तर:भारत में 1980 के दशक के अन्त में विदेशी ऋण संकट उत्पन्न हो गया तथा देश का विदेशी मुद्राकोष बहुत कम रह गया जिससे देश के आयातों का भुगतान करना मुश्किल हो गया। इस स्थिति में भारत सरकार ने विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद मांगी। उन्होंने भारत को ऋण तो प्रदान किया परन्तु कुछ शर्ते रखीं। भारत सरकार ने इन शर्तों को पूरा करने हेतु आर्थिक सुधार प्रक्रिया प्रारम्भ करी।
प्रश्न 2. विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:विश्व व्यापार संगठन विश्व व्यापार को बढ़ाने में मदद करता है तथा व्यापार के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करता है। साथ ही यह सेवाओं के सृजन और व्यापार को प्रोत्साहन देता है ताकि विश्व के संसाधनों का इष्टतम उपयोग हो सके तथा पर्यावरण का संरक्षण भी हो सके। यह द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार को बढ़ाने में भी सहयोग करता है। अतः विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होना आवश्यक है।
प्रश्न 3. भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय क्षेत्र में नियन्त्रक की भूमिका से अपने को सुविधा प्रदाता की भूमिका अदा करने में क्यों परिवर्तन किया?
उत्तर:प्रारम्भ में रिजर्व बैंक वित्तीय क्षेत्र में नियन्त्रक की भूमिका निभाता था किन्तु बाद में यह वित्तीय क्षेत्र को सुविधा प्रदाता की भूमिका निभाने लगा क्योंकि उदारीकरण के फलस्वरूप वित्तीय क्षेत्र में कई सुधार किए गए तथा वित्तीय संस्थाओं को अनेक सुविधाएँ प्रदान की गई तथा उन्हें अधिक स्वतन्त्रता प्रदान की गई अत: रिजर्व बैंक के नियन्त्रण में कमी की गई है।
प्रश्न 4. रिजर्व बैंक व्यावसायिक बैंकों पर किस प्रकार नियन्त्रण रखता है?
उत्तर:भारतीय रिजर्व बैंक विभिन्न नियमों एवं कसौटियों के माध्यम से व्यावसायिक बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थानों पर नियन्त्रण रखता है, इस हेतु रिजर्व बैंक विभिन्न मौद्रिक उपकरणों, यथा-बैंक दर, नकद कोषानुपात, वैधानिक तरलता कोषानुपात आदि का उपयोग करता है।
प्रश्न 5. रुपयों के अवमूल्यन से आप क्या समझते
उत्तर:रुपयों के अवमूल्यन का तात्पर्य भारतीय रुपये के मूल्यों में अन्य मुद्राओं की अपेक्षा कमी करने से है।
प्रश्न 6. इनमें भेद करें:
(क) युक्तियुक्त और अल्पांश विक्रय
(ख) द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार
(ग) प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क अवरोधक।
उत्तर:(क) युक्तियुक्त और अल्पांश विक्रय| युक्तियुक्त विक्रय का तात्पर्य किसी योजना के अन्तर्गत लम्बी अवधि में किए गए विक्रय से होता है जबकि अल्पांश विक्रय का सम्बन्ध छोटी अवधि हेतु कम मात्रा में किए गए विक्रय से होता है।
(ख) द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार: द्विपक्षीय व्यापार का तात्पर्य दो देशों के बीच होने वाले व्यापार से होता है जबकि बहुपक्षीय व्यापार का तात्पर्य कई देशों के मध्य होने वाले व्यापार से है।
(ग) प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क अवरोधक: देश में आयात-निर्यातों को प्रतिबन्धित करने हेतु प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क प्रतिबन्धों का उपयोग किया जाता है। प्रशुल्क अवरोधकों में आयातित वस्तुओं पर कर लगाया जाता है जबकि अप्रशुल्क अवरोधक में आयातित वस्तुओं की मात्रा पर प्रतिबन्ध लगाए। जाते हैं।
प्रश्न 7. प्रशुल्क क्यों लगाए जाते हैं?
उत्तर:देश के आन्तरिक उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने एवं आयातों की मात्रा को सीमित करने हेतु प्रशुल्क लगाए जाते हैं।
प्रश्न 8. परिमाणात्मक प्रतिबन्धों का क्या अर्थ है?
उत्तर:परिमाणात्मक प्रतिबन्धों के अन्तर्गत आयातों व निर्यातों की मात्रा पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है, मात्रा पूर्व में निर्धारित कर दी जाती है उससे अधिक आयात व निर्यात नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 9."लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए।" क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों?
उत्तर:यह उचित है कि लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए क्योंकि इसके फलस्वरूप इन उपक्रमों की लाभदायकता में अधिक वृद्धि की जा सकती है। इन उपक्रमों का निजीकरण करने से इन्हें पर्याप्त वित्त प्राप्त होगा तथा कुशल प्रबन्धकों की सेवाएँ। प्राप्त होंगी अत: लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करने से उनके लाभ में अधिक वृद्धि होगी।
प्रश्न 10. क्या आपके विचार से बाह्य प्रापण भारत के लिए अच्छा है? विकसित देशों में इसका विरोध क्यों हो रहा है?
उत्तर:भारत के लिए बाह्य प्रापण अच्छा है क्योंकि भारत में जनसंख्या काफी अधिक है किन्तु यहाँ पर रोजगार के अवसर काफी कम हैं अत: यहाँ की जनसंख्या शिक्षित एवं कुशल होते हुए भी बेरोजगार है। बाह्य प्रापण से भारतीयों को रोजगार प्राप्त होता है, साथ ही देश को विदेशी मुद्रा की प्राप्ति भी होती है। विकसित देशों द्वारा इसका विरोध इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इससे उनके देश में रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं।
प्रश्न 11. भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिनके कारण यह विश्व बाह्य प्रापण केन्द्र बन रहा है। अनुकूल परिस्थितियों क्या हैं?
उत्तर:भारत में इस तरह के कार्यों की लागत कम आती है तथा कुशल श्रम द्वारा कार्य का उचित रूप से निष्पादन किया जाता है।
प्रश्न 12. क्या भारत सरकार की नवरत्न नीति सार्वजनिक उपक्रमों के निष्पादन को सुधारने में सहायक रही है? कैसे? .
उत्तर:भारत सरकार ने 1996 में सार्वजनिक उपक्रमों की कुशलता बढ़ाने, उनके प्रबन्धन में व्यवसायीकरण लाने तथा उनकी स्पर्धा में सुधार लाने हेतु कुछ सार्वजनिक उपक्रमों को नवरत्न घोषित किया। इस नीति के फलस्वरूप इन उद्योगों के निष्पादन में सुधार भी हुआ है क्योंकि इस नीति के अन्तर्गत इन कम्पनियों के कुशलतापूर्वक संचालन और लाभ में वृद्धि करने के लिए इन्हें प्रबन्धन और संचालन कार्यों में अधिक स्वायत्तता दी गई। साथ ही इन उपक्रमों को बाजार से वित्तीय संसाधन जुटाने की भी छूट दी है। इससे इन उपक्रमों के निष्पादन में सुधार आया है।
प्रश्न 13. सेवा क्षेत्रक के तीव्र विकास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक कौनसे रहे हैं?
उत्तर:भारत में नवीन सुधारों के तहत अधिकांश निजी एवं विदेशी निवेश सेवा क्षेत्र में ही हुआ है अतः सेवा क्षेत्र में अधिक निवेश के फलस्वरूप सेवा क्षेत्रक का तीव्र गति से विकास हुआ है।
प्रश्न 14. सुधार प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रक दुष्प्रभावित हुआ लगता है? क्यों?
उत्तर:सुधार प्रक्रिया का कृषि क्षेत्र को कोई लाभ नहीं हुआ बल्कि कृषि क्षेत्रक की विकास दर निरन्तर कम हुई है। सुधार प्रक्रिया के अन्तर्गत कृषि क्षेत्रक पर सार्वजनिक व्यय में कमी आई है। कृषि क्षेत्रक में आधारिक संरचना पर भी काफी कम धन-राशि व्यय की गई तथा उर्वरक सहायिकी में भी कमी की गई है। साथ ही आयातों पर से परिमाणात्मक प्रतिबन्ध हटाने से कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इन सभी कारणों से कृषि क्षेत्रक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
प्रश्न 15. सुधार काल में औद्योगिक क्षेत्रक के निराशाजनक निष्पादन के क्या कारण रहे हैं?
उत्तर:सुधार प्रक्रिया के अन्तर्गत औद्योगिक संवृद्धि की दर में कमी आई तथा इस क्षेत्र का निष्पादन भी निराशाजनक रहा। वैश्वीकरण के फलस्वरूप आयातों से प्रतिबन्ध हटाने पड़े जिस कारण सस्ते आयातों की पूर्ति देश में बढ़ गई, इससे घरेलू उत्पादों की मांग में कमी आई। सस्ते आयातों ने घरेलू वस्तुओं की मांग को प्रतिस्थापित कर दिया तथा घरेलू उत्पादक विकसित देशों के उच्च अप्रशुल्क प्रतिबन्धों के कारण अपने माल को विदेशों में बेचने में भी असफल रहे। इस कारण भारतीय उत्पादों की मांग में कमी | हो गई जिसके फलस्वरूप घरेलू उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव |पड़ा। अत: इन सभी कारणों से सुधार काल में औद्योगिक क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 16, सामाजिक न्याय और जन - कल्याण के परिप्रेक्ष्य में भारत के आर्थिक सुधारों पर चर्चा करें।
उत्तर:आर्थिक सुधारों के कारण सरकार का समाज कल्याण कार्यों पर व्यय कम हुआ। साथ ही इस काल में सुधारों के फलस्वरूप उच्च आय वर्ग की आमदनी एवं उपभोग में ही वृद्धि हुई, साथ ही विकास भी कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रहा, कृषि क्षेत्र पर भी सुधारों का प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ा। इस कारण आर्थिक सुधारों का सामाजिक न्याय और जन - कल्याण पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
उत्तर:भारत में 1980 के दशक के अन्त में विदेशी ऋण संकट उत्पन्न हो गया तथा देश का विदेशी मुद्राकोष बहुत कम रह गया जिससे देश के आयातों का भुगतान करना मुश्किल हो गया। इस स्थिति में भारत सरकार ने विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद मांगी। उन्होंने भारत को ऋण तो प्रदान किया परन्तु कुछ शर्ते रखीं। भारत सरकार ने इन शर्तों को पूरा करने हेतु आर्थिक सुधार प्रक्रिया प्रारम्भ करी।
प्रश्न 2. विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:विश्व व्यापार संगठन विश्व व्यापार को बढ़ाने में मदद करता है तथा व्यापार के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करता है। साथ ही यह सेवाओं के सृजन और व्यापार को प्रोत्साहन देता है ताकि विश्व के संसाधनों का इष्टतम उपयोग हो सके तथा पर्यावरण का संरक्षण भी हो सके। यह द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार को बढ़ाने में भी सहयोग करता है। अतः विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होना आवश्यक है।
प्रश्न 3. भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय क्षेत्र में नियन्त्रक की भूमिका से अपने को सुविधा प्रदाता की भूमिका अदा करने में क्यों परिवर्तन किया?
उत्तर:प्रारम्भ में रिजर्व बैंक वित्तीय क्षेत्र में नियन्त्रक की भूमिका निभाता था किन्तु बाद में यह वित्तीय क्षेत्र को सुविधा प्रदाता की भूमिका निभाने लगा क्योंकि उदारीकरण के फलस्वरूप वित्तीय क्षेत्र में कई सुधार किए गए तथा वित्तीय संस्थाओं को अनेक सुविधाएँ प्रदान की गई तथा उन्हें अधिक स्वतन्त्रता प्रदान की गई अत: रिजर्व बैंक के नियन्त्रण में कमी की गई है।
प्रश्न 4. रिजर्व बैंक व्यावसायिक बैंकों पर किस प्रकार नियन्त्रण रखता है?
उत्तर:भारतीय रिजर्व बैंक विभिन्न नियमों एवं कसौटियों के माध्यम से व्यावसायिक बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थानों पर नियन्त्रण रखता है, इस हेतु रिजर्व बैंक विभिन्न मौद्रिक उपकरणों, यथा-बैंक दर, नकद कोषानुपात, वैधानिक तरलता कोषानुपात आदि का उपयोग करता है।
प्रश्न 5. रुपयों के अवमूल्यन से आप क्या समझते
उत्तर:रुपयों के अवमूल्यन का तात्पर्य भारतीय रुपये के मूल्यों में अन्य मुद्राओं की अपेक्षा कमी करने से है।
प्रश्न 6. इनमें भेद करें:
(क) युक्तियुक्त और अल्पांश विक्रय
(ख) द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार
(ग) प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क अवरोधक।
उत्तर:(क) युक्तियुक्त और अल्पांश विक्रय| युक्तियुक्त विक्रय का तात्पर्य किसी योजना के अन्तर्गत लम्बी अवधि में किए गए विक्रय से होता है जबकि अल्पांश विक्रय का सम्बन्ध छोटी अवधि हेतु कम मात्रा में किए गए विक्रय से होता है।
(ख) द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार: द्विपक्षीय व्यापार का तात्पर्य दो देशों के बीच होने वाले व्यापार से होता है जबकि बहुपक्षीय व्यापार का तात्पर्य कई देशों के मध्य होने वाले व्यापार से है।
(ग) प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क अवरोधक: देश में आयात-निर्यातों को प्रतिबन्धित करने हेतु प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क प्रतिबन्धों का उपयोग किया जाता है। प्रशुल्क अवरोधकों में आयातित वस्तुओं पर कर लगाया जाता है जबकि अप्रशुल्क अवरोधक में आयातित वस्तुओं की मात्रा पर प्रतिबन्ध लगाए। जाते हैं।
प्रश्न 7. प्रशुल्क क्यों लगाए जाते हैं?
उत्तर:देश के आन्तरिक उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने एवं आयातों की मात्रा को सीमित करने हेतु प्रशुल्क लगाए जाते हैं।
प्रश्न 8. परिमाणात्मक प्रतिबन्धों का क्या अर्थ है?
उत्तर:परिमाणात्मक प्रतिबन्धों के अन्तर्गत आयातों व निर्यातों की मात्रा पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है, मात्रा पूर्व में निर्धारित कर दी जाती है उससे अधिक आयात व निर्यात नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 9."लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए।" क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों?
उत्तर:यह उचित है कि लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए क्योंकि इसके फलस्वरूप इन उपक्रमों की लाभदायकता में अधिक वृद्धि की जा सकती है। इन उपक्रमों का निजीकरण करने से इन्हें पर्याप्त वित्त प्राप्त होगा तथा कुशल प्रबन्धकों की सेवाएँ। प्राप्त होंगी अत: लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करने से उनके लाभ में अधिक वृद्धि होगी।
प्रश्न 10. क्या आपके विचार से बाह्य प्रापण भारत के लिए अच्छा है? विकसित देशों में इसका विरोध क्यों हो रहा है?
उत्तर:भारत के लिए बाह्य प्रापण अच्छा है क्योंकि भारत में जनसंख्या काफी अधिक है किन्तु यहाँ पर रोजगार के अवसर काफी कम हैं अत: यहाँ की जनसंख्या शिक्षित एवं कुशल होते हुए भी बेरोजगार है। बाह्य प्रापण से भारतीयों को रोजगार प्राप्त होता है, साथ ही देश को विदेशी मुद्रा की प्राप्ति भी होती है। विकसित देशों द्वारा इसका विरोध इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इससे उनके देश में रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं।
प्रश्न 11. भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिनके कारण यह विश्व बाह्य प्रापण केन्द्र बन रहा है। अनुकूल परिस्थितियों क्या हैं?
उत्तर:भारत में इस तरह के कार्यों की लागत कम आती है तथा कुशल श्रम द्वारा कार्य का उचित रूप से निष्पादन किया जाता है।
प्रश्न 12. क्या भारत सरकार की नवरत्न नीति सार्वजनिक उपक्रमों के निष्पादन को सुधारने में सहायक रही है? कैसे? .
उत्तर:भारत सरकार ने 1996 में सार्वजनिक उपक्रमों की कुशलता बढ़ाने, उनके प्रबन्धन में व्यवसायीकरण लाने तथा उनकी स्पर्धा में सुधार लाने हेतु कुछ सार्वजनिक उपक्रमों को नवरत्न घोषित किया। इस नीति के फलस्वरूप इन उद्योगों के निष्पादन में सुधार भी हुआ है क्योंकि इस नीति के अन्तर्गत इन कम्पनियों के कुशलतापूर्वक संचालन और लाभ में वृद्धि करने के लिए इन्हें प्रबन्धन और संचालन कार्यों में अधिक स्वायत्तता दी गई। साथ ही इन उपक्रमों को बाजार से वित्तीय संसाधन जुटाने की भी छूट दी है। इससे इन उपक्रमों के निष्पादन में सुधार आया है।
प्रश्न 13. सेवा क्षेत्रक के तीव्र विकास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक कौनसे रहे हैं?
उत्तर:भारत में नवीन सुधारों के तहत अधिकांश निजी एवं विदेशी निवेश सेवा क्षेत्र में ही हुआ है अतः सेवा क्षेत्र में अधिक निवेश के फलस्वरूप सेवा क्षेत्रक का तीव्र गति से विकास हुआ है।
प्रश्न 14. सुधार प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रक दुष्प्रभावित हुआ लगता है? क्यों?
उत्तर:सुधार प्रक्रिया का कृषि क्षेत्र को कोई लाभ नहीं हुआ बल्कि कृषि क्षेत्रक की विकास दर निरन्तर कम हुई है। सुधार प्रक्रिया के अन्तर्गत कृषि क्षेत्रक पर सार्वजनिक व्यय में कमी आई है। कृषि क्षेत्रक में आधारिक संरचना पर भी काफी कम धन-राशि व्यय की गई तथा उर्वरक सहायिकी में भी कमी की गई है। साथ ही आयातों पर से परिमाणात्मक प्रतिबन्ध हटाने से कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इन सभी कारणों से कृषि क्षेत्रक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
प्रश्न 15. सुधार काल में औद्योगिक क्षेत्रक के निराशाजनक निष्पादन के क्या कारण रहे हैं?
उत्तर:सुधार प्रक्रिया के अन्तर्गत औद्योगिक संवृद्धि की दर में कमी आई तथा इस क्षेत्र का निष्पादन भी निराशाजनक रहा। वैश्वीकरण के फलस्वरूप आयातों से प्रतिबन्ध हटाने पड़े जिस कारण सस्ते आयातों की पूर्ति देश में बढ़ गई, इससे घरेलू उत्पादों की मांग में कमी आई। सस्ते आयातों ने घरेलू वस्तुओं की मांग को प्रतिस्थापित कर दिया तथा घरेलू उत्पादक विकसित देशों के उच्च अप्रशुल्क प्रतिबन्धों के कारण अपने माल को विदेशों में बेचने में भी असफल रहे। इस कारण भारतीय उत्पादों की मांग में कमी | हो गई जिसके फलस्वरूप घरेलू उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव |पड़ा। अत: इन सभी कारणों से सुधार काल में औद्योगिक क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 16, सामाजिक न्याय और जन - कल्याण के परिप्रेक्ष्य में भारत के आर्थिक सुधारों पर चर्चा करें।
उत्तर:आर्थिक सुधारों के कारण सरकार का समाज कल्याण कार्यों पर व्यय कम हुआ। साथ ही इस काल में सुधारों के फलस्वरूप उच्च आय वर्ग की आमदनी एवं उपभोग में ही वृद्धि हुई, साथ ही विकास भी कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रहा, कृषि क्षेत्र पर भी सुधारों का प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ा। इस कारण आर्थिक सुधारों का सामाजिक न्याय और जन - कल्याण पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
ASSESSMENT (मूल्यांकन)
ASSESSMENT (मूल्यांकन)
सभी प्रश्न करना अनिवार्य है। प्रश्न बहुविकल्पीय प्रकार के होगें।